‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे
से.......
✍वासुदेव मंगल की कलम से.......
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)
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सही गलत का भेद समाप्त, लोक पर तन्त्र
की मार |
सम सामयिकः वासुदेव मंगल, स्वतन्त्र लेखक ब्यावर (राज.)
सत्ता नीति से चलती हैः- साम, दाम, दण्ड, भेद सत्ता शासन है दूसरों पर।
इसमें संवेदना का लेशमात्र भी अंश नहीं रहता। सत्ता में अहंकार तो है
ही क्रूरता भी रहती है। समान स्वार्थ के कारण संगठन बनते है बिगड़ते है।
निर्बल को जीने का अधिकार नहीं है। आज जीवन पर दौहरी मार पड़ रही है।
शिक्षा में स्वार्थ है संवेदना नहीं है। यही व्यक्ति सत्ता में बैठकर
आसुरी स्वरूप ले लेता है। अपने योग के लिए किसी की भी आहुति दे सकता
है। वह सभ्य कहलाता है।
हमारे देश में लोकतन्त्र जैसी पवित्र संस्था की आड में भी सभ्म लोगों
की नृशंसत्ता जारी है। लोक पर राजशाही की मार पड़ती है। राजा लोक सेवक न
रहकर स्वयं सेवक का हित ही सर्वाेपरि समझ बैठता है। सभ्य लोग सुसंस्कृत
नहीं हैं। आज भी इन्हीं की कृपा से आधा देश (48 प्रतिशत गरीबी रेखा से
नीचे) अमृत महोत्सव मना रहा है। इनमें भी जो आदीवासी है, पिछड़े हैं,
विषम भू भागों में रहने वाले है, वे सत्ताधीशों की मौज मस्ती, ऐशो-आराम
का माध्यम बने हुए हैं। उन्हीं के लोग, उन्हीं के नाम पर, कानून का
सहारा लेकर, उन्हीं का उत्पीड़न कर रहे हैं। जबकि आदिवासियों में इस देश
की निर्मल शुद्ध आत्मा बसती है। ये शबरी के वंशज है। हमारे आदिवासी
भारत की मूल संस्कृति के वाहक है। कभी रजवाड़ों की सुरक्षा का जिम्मा था
इनके पास। आज स्वयं की जान के लाले पड़े हैं। सरकारें तो सभी इनको
निर्दयता से प्रताड़ित करती रहती है। लोकतन्त्र में इनकी कोई सुनने वाला
नहीं।
भारत जैसा महान देश राजनीति की भेंट चढ़ गया है। राजनीति अलग अलग धड़ों
को एक दूसरे के खिलाफ उकसाती है। दूसरों का अहितकर स्वयं का हित करना
ही राजनीति का मात्र ध्येय रह गया है। जनता लाचार दिखाई दे रही है। युवा
कुछ कर नहीं पाने के अपराध से बोध से - बेरोजगारी से ग्रसित है। राजनीति
युवा को सर सब्ज बाग ही दिखाती रहती है। भौतिक सुखों की चाह में शिक्षा
प्रणाली की विसंगतिया आग में घी का काम कर रही है। पात्रता है या नहीं
है, यह नहीं देखा जाता है, रातों रात व्यक्ति पाना चाहता है। सरकारें
मुफ्त बाँटने लगी है। घर बैठे पेट भर रहा है। बिना पेट भरने की चिन्ता
किए अपराधी मस्त है। चुनावों में उसकी मदद राजनेता को चाहिए। अपराधी को
आश्रय देना लाचारी है, राजनेता की।
भ्रष्टाचार का धन खपाने के लिये बड़ा अपराधी चाहिए। माफिया चाहिए हथियार,
हिंसा, नशा, मे तीन आँख होती है माफिया की। ये तीनों ही देश के शत्रु
है। प्रत्येक देश की राजनीति मूल में माफिया ही चलाता है। आजकल नेता
लोग माफिया के हाथों की कठपुतलियाँ बनते जा रहे है। उन्हें धन के आगे
देश छोटा लगता जा रहा है। जिस वोटर को वे साधना चाहते है, पिछले दरवाजे
से उसी को उजाडते जाते है। सही गलत का भेद समाप्त हो गया है। आज हो यह
रहा है कि अपराधी सही और कानून गलत हो गया। बड़े बड़े न्यायालयों के फैसले
लागू नहीं हो पा रहे। पुलिस भी सरकार की। वह आज तो कमाऊपूत भी है।
हर सदाचारी कम्पति है। माताएँ अप्रत्याशित आपातकाल - अपहत होत लाल कन्या
के हलाल और समाज में फैलते हलाहल से विशाग्रस्त होने लगी है। क्या वोट
माँगने घर घर जाने वाले राजनेताओं के दिलों को इनकी पीड़ा छू पाएगी ?
कुदरत ने जल, नम, थल की देश को अकूत सम्पदा दी है। आवश्यकता है मात्र
इसके विवेक पूर्ण दोहन की। जल, जंगल, ज़मीन के वैज्ञानिक दोहन से क्या
कुछ नहीं किया जा सकता? सब सम्भव है यदि राजा अपनी प्रजा को तह दिल से
खुशहाल बनाना चाहे तो नेक दिल से अपनी प्रजा की सच्ची सेवाकर, ऐसा कर
सकता है। राजा का राजघरम व्यापार करना न होकर सही मायने में प्रजा की
मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करना होता है। विश्व मे भारत देश में अपार
श्रम शक्ति है। एक सौ ब्यॉलिस करोड़ नव्वासी लाख जनशक्ति के दो सो
पिच्चासी करोड़, अठहत्तर लाख हाथों से नहीं हो सकता प्रत्येक काम सम्भव
है। आज देश में कच्चा माल जिन्स अपार मात्रा में उपलब्ध है। श्रम शक्ति
है भरपूर है। देश में कच्चे माल का उत्पादन करने में बिजली सस्ती दर पर
देने की आवश्यकता है सरकार को। बने हुए माल को बेचने मे सब्सीडी भी
सरकार देकर विश्व बाजार की वस्तुओं की तुलना में बेचने की प्रोडक्ट को
प्रोत्साहित कर देश के विकास मे अभूतपूर्व सहयोग कर सरकार देश की
चहुँमुखी उन्नति कर सकती है। ऐसा कर देश की बेरोजगारी दूर की जा सकती
है। ऐसा करने प्रत्यक वस्तु पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होने से महँगाई
की समस्या भी स्वतः ही समाप्त हो जाएगी। देश खुशहाल होगा और देश का
प्रत्येक नागरिक मालामाल होगा।
आवश्यकता है सुलभ साधनों का सही ढंग से उपयोग कर अधिक से अधिक खपत
जुटाने की ताकि देश विकसित राष्ट्र की श्रेणी मे आ सके वस्तु की किस्म
उपभोक्ता की पसन्द के अनुसार निर्मित होनी चाहिए।
हमारे देश की निर्मित वस्तु अन्य देशो मे निर्यात की जा सके जिससे देश
की करेन्सी बढे़।
अतः अब समय आ गया है कि किफायती देश विकास के आयाम निर्मित कर सके।
समाज की असमानता को सहज ही दूर करना होगा। उपयोग की तमाम वस्तुओं की
माँग और पूर्ति में संतुलन बनाकर चलना होगा वस्तु के उचित और किस्म पर
विशेष ध्यान रखना होगा। उपभोक्ता की पसन्द को ध्यान में रखकर उत्पादन
करना होगा।
लोकतन्त्र में प्रजा ही सब कुछ है। प्रजा की सहुलियत ही सब कुछ है।
भारत देश मे सब कुछ है। अतः आज गोण मुद्दों की जरूरत नहीं है। ये सब
अतीत की यादें बनकर रह गई है। सही मायने मे देश की तरक्की करनी है तो
क्रान्तिकारी मुद्दों को अपनाकर ही देश को आगे ले जाया जा सकता है। पूरे
देश मे यह ही सोच जरूरी है।
सरकार को बेरोजगार को मात्र सहारा देने की दरकार है। अगर व्यक्ति योग्य
होगा तो सरकार का सहारा पाकर अपने आप ही तरक्की कर लेगा उक्तरू गियर-अप
करने की जरूरत है
ऐसी सूरत में देश में न तो बाहुबलि होंगें ना ही माफिया होंगें और ना
ही अपराधी होंगें। ना ही आतंकी होगा और नही नशा करने वाला। पूरा अवाम
मेहनतकश होगा और पूरा देश विकास के रास्ते पर होगा। न ही किसी प्रकार
की हिंसा होगी।
ऐसी सूरत में देश की राजनीति सही हाथों में होगी। माफिया राजनीति से
दूर होगा और सत्ता का सही परिणाम होगा देश का निरन्तर विकास।
अब चुनाव आ रहे हैं देश के वोटर को सही आकलन कर अपने मतााधिकार का स्वयं
के विवेक से उपयोग कर देश के विकास मे भागीदार बनना है। आपका एक मत
बहुत कीमती है। देश के विकास मे आपका एक वोट चार चाँद लगा देगा।
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