गुडफील बनाम
बेडफील
वास्तव में फीलगुड तो उनको हो रहा है जो विभिन्न जेलों में सजा भोग रहे 60 से
अधिक कैदियों की मध्य प्रदेश में सजा माफ कर दी गई है। जेल से भागने वाले
बेअन्तसिंह के हत्यारों, फूलनदेवी के हत्यारों को हो रही है, तेलगी काण्ड में
खरबों रूपयों का घोटाला करने वालों को असली फीलगुड हो रहा है। आज भारत में
सर्वाधिक बीमार, निरक्षर, बेघर लोग रहते है। यहाॅं के लोग आज भी कुपोषण, भूख के
शिकार है तथा फुटपाथों पर रात बिताने को मजबूर है। हो सकता है कि 105 करोड़ की
आबादी वाले इस देश के एक करोड़ लोगों को अच्छा खास फीलगुड नजर आ रहा हो। इस
फीलगुड फेक्टर के चलते 22 करोड़ लोगों को आज भी स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं है। 70
प्रतिशत आबादी गन्दगी में अपना जीवन बसर कर रही है जहाॅं पर सफाई के प्रर्याप्त
प्रबन्ध नहीं है। 13 करोड़ लोगों को स्वास्थ्य सुविाधाऐं उपलब्ध नहीं है एवं देश
के 45 प्रतिशत बच्चे प्राथमिक स्तर की शिक्षा सुविधा भी ग्रहण नहीं कर पा रहे
है। देश में ढ़ाई करोड़ बाल श्रमिक होटलों पर, अन्य औद्योगिक स्थानों पर अपना
पसीना बहाकर दो जून की रोटी-रोजी जूटा रहे है। पुलिस काॅंस्टेबिल व रेल्वे
लाइनमेन की भर्ती में स्नातकोत्तोर स्तर के लोग हजारों की संख्या में इन छोटी
नौकरियों में साक्षातकार देने जा रहें है। नौकरी तो उन्हें मिल नहीं रही है व
पुलिस के डन्डे, गोलीयाॅं खाकर बेरंग लौट रहें है। ऐसे ही अनेक पहलू है जिन्हें
देखकर यह कहा जा सकता है उतना फीलगुड का अहसास आम लोगों की जिन्दगी में नहीं है
जितना की सरकार टेलीविजन व समाचार पत्रो के माध्यम से दिखा रही है। मात्र
मुटठीभर लोग अमीर से ज्यादा अधिक अमीर हो रहे है और बाकी देश की 99 प्रतिशत
गरीब जनता और भी ज्यादा गरीबी, दुखी, कंगाली, बेबसी, मंहगाई, बेरोजगारी, बदहाली
में पिसी व पिटी जा रही है जिसका खैवैय्या कोई नहीं है। उनकी दुरदशा की पुकार
कोई स्थानीय अथवा राज्य की या केन्द्र की सरकार सुनने वाली नहीं है। वे तो
मात्र अपने मोहरों को फीट करने में लग रही है या अपना उल्लू सीधा करने में लगी
है। देश व देश की जनता जाये भाड़ में। उनको जनता के दुख दर्द से क्या लेना देना?
राजनीति, शिक्षा और चिकित्सा तो आज व्यवसाय बन गया सेवा कार्य नहीं रहा।
सत्ताधीश बनना या उनकी चैकडी में पहुॅंचना शुद्ध व्यवसाय जिसमें लाभ के ग्राफ
के लिए कुछ भी, कैसे भी करने और उसे सही ठहराने की मैराथन दौड़ है। नौकरशाही उपर
से नीचे तक विधायिका के चाल चलन से पीछे नहीं रहना चाहती और न्यायपालिका स्वयं
मान चुकी है कि उसके आॅंगन में यह नया फलसफा धीमक बन गया है। बचे हुए मीड़िया का
कृत्य भी मिशन के स्थान पर मालिकों के हित साधन और व्यवसाय का उपकरण बन गया है।
माल फेंको और सम्पादकीय से समाचार तक खरीद लो। चारों सत्ताऐं किसी भी कारण से
सही, सत्य के विरूद्ध लाभबद्ध हो गई है। यहीं कालदशा सभी राजनैतिक दलों की है।
कोई भी सत्ताधीश बने, आर्थिक नीतियाॅं नये मुखौटे में विश्व बादशाह की ही होगी।
फिर सब नाजायज जायज है। बस जनछवि उज्जवल रहे और चन्द ईमानदार मूढ़ और शहीद जुबान
पर, मूर्ति और फोटो के रूप में मन्दिर-मस्जिद-गुरूद्धारा दिखे। नौकरशाही कुर्सी
बदल के अलावा वही। सत्ता दलाल, औद्योगिक घराने और कार्यकर्ता बदल जाये या नये
स्वांग में राजनैतिक कार्यपद्धति वहीं, मेहनतकश उलझा रहे घोषणाओं की मृगतृष्णाओं
में और अपराध श्रीसत्ताधारि और उनके पक्ष विपक्ष के परनाले और उनका प्रशासन
सम्भालने वाले सब कुछ करके भी देश निर्माण का देते रहे उपदेश। कुर्सि इतनी उॅंची
हो गई है कि कोई भी संवेदना मानवीय सरोकार और देशभक्ति बोने लगते है।
देश की कुर्सी की चाहत में फोरलेन सड़क या फिर देश में प्रधानमंत्री राष्ट्र्यि
सड़क विस्तार योजना के अन्तर्गत असंख्यक पेड़ो को काट कर प्रकृति व वनस्पति, जीवों
के जीवन चक्र को दूषित कर 26 प्रतिशत कार्बन जैसी विषैली गैस का पहिले की
अपेक्षा ओर अधिकता वायुमण्डल में बढ़ाकर देशवासियों का जीवन खतरे में डालकर
फीलगे्रट महसूस कर रहें है आज देश के सत्ताधीष। भारत विश्व में एसा पाॅंचवा देश
हैं जहाॅं वायुमण्डल में गर्मी घोलने की क्रियाऐं निरन्तर जारी है। इन गैसों को
ग्रीन हाउस के नाम से भी जाना जाता है। ग्रीन हाउस प्रभाव बढने से धरती के दोनो
ध्रुवों और पर्वतमालाओं पर बीछी बर्फ तेजी से पिघलने लगी है। समुद्र का खारा
पानी धीरे-धीरे धरती के मीठे पानी में रिस-रिस कर मिल रहा है। हिमनद तेजी से
पिघल रहें हैं। उर्वर क्षेत्रों में नमी का स्तर धीरे-धीरे घट रहा है। ओजोन परत
निरन्तर पतली होती जो रहीं है और समुद्री जीवों पर भी खतरा मंडरा रहीं है।
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