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‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......

✍वासुदेव मंगल की कलम से.......
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)

 
भारत में कोरपोरेट जगत का सामाजिक उत्तरदायित्
सामयिक लेख: वासुदेव मंगल, ब्यावर सिटी (राज०)
यद्यपि भारत एक कृषि प्रधान देश है। भारत की आत्मा गाँवों में बसती है परन्तु यह भी सत्य है कि भारत के लोग सामाजिक उत्तरदायित्व के प्रति सदा संवेदनशील रहे हैं। एक दूसरे की मदद करना, दान करना यह सब भारत की संस्कृति में आदिकाल से ही रचे बसे आए हैं। देश की आजादी में औद्योगिक समूहों ने बढ़ चढ़कर गांधीवादी अर्थव्यवस्था में भरपूर योगदान किया है। ट्रस्टीशिप सिद्धान्त के अन्तर्गत महात्मा गाँधी ने बिड़ला, टाटा, डालमिया, रूहिया सेकसरिया, बाजोरिया, बजाज आदि पूँजीपति घरानों को सामाजिक उत्तरदायित्व का निवर्हन करने के लिए प्रोत्साहित करके भारत देश में नगरों में एवं गाँवों में अनेकानेक गरीबों के उत्थान के लिए स्कूल, औषधालय, धर्मशालाएँ चिकित्सालय आदि खुलवाए। कई रैन बसेरे व अन्न क्षेत्र बनाने हेतु प्रेरित किया उद्योगपतियों को ताकि निर्धन लोग भी आजादी के आन्दोलन में सक्रिय रूप से जुड़ सके। ये सब कार्य सामुदायिक आधार पर किए गए। पक्षियों को दाना पानी, कुएं, बावड़ी तालाब आदि खुदवाना, पशु चिकित्सालय स्त्री शिक्षा, अनाथालय। इस बात का जीता जागता उदाहरण लेखक के स्वयं का ब्यावर शहर उदाहरण है जिसमें तत्कालिन मर्चेण्ट एसोशियेशनों ने उस समय सामाजिक सरोकार के भरपूर काम किए उन्नीसवीं सदी के पूर्वाद्ध से ही जैसे दी तिजारती चेम्बर सर्राफान लि. के संरक्षण में गोशाला, धर्मशालाएं नारीशाला, अनाथालय, स्कूलें, पुस्तकालय, वाचनालय, औषधालय, चिकित्सालय सारे काम तिजारत समूह ने ही सम्पन्न किए हैं। वूल मर्चेण्ट, ग्रेन मर्चेण्ट, क्लोथ मर्चेण्ट, जनरल मर्चेन्ट, कॉटन मर्चेण्ट, बूलियन मर्चेण्ट आदि आदि एशोसियशनों द्वारा किए गए कार्य आज भी चल रहे हैं। एक मात्र सिमेण्ट कोरपोरेट घराने जो 1975 में ब्यावर में आया उसने आज तक अडतालिस साल में एक भी सामाजिक सरोकार का कोई भी कार्य ब्यावर में नहीं किया जबकि ब्यावर की मिट्टी से यह घराना फला फूला धनवान बना मात्र अपनी बढ़त्तरी करता रहा। सराफान चेम्बर की गोशाला की मसूदा रोड़ वाली खेतों की जमीन खुर्द बुर्द कर दी गई व औषाधालय बंद कर दिया गया।
हाल में पूर्व प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भारतीय कोरपोरेट जगत को सामाजिक उत्तरदायित्व के प्रति प्रेरित किया गया तथा सामाजिक उत्तरदायित्व को भारत के कम्पनी अधिनियम से जोड़ा गया। कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 135 के तहत् कॉर्पाेरेट सामाजिक उत्तरदायित्व से सम्बन्धित कानून पारित किया गया जिसके अन्तर्गत हर कम्पनी उसकी होल्डिंग व सहायक कम्पनी, विदेशी कम्पनी पर कारपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व कानून को स्वेच्छा पूर्वक लागू किया गया। कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत कोई भी कम्पनी जिसकी कूल सम्पत्ति 500 करोड़ रुपए से अधिक है तथा वार्षिक टर्न ओवर 1000 करोड से अधिक है एवं शुद्ध लाभ 5 करोड़ रुपये से अधिक है उसे प्रत्येक वित्तिय वर्ष में पिछले तीन वर्षों के दौरान कमाए गए औसत शुद्ध लाभ का न्यूनतम दो प्रतिशत स्वेच्छा से सामाजिक उत्तरदायित्वों के निर्वहन पर खर्च करना होगा। इस प्रकार भारत दुनियाँ का पहला देश बन गया, जहाँ पर की सामाजिक उत्तरदायित्व की अवधारणा को कानून के अन्तर्गत लाया गया लेकिन वर्ष 2014 में कारपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व कानून में स्वेच्छा के स्थान पर अनिवार्यता को भी जोड़ा गया है। अव तो ब्यावर में सेठानी गंगाबाई मेटरनिटी होम भी बंद कर दिया गया।
कम्पनियाँ समाज व हितधारक उपभोक्ता, आपूर्तिकर्ता, कर्मचारीगण एवं समाज के सभी विशेषता वंचित वर्ग के जीवन की गुणवता को बेहतर बना सकती है। कम्पनियों के द्वारा समाज के संसाधानों का उपयोग किया जाता है जिसके लिए समस्त समाज त्याग करता है तो उसकी क्षतिपूर्ति में पर्यावरण, शिक्षा, स्वास्थ्य, गरीबी उन्मूलन, ग्रामीण विकास, लैंगिक समानता के क्षेत्र में आवश्यक है।
आज के परिपेक्ष में यदि सामाजिक सरोकार की बात करें तो भारत में, गाँवों में तथा नगरों में, शहरों में जहाँ जहाँ पर भी औद्योगिक विकास है सब जगह इस प्रकार के क्रान्तिकारी कदम सरकार को उठाये जाने चाहिए ताकि गरीबी उन्मूलन हो सके। जिस प्रकार औद्योगिक विकास में क्रान्ति हुई है उसी अनुपात में सामाजिक विकास करना भी अनिवार्य है तब ही वास्तव में देश उन्नति कर सकेगा अन्यथा कदापि नहीं। अतः सामाजिक समरसता के क्षेत्र में उद्योगपतियों की मानसिकता को बदलना जरुरी है ताकि उद्योगों के विकास के साथ साथ सामाजिक सौहाद्र भी बढ़ सके। आज भी सामाजिक दायित्व का बजट आय की गणना में नगण्य है। अतः कम्पनी के सामाजिक सरोकार अधिनियम में संशोधन किया जाना चाहिये जिससे आय वितरण की अत्यधिक असमानता को 18 प्रतिशत गरीब जनता का समान रूप से वितरण किया जा सके। आज भी 2014-15 में 6388 करोड़ जो 2022-23 में 25933 बजट इस मद में हो गया वह भी बहुत कम है, गरीब जनसंख्या के अनुपात में यद्यपि चार गुना अधिक है नो साल में फिर भी बहुत कम है। आज भी यह बजट पर्यावरण चेतना शिक्षा में स्वास्थ्य सेवाओं में, सुविधाओं में एवं लैंगिक समानता में बहुत कम है जिसकी भरपाई आर्थिक समानता के लिये प्रयास तेज किए जाने चाहिये तब ही अमीरी गरीबी की असमानता कम की जा सकेगी। सामाजिक उत्थान का सरकार का सोच तो बहुत अच्छा है लेकिन यह धरातल पर दिखना चाहिए तब ही सार्थक है।
19.08.2023
 
इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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