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ब्यावर
की
स्थापना
की
176वीं
वर्षगाँठ
पर
विशेष
ब्यावर
का राजनैतिक,
आर्थिक, व्यापारिक
व औद्योगिक
पराभव
लेखक
-वासुदेव
मंगल
1 फरवरी सन् 1836 ई0 को
ब्यावर
अपनी
स्थापना
दिन
से
मेरवाड़ा
स्टेट
के
मुख्यालय
के
नाम
से
जाना
जाता
रहा
है।
घने
जंगलों
और
घाटियों
के
बीच
176 साल
पहीले
अरावली
श्रृँखला
के
मध्य
एक
छोटे
से
ढलवाँ
पठार
पर
मारवाड़
के
पूर्व
से
सटे
हुए
मेवाड़
देशी
राज्य
से
उत्तर
से
सटे
हुए
राष्ट्रीय
राज्य
मार्ग
संख्या
चवदा
पर
ईसा
मसिह
के
पवित्र
चिन्ह
क्रोस
की
आकृति
पर
विश्वभर
में
एकमात्र
शहर
ब्यावर
को
स्कोटलेण्ड
के
सैनिक
अधिकारी
सर्व
धर्म
सम्भाव
के
प्रणेता
कर्नल
चाल्र्स
जार्ज
डि़क्सन
ने
बडे़
ही
खूबसूरत
नायाब
तरीके
से
जंगलों
को
अपने
सैनिकों
से
साफ
कराकर
शहर
की
किलेबन्दी
चारों
दिशाओं
में
चार
दरवाजों
के
साथ
परकोटे
से
कर,
नागरिक
सुरक्षा
के
साथ
बसाया
था।
अतः
ब्यावर
की
पृष्ठभूमि
मेरवाड़ा
स्टेट
कहलाई
जिसका
सीधा
सादा
अर्थ
है
मेर
(पहाड़ी)
जाति
का
राज्य।
समय
के
साथ
सन्
1952 में
यह
अजमेर
मेरवाड़ा
के
नाम
से
स्टेट
‘स’
श्रेणी
का
राज्य
स्वतन्त्र
भारत
का
राज्य
बना।
अर्थात
अजमेर
और
मेरवाड़ा
को
मिलाकर
राज्य
बनाया
गया।
जिनको
जिला
का
नाम
दिया
गया
ब्यावर
और
अजमेर।
1 नवम्बर
सन्
1956 को
अजमेर
मेरवाड़ा
राज्य
को
राज्य
का
सबसे
बड़ा
उपखण्ड
बनाया
गया।
कहने
का
मतलब
ब्यावर
को
स्टेट
से
जिला
बनाया
गया।
फिर
जिले
से
उपखण्ड
बनाया
गया।
और
उपखण्ड
के
भी
टुकडे
करके
भिनाय,
केकड़ी,
मसूदा
अलग
से
उपखण्ड
बनाये
गए।
अतः
जो
ब्यावर
अपनी
स्थापना
से
ऊन
और
कपास
जिन्सों
में
राजपूताना
राज्य
का
सिरमौर
अंगे्रजी
काल
में
रहा।
राष्ट्रीय
स्तर
पर
भारत
की
राष्ट्रीय
मण्डी
रही।
अनाज
में
राज्य
मण्डी
और
सर्राफा
व्यापार
में
राष्ट्रीय
मण्डी
रही।
उस
मण्डी
को
तोडकर
सर्राफा
व्यापार
प्रायः
समाप्त
वायदा
और
हाजिर
व्यापार
समाप्त
कर
दिया
गया।
अनाज
की
मण्डी
ब्यावर
से
हटाकर
जैतारण
व
कालू
आनन्दपुर
कर
दी
गई।
ऊन
की
मण्डी
ब्यावर
से
हटाकर
केकड़ी
और
बीकानेर
कर
दी
गई
व
कपास
रूई
की
मण्डी
ब्यावर
से
तोड़कर
बिजयनगर,
गुलाबपुरा
कर
दी
गई।
इस
प्रकार
ब्यावर
के
100 साल
के
अग्रहणी
व्यापार
को
प्रायः
समाप्त
कर
पाँच
हजार
व्यापारी,
आड़तियों,
मुलीम-गुमास्तों
पल्लेदारों,
तुलावटियों
को
बेरोजगार
सदा-सदा
के
लिये
कर
दिया
गया,
जिनसे
पच्चीस
हजार
लोग
रोटी
रोजी
से
जुड़े
हुए
थे।
इसी
प्रकार
ब्यावर
में
तीन
सूती
कपडे़
की
मिल्स
होने
के
कारण
ब्यावर
राजपूताने
का
मैनचैस्टर
कहलाता
था
जिनमें
रातदिन
पाँच
हजार
मजदूर
काम
करते
थे।
इसी
प्रकार
पन्द्रह
बीस
वूल
काॅटन,
जिनिंग,
पे्रसिंग,
फैक्ट्रीज्
कार्यरत
थी।
अतः
ब्यावर
से
स्वतन्त्रता
के
बाद
उद्योग
जगत
के
सूती
कपड़ा
कल
कारखानों
को
बन्द
करके
इस
क्षेत्र
के
पाँच
हजार
मजदूर,
गुमास्तों,
कर्मचारी
व
अधिकारियों
को
बेरोजगार,
लगभग
पच्चीस
हजार
लोगों
को
रोटी-रोजी
से
महरूम
कर
दिया
गया।
तात्पर्य
यह
है
कि
जिस
राज्य
ने
अंगे्रजी
राज
में
व्यापार
उद्योग
में
बुलन्दी
हासिल
की
उसकी
दुर्गति
के
लिए
वर्तमान
की
स्वतन्त्र
भारत
की
के्रन्द्रिय
और
राज्य
सरकारें
जिम्मेदार
हैं
जिन्होंने
एक
अंगे्रज
के
बसाये
जाने
के
कारण
स्वतन्त्र
भारत
में
एक
विकसित
स्टेट
को
ब्यावर
शहर
को
उजाड़
दिया।
क्या
कभी
आपने
ऐसा
स्वतन्त्र
भारत
में
विकास
देखा
या
फिर
विनाश
आपकी
प्रतिक्रिया
का
इन्तजार
रहेगा।
Author - Vasudeo Mangal
गीता
कुँज,
गोपालजी
मौहल्ला
ब्यावर
(राज.)
फोन
नं.
01462 252597
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