‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे
से.......
✍वासुदेव मंगल की कलम से.......
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)
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डेमोक्रेसी बनाम डायनेस्टी |
सामयिक लेख: वासुदेव मंगल, स्वतन्त्र लेखक ब्यावर (राज.)
पहला कारण:- केन्द्र की सरकार राज्यों के सँघीय ढाँचे को तोड़ने, बिखरने
का काम कर रही है। यह काम मौका उत्पन्न कर होर्स ट्रेडिग के जरिये किया
जा रहा है। उदाहरण के लिये सबसे पहले मध्य प्रदेश राज्य मे कांग्रेस की
कमलनाथ वाली सरकार को गिराया गया। दूसरी बार दक्षिण भारत के कर्नाटक
राज्य की सरकार को भी इस प्रकार कांग्रेस पार्टी की सरकार को गिराकर
बी.जे.पी. की सरकार बनाई गई। और अब महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी की
सरकार गिराकर शिंदे के नेतृत्व मे सरकार बनाई गई। इस प्रकार लोकतन्त्र
की स्वस्थ परम्परा पर सीधा आक्रमण कर राज्यों के संघीय ढाँचे को नुकासन
पहुँचा रही है।
दूसरा कारण:- नफरत की राजनीति, असहिष्णुता की राजनीति और कट्टरता की
राजनीति से केन्द्र में वर्तमान मे एन.डी.ए. की घटक भारतीय जनता पार्टी
की सरकार देश के ज्वलन्त मुद्दों से देश की जनता का ध्यान हटाकर जैसे
मँहगाई का मुद्दा, बेरोजगारी के मुद्दों पर बात नहीं करती है अपित गौण
मुद्दों पर करती है जैसे धार्मिक उन्माद जबकि मुख्य मुद्दे रोजगार देने
का और मँहगाई कम करने का होना चाहिये। इन मुद्दों पर सरकार एक दम चुप
है। अतः भारत की एक सौ बयालिस करोड़ निव्वासी लाख जनसंख्या वाले इतने बड़े
विशाल देश के आवाम को भगवान भरोसे छोड़कर हथियारों के व्यापार में लगी
हुई है। अतः इन मुद्दों से गरीब, भूखी जनता का पेट थोड़े भरेगा। सरकार
को अनाज का समुचित प्रबन्ध करना चाहिये और कुपोषण और गरीबी दूर करने के
रोजगार अधिक से अधिक अवाम को देकर प्रबन्ध कर देश की माली हालत दूर करने
से स्वतन्त्रता के पिच्चेत्तरवें वर्ष में मनाये जाने वाला अमृत
महोत्सव सार्थक हो सकेगा अन्यथा कदापि नहीं। इस बात का सरकार को ध्यान
रखना है विशेष कर राज्यों में और केन्द्र में चुनाव के समय में विशेष
ध्यान रखना है जो आधारभूत मूलभूत आवश्यकता है अवाम की। तीसरा कारण:-
विपक्ष को संसद में चर्चा से रोका जाता है। जब प्रतिपक्ष की पार्टी का
संसद सदस्य बोलने लगते हैं तब या हो उनका माईक बन्द कर दिया जाता है या
शोर मचाया जाता है सत्ता पक्ष द्वारा ताकि सदन में उनकी चर्चा रेकार्ड
नहीं हो सके और सत्ता पक्ष अपनी मर्जी से एक तरफा कार्यवाही करवाकर अपनी
मन मर्जी प्रश्नगत विधेयक के मशोदे पर थोप सके।
चौथा कारण:- विरोध की प्रत्येक बात को बेरहमी से दबा दिया जाता है।
लोकतन्त्र के मन्दिर मे नीति-निर्धारित व्यवस्था के अनुरूप सदन का
संचालन न कराकर अपनी मनमर्जी से तानाशाही रवैय्ये से एक तरफा कार्यवाही
करवा कर अपनी मनमर्जी से हर विधेयक अल्प ध्वनिमत से पास कराये जाते
हैं। जो अलोकतान्त्रिक तरीका है क्योंकि विपक्ष तो सदन से बहिर्गमन कर
जाता है।
पाँचवा कारण:- लोकतन्त्र के स्तम्भ ध्वस्त नित रोज किये जा रहे है।
नियमानुसार जो संसदीय समितियाँ बनाई हुई है। जो चर्चा संसदीय समितियों
को जानी चाहिये उनको निष्क्रिय कर मनमर्जी से विपक्ष की आवाज को दबाकर
विधेयक पास कराये जा रहे है तो फिर लोकतन्त्र का महत्व कहाँ रहा
संविधान द्वारा प्रदत्त लोकतन्त्रिय, समाजवाद धर्मनिरपेक्ष सिद्धान्तों
का खुल्लमखुल्ला मखोल उड़ाया जा रहा है केन्द्र की वर्तमान में भारतीय
जनता पार्टी की सरकार, द्वारा मनमाने ढंग से सदन की गरिमा के विरुद्ध
या तो लोक सभा के पीठासीन अध्यक्ष को या फिर राज्यसभा में भी राज्य सभा
के पीठासीन अध्यक्ष को सत्ता पक्ष विश्वास में लेकर गलत तरीके से सदन
के संचालन किये जा रहे हैं।
छठा कारण:- आज वर्तमान में केन्द्र की सरकार में निरंकुश तानाशाही का
बोलवाला है। देश का प्रत्येक संस्थान प्रधान मन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी
के कब्जे में है। मोदीजी ने तानाशाही रवैया आख्तियार कर रखा है। हर
संस्थान से अपनी यह लोकतन्त्र मनमर्जी से बात मनवाने की नई प्रथा चालू
कर रक्खी है। अतः यह लोकतन्त्र की प्रत्यक्ष रूप से हत्या हो रही हैं
परिणामतः देश के अवाम में गुस्सा है। गरीबों को देश के होनहार नव युवकों
और नव युवतियों को पढ़े लिखों को रोजगार न देकर उनकी आकांक्षाओं का हनन
कर रही है सरकार। नतीजा देश के युवाओं मे सरकार के प्रति गहरा आक्रोश
है। यह विस्फोट देश में इन बेरोजगार युवाओं का कभी भी प्रस्फुटित हो
सकता है जिससे देश में अराजकता उत्पन्न होकर नासूर बन सकती है।
संवैधानिक संस्था के अपने नियम कायदे है। ये संस्थान कभी सरकार के दबाव
में काम नहीं करती है। परन्तु अगर ऐसा होने लग जाय तो फिर शासन व्यवस्था
(सिस्टम) मे बचा ही क्या? फिर तो सरकार की मनमर्जी से हर काम तानाशाही
से होने लगेगा, अतः वर्तमान में ऐसा ही हो रहा है। सरकार अपने फायदे के
लिये एक एक विपक्षी पार्टी को अलग कर अपना हित इन संस्थाओं के माध्यम
से साध रही है जो तरीका लोकतन्त्रीय प्रणाली में बिल्कुल एकदम गलत है।
तो देश अधिनायकवाद की ओर अग्रसर हो रहा है जो देश के लिये गलत परम्परा
का सूचक है। अतः देशवासियों को चुनाव के वक्त की इस गलत व्यवस्था को
अपने विवेक से मताधिकार का उपयोग कर सही तरीके से कर माकूल करना है।
सरकार के झूठे प्रलोभन में नहीं आकर वोट स्वयं के विवेक से करना है।
आपका एक वोट किस्मत बदल सकता है इतनी बड़ी शक्ति है आपके इस एक मत में।
अतः मेरे प्यारे देशवासियों समय की नजाकत को समझते हुए आपको अपने
मताधिकार का उपयोग करना है। आज देश दो राहों पर खड़ा है, आपको देश का
भविष्य तय करना है कि आप देश विकास के मार्ग पर ले जाना चाहते है या
फिर विनाश के गर्त में। यह आपकी सोच पर निर्भर करता है। सरकार को पटरी
पर लाने का काम देशविासियों का है जो आसानी से कर सकते है चुनाव के समय।
भारत जैसे गरीब देश मे खुशहाली तभी आ सकती है जब प्रत्येक भारतवासी को
काम मिले। भारत में प्राकृतिक संसाधनों की कमी नहीं है। अपरिमित सम्पदा
का भण्डार भरा है भारत देश में। आवश्यकता है मात्र इन सम्पदा के
वैज्ञानिक तरीके समुचित उपयोग करने की। कच्चा माल खनिज सम्पदा अपार
मात्रा में देश में धरती में दबी भरी पड़ी है। आवश्यकता है उसके दोहन
की। देश में पावर की कमी नहीं है। आवश्यकता है सरकार प्रत्येक माल के
उत्पादन कर्ता को सस्ती उपलब्ध कराने की चाहे वह या फिर तेल हो या फिर
प्राकृतिक गैस हो। पानी समुचित मात्रा में उत्पाद को सुलभ होना चाहिये।
इसी प्रकार तैय्यार माल को बेचन की बाजार में सस्ते रूप से बेचने के
लिये सबसीडी देकर विक्रेता को सरकार को प्रोत्साहित करना चाहिये ताकि
देश उत्तरोत्तर तरक्की करता रहे ऐसी तत्परता सरकार में सच्ची लगन
ईमानदारी से हो तो देश चन्द रोज में ही विकास के पथ पर अग्रसर होगा और
भारत फिर से दुनियां में सोने की चिड़िया कहलायेगा। एक बार पुनः भविष्य
में अगर ऐसी भावना सरकार और अवाम दोनों की होगी तो फिर आप देखियेगा
भारत की तरक्की को पूरी दुनियाँ मानेगी भारत के विकास को और सारे
देशवासी खुशहाल होंगे ऐसी सूरत में।
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