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‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......

✍वासुदेव मंगल की कलम से.......  ब्यावर सिटी (राज.)
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)


गणेश चतुर्थी पर विशेष
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पौराणिक कथाओं पर आधारित गणेशजी का बहुआयामी लेख
लेखक वासुदेव मंगल, ब्यावर सिटी व जिला
गणो के अधिपति अर्थात् गणपति...देवों में प्रथम पुज्य देवः
पहला कारण - शरारती और चंचल पक्षः
जब गणेश भगवान विष्णु के शंख से खेल रहे थे कैलाश पर्वत पर तो अपना शंख प्राप्त करने के लिए विष्णु शिव की सलाह से विनम्रता और भक्ति के गणेश की पूजा ही इसका एक मात्र उपाय है जिससे विष्णु के भव्य गणेश पूजा के आयोजन से प्रसन्न होकर गणेश ने विष्णु को शंख लौटाया।
दूसरा कारण - दुर्वा ने शान्त की पेट की ज्वाला:
शिव की सलाह से देवताओं द्वारा गणेशजी की स्तुति से प्रसन्न होकर गणेशजी द्वारा अलनासुर राक्षस को निकलने से उनके पेट में भयंकर उत्पन्न जलन को कश्यत ऋषि ने 21 दुर्वा खिलाकर पेट की ज्वाला शान्त की। अतः वे दुर्वा से सदैव प्रसन्न रहते हैं।
तीसरा कारण - माता पार्वती द्वारा गणेशजी को स्वास्थ्य की चिन्ताः
लड्ड, मोदक व गन्ना मीठे पदार्थ खाने से जाहीर की तब गणेशजी ने कबीट फल, और जामुन व केसर का सेवन करने लगे। इस प्रकार गणेशजी ने अपनी आहारशैली में बदलाव कर औषधीय युक्त आहार करके अपने भक्तों को स्वास्थ्य और शुद्धता का सन्देश दिया। अतः भक्तों द्वारा इस प्रकार की आराधना करने से सभी दुखों और रोगों का नाश होता है।
चौथा कारण - चूहा क्यों है गणेश का वाहनः
सभी देवताओं द्वारा गणेशजी की स्तुति करने पर गणेश द्वारा गजमुखासुर नामक दैत्य को अपने दाँत से प्रहार से भगाया। जब दैत्य चूहा बनकर भागने लगा तो गणेशजी ने उसे पकड़ लिया । मृत्यु के भय से दैत्य में क्षमा याचना करने पर गणेशजी ने चूहे को अपना वाहन बना लिया। एक अन्य कथानुसार इन्द्र का दरवासी जब गन्धर्व क्रौंच द्वारा अप्सराओं से हंसी ठिठोली करने पर इन्द्र ने उसे चूहा बन जाने कर श्राप दिया। वह क्रौंच बलवान मूषक के रूप में पाराशर ऋषि के आश्रम में जा गिरा। आश्रम में उत्पात मचाने पर ऋषि ने गणेश से मदद माँगने पर गणेशजी ने मूषक पर तेजस्वी पाश फेंककर उसे मूर्च्छित किया। मुर्छा खुलने पर मूषक ने गणेशजी की आराधना कर वरदान मांगा। परन्तु मूषक ने गणेशजी से कुछ नहीं मांगकर बदले में गणेशजी को वरदान माँगने को कहा। तब गणेशजी कहा ठीक है, अब से तुम मेरे वाहन होंगें।
पाँचवा कारण - समग्रता का प्रतीक है मोदक:
भगवान गणेश को मोदक इसलिए प्रिय है क्योंकि मोदक का स्वरूप ज्ञान, मिठास और आनन्द का प्रतीक माना जाता है। मोदक के महत्व के पीछे मोद और ज्ञान पर एक बार देवताओं ने बुद्धिमता और ज्ञान की परीक्षा आयोजित की जिस प्रतियोगिता में सबसे पहले पूरी दुनिया का चक्कर लगाकर आने वाले को विजेता घोषित किया जाना था। अपनी सूझभुज से माता पार्वती और भगवान शिव जो पूरे ब्रह्मांड का प्रतीक है। की परिक्रमा करके जीत हासिल की। उनकी इस चतुराई से प्रभावित होकर देवताओं ने उन्हें मोदक का भोग अर्पित किया, जिसेे उन्होंने बड़ी प्रसन्नता से ग्रहण किया। तभी से गणेशजी को मोदक प्रिय है। इसके अतिरिक्त मोदक का गोल आकार भी पूर्णता और समग्रता का प्रतीक है।
छठा कारणः क्यों किया जाता है विसर्जनः
शास्त्रों की रचना करने में भगवान ने वेद व्यासजी को प्रथम पूज्य बुद्धि निधान श्री गणेशजी की सहायता लेने के लिए कहा गणेशजी जब वेदव्यासजी के पास गए तो उन्होंने गणेशजी को गणेश चतुर्थी के दिन आसन स्थापित कर बड़े आदर सत्कार के साथ विराजमान कराया अतः गणेशजी की स्थापना गणेश चतुर्थी के दिन ही की जाती है। तत्पश्चात् वेद व्यासजी में बोलना आरम्भ किया और गणेशजी ने उसे लिपिबद्ध करना लगातार 10 दिन तक यह सिलसिला यों ही चलता रहा और अनन्त चतुर्दशी के दिन इसका समापन हुआ। भगवान की लीलाओं और गीता का रसपान करते करते गणेशजी को अष्ठसात्विक भाव अर्थात् आठों प्रकार के भावों का आवेग हो गया था जिससे उनका शरीर गर्म हो गया था। गणेशजी की इस तपन को शान्त करने के लिये वेद व्यासजी ने उनके शरीर पर गीली मिट्टी का लेप किया। इसके बाद फिर उन्होंने गणेशजी को जलाशय में स्नान कराया जिससे उनकी तपन शान्त हुई। इसी कारण विसर्जन की प्रथा बनी।
भगवान गणेश विघ्नेश्वर है। भगवान गणेश मंगल और शुभ के देवता है। ये जहां स्थापित होते हैं वहां सब शुभ हो जाता है। गणों (समूह) के ईश यानी देवता होने के कारण ही इन्हें गणेश कहा गया है। जहां गणेश स्थापित होते हैं वहां हमेशा सुख, समृद्धि, शुभ, लाभ और वैभव बना रहता है। इसीलिए इन्हें मंगल मूर्ति कहा जाता है। इनकी स्थापना, आराधना और विसर्जन बेहद सरल है। इसमें किसी भी तरह की खास विधि की जरूरत नहीं पड़ती। इसीलिए हर घर में इनकी स्थापना होती है। गणेश भाव और तत्वों के स्वामी है, इसीलिए पूजा में त्रुटि होने के बावजूद उसके दोष दूर कर देते हैं और सामान्य पूजा भी स्वीकार कर लेते हैं।
गणपति का आना और जाना दोनों ही शुभ है।
गणेश की आराधना सबसे सरल।
अशुभ और अमंगल का नाश कर देते है ऐश्वर्य-समृद्धि
शुभ मुहूर्त रूप है गणपति, आज्ञा बिना पूजा में नहीं जाते देव
नारायण शक्तियाँ और रिद्धि-सिद्धि में लक्ष्मी का वास
गणपति की विदाई भी अनुष्ठान - जल में नारायण का नाम गणेश और नारायण का वास होता है, इसलिए गणेश और नारायण के मिलने का ये अनुष्ठान समृद्धि व पूर्णत प्रतीक होता है।
07-09-2024
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इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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