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‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......

✍वासुदेव मंगल की कलम से.......
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)

 
जलवायु परिवर्तन का जीवन पर असर
सामयिक लेख: वासुदेव मंगल, ब्यावर सिटी (राज)
पृथ्वी पर जलवायु के परिवर्तन का स्पष्ट असर नजर आने लगा है। पृथ्वी का तापमान बढ़ता जा रहा है। जब किसी क्षेत्र विशेष के मौसम में औसतन परिवर्तन आता है तो उसे जलवायु परिवर्तन कहते हैं। पृथ्वी का तापमान बिते सो वर्षों में एक डिग्री फारेनहाइट तक बढ़ गया है। इसका मानवजाति पर बड़ा असर हो सकता है।
जलवायु को संतुलित रखने में समुद्र का बड़ा योगदान रहता है। पृथ्वी के 71 प्रतिशत भाग में समुद्र व्याप्त है जो कि जमीन की तुलना में, समुन्द्र का पानी दो गुना सुर्य के प्रकाश का अवशोषण करता है। इसी प्रकार पृथ्वी का वातावरण भी जमीन के वनिस्पत सूर्य के प्रकाश को दोगुना अवशोषित करता है।
वायुमण्डल की वनिस्पत 50 गुना अधिक कार्बनडाई आक्साइड गैस समुन्द्र में होती है। समुद्र की लहरों में बदलाव आने से जलवायु प्रभावित होती है। पिछले पचास वर्षों में समुद्र के क्षेत्रों में आवसीजन की कम मात्रा पाई जाने वाले विस्तार हुए है। ऐसा मानवीय क्रिया कलापों के कारण हो रहा है। ऐसा करने से समुद्र की सतह गर्म होती है जिससे समुद्र के पानी के मन्थन की स्वाभाविक दिनचर्या प्रभावित होगी। ऐसा होने से समुद्र के भीतर के पानी में आक्सीजन नहीं पहुँचेगी। मात्र समुद्र की सतह के ऊपरी सतह के पानी में ही आवसीजन होगी।
जलवायु परिवर्तन में औद्योगिकरण की बड़ी भूमिका है। विभिन्न प्रकार की मिलें कल-कारखाने वातावरण में, सल्फर डाइआकसाइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड तथा अन्य प्रकार की जहरीली गैसें और धूल के कण हवा में छोड़ते हैं। ये सब वायुमण्डल में काफी वर्षों तक विद्यमान रहते हैं। यह ग्रीन हाउस प्रभाव, ओजोन परत का क्षरण तथा भूमण्डलीय तापमान में वृद्धि का कारण बनते है। वायु जल एवं भूमि प्रदूषण भी औद्योगिकरण की ही देन है।
निरन्तर बढ़ती हुई आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए वृक्ष काटे जा रहे हैं आवास, खेती, लकड़ी और अन्य वन संसाधनों की चाह में वनों की अन्धा धुन्ध कटाई हो रही है, जिससे पृथ्वी का हरित क्षेत्र तेजी से घट रहा है और साथ ही जलवायु के परिवर्तन में तेजी आ रही है। पिछले कुछ वर्षों में रासायनिक उर्वरकों की मांग इतनी तेजी से बढ़ी है कि आज विश्व भर में एक हजार से भी अधिक प्रकार की कीटनाशी उपलब्ध है। जैसे जैसे इनका उपयोग बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे वायु, जल तथा भूमि में भी इनकी मात्रा भी बढ़ती जा रही है, जो कि पर्यावरण को निरन्तर प्रदूषित कर घातक स्थिति में पहुंचा रहे हैं।
जलवायु परिवर्तन के कारण कीटों और रोगाणुओं में वृद्धि होती है। गर्म जलवायु जलवायु में कीट पतंगों की प्रजनन क्षमता बढ़ जाती है जिससे कीटों की संख्या बहुत अधिक बढ़ जाती है और इसका कृषि पर काफी दुष्प्रभाव पड़ता है। साथ ही कीटों और रोगानुओं को नियन्त्रित करने की कीटनाशकों का प्रयोग भी कहीं ना कहीं कृषि फसल के लिये नुकसान दायक ही होता है।
मौसम बदलाव का असर समुद्र की सतह पर भी दिखलाई देने लगा है। इस असर से समुद्र की पारिस्थिति की तन्त्र के गड़बड़ाने का संकट है। समुद्र की ऐसी तलहटीयों में आक्सीजन की मात्रा कम होती जा रही है जहां पहले से ही आक्सीजन कम है। समुद्री आक्सीजन की गिरावट जारी रही तो तय है कि ऐसे समुद्री जीवों के मरने का सिलसिला शुरू हो जायगा, जिन्हें मनुष्य भोजन के रूप में इस्तेमाल करता है। खाधान की इस कमी के कारण भी समुद्र तटीय ईलाकों से लोगों को पलायन करना पड़ेगा, जो पर्यावरण शरणार्थियों की संख्या में ईजाफा करेगा। यह स्थिति समुद्री रेगिस्तान का विस्तार भी करेगी।
जब जलवायु परिवर्तन का पूरे विश्व में और भारतीय कृषि व्यवस्था में बड़े स्तर पर प्रभाव होता है, ऐसी स्थिति में उच्च तकनीकों को अपनाकर कृषि व्यवस्था को जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव से बचाया जा सकता है। यह वर्तमान समय की आवश्यकता है, ऐसा करना जरूरी है। अगर हम उच्च तकनीकों का खेती में उपयोग नहीं करेंगें तो भविष्य में इसके घातक परिणाम झेलने पड़ेगें। जलवायु परिवर्तन समूचे संसार की समस्या है। इससे पूरी दुनियाँ में बाढ, सूखा, कृषि संकट, खाद्य-सुरक्षा, बिमारियाँ बढ़ी है। यह खतरा इन सभी क्षेत्रों में हुआ है। जलवायु परिवर्तन से अगले पच्चीस सालों में 6 से 8 प्रतिशत के बीच, कृषि उत्पादन गिरने की आशंका बनी हुई है। इसके लिये हमको मिलजुलकर पर्यावरण को संरक्षित करने के तरीकों को अहमियत देनी होगी ताकि हम अपने प्राकृतिक संसाधनों को बचा सके और कृषि व्यवस्था को अनुकूल बना सके। मनुष्य समेत अन्य प्राणियों में इस तापमान वृद्धि का प्रभाव अत्यधिक महसूस हो रहा है। इस गर्मी का सबसे ज्यादा असर अमेरिका और यूरोप में अनुभव किया गया। अभी भी हम रोज देख रहे हैं कि कहीं बाढ़ रही है तो कहीं ज्वालामुखी फट रहे हैं तो कहीं जंगलों में आग लग रही है तो कहीं भूकम्प से भारी नुकसान हो रहा है। पृथ्वी का तापमान बढ़ने से पूरे विश्व में त्राही त्राहि मची हुई है। कहीं बर्फ के पहाड़ टूट टूट कर गिर रहे हैं। कहीं जमीन कट रही है तो कहीं बादल टकराकर मूसलाधार बरसात कर रहे हैं। चारों ओर प्रकृति का प्रकोप दिखाई दे रहा है। अतः इस कुदरती प्रकोप से बचना ही आज की सबसे बड़ी सफलता होगी। जीवन के अस्थित्व को बचाना हमारा प्राथमिक कार्य है। अगर जीवन कायम रहा हो तो विकास फिर भी कर सकते है और जीवन ही खतरे में है तो कुछ भी करना बेकार है। ऐसे कार्य का कोई महत्व नहीं। आज पूरी मानव जाति खतरे में है। अतः कुदरत के कोप से बचना अत्यन्त आवश्यक है। आज समुद्रतट के किनारे बसे हुए शहर और गांव पानी में डूब रहे हैं। इस खतरे से प्राकृतिक आपदा से हमको बचाना होगा। यही आज के समय की पुकार है। अगर आपको बचना है तो बचो, नहीं तो फिर खतरे के लिये तैय्यार रहो।

20-09-2023
 

इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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