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‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......

✍वासुदेव मंगल की कलम से.......
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)

क्रेडिट कार्ड संस्कृति एवं भारत
सामयिक लेख: वासुदेव मंगल ब्यावर सिटी (राज.)
भारत निरन्तर विश्व से जुड़ता जा रहा है। आज भारत की समूची अर्थव्यवस्था वित्तिय एवं बैंकिंग व्यवस्था विश्व के देशों से जुड़ती जा रही है। ऐसी स्थिति में भूगतान व्यवस्था अधिकतर डिजिटलीकरण होती जा रही है। भुगतान व खरीद में आनलाईन व्यवस्था लोकप्रिय होती जा रही है जिसमें क्रेडिट संस्कृति को तेजी से बढ़ावा मिला है।
इस व्यवस्था में खर्च पहले भूगतान बाद मे किया जाता है। भारत विश्व में सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार है। सन् 1991 के बाद से मध्यम वर्ग आय उपभोक्ता अति महत्वाकांक्षी उपभोग वर्ग है मध्यम वर्ग की नई पीढ़ी ने तकनीकी प्रबन्धकीय एवं चिकित्सा शिक्षा का भरपूर लाभ उठाया है। इस वर्ग ने अच्छे वेतन पैकेज प्राप्त किए हैं। अतः उपभोक्ता वस्तुओं की मांग सृजित हुई है। इस कारण आवास, कार, आटो तथा इसके इलेक्ट्रोनिक उत्पादों, विलासितापूर्ण उत्पादों के उत्पादन पर, मांग पर इसका सीधा सीधा असर हुआ है।
भारत की 142 करोड़ जनसंख्या में से 93 करोड़ लोगों की आमदनी 5 (पाँच) लाख रुपये वार्षिक से भी कम है जो आबादी का लगभग 60 प्रतिशत भाग है। ये परिवार अपनी आमदनी से ज्यादा खर्च करने को बाध्य हो गए है वे भी स्वास्थ्य सम्बन्धी ईलाज पर खर्च करना पड़ रहा है। ऐसे परिवारों को अपनी अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उधार लेना पड़ रहा है।
उधार लेने की मजबूरी अधिकतर करोना काल में हुई जब अनेक परिवारों की आय लम्बे समय तक शून्य हो गई थी।
आज मध्यम आय वर्ग की बचत घटती जा रही है। उधार लेने की प्रवृति केवल गरीब एवं मध्यम आय वर्ग तक ही सीमित नहीं है देश की सरकारें भी उधार लेने से गुरेज नहीं करती है। इससे एकाएक जेहन में यह प्रश्न पैदा होता है कि क्या क्रेडिट कार्ड संस्कृति हमारे देश, समाज, सरकार, परिवार, व्यक्तियों को दीमक की तरह खोखला तो नहीं कर रही यदि बुनियाद कमजोर होती है तो भवन कैसे बनेगा। यह हम अच्छी तरह जानते हैं।
आज खुदरा ऋणों का जाल बढ़ता जा रहा है जिसके अन्तर्गत क्रेडिट कार्ड जारी किये जाते है, लेकिन उनकी ऋण सीमा असुरक्षित ऋणों की श्रेणी में ही आती है। यद्यपि आवास, आटो, व्यक्तिगत उपभोक्ता ऋण भी खुदरा श्रेणी में ही आते हैं। ऐसे ऋण सम्पत्ति एवं आयकर विवरण पर आधारित है, लेकिन क्रेडिट कार्ड के पीछे तो कोई सुरक्षा का मापदण्ड नहीं है।
आज खुदरा एवं असुरक्षित ऋणों में क्रेडिट कार्ड, खरीद अभी भूगतान बाद में एवं क्रेडिट ई एम आई उत्पादों का चलन बढ़ता जा रहा है। आनलाइन भुगतान व्यवस्था में डेबिट कार्ड की जगह क्रेडिट कार्ड स्थान लेता जा रहा है, जिसको हाल ही में यूपीआई भूगतान व्यवस्था से जोड़ा गया है।
भारतीय रिजर्व बैंक के प्रतिवेदन के अनुसार मार्च 2017 में क्रेडिट कार्ड की होल्डर्स की संख्या 2.9 करोड़ थी जो कि मार्च 2021 में बढ़कर 6.2 करोड़ हो गई तथा वर्ष 2026 तक 8.3 करोड़ क्रेडिट कार्ड होल्डर्स की संख्या अनुमानित की गई है।
देश में 31 संस्थाओं द्वारा क्रेडिटकार्ड जारी किया जाता है तथा देश में 15 वर्ष से अधिक आयु की 5 से 6 प्रतिशत जनसंख्या क्रेडिट कार्ड का उपयोग करती है।
सवाल यह है कि क्रेडिट कार्ड का चलन तो तेजी से बढ़ा है, जो कि प्लास्टिक मुद्रा मानी जाती है, लेकिन भुगतान क्षमता में कमी के कारण डिफाल्टर्स बढ़ते जा रहे हैं। 05.09.2023
 
 
इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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