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‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......

✍वासुदेव मंगल की कलम से.......
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)

9 मई 2023 को गोपालकृष्‍ण गोखले का 158वाँ जन्म दिन और 157वीं वर्षगांठ
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लेखक :- वासुदेव मंगल, ब्यावर
गोपाल कृष्ण गोखले भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के मार्गदर्शकों में से एक थे। वह भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के वरिष्ठ नेता थे। गाँधीजी, उनको अपना राजनैतिक गुरू मानते थे। गोखलेजी समाज सुधारक भी थे। गोखले ने सर्वेण्ट्स ऑफ इण्डिया सोसाइटी संस्था स्थापित की। यह संस्था आम लोगों के लिये समर्पित थी। आम लोगों के हित संरक्षित करती थी।
गोपाल कृष्ण गोखले का देश की आजादी और राष्ट्र निर्माण में अमूल्य योगदान है।
गोपाल कृष्ण गोखले का जन्म 9 मई 1866 में महाराष्ट्र के कोशापुर में हुआ था। उनके पिता कृष्णराव एक किसान थे। उनकी माता बालू बाई एक साधारण महिला थी। गोखले ने 1884 में 18 साल की उम्र में मुम्बई के एलफिंस्टन कालेज से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। वह शिक्षा के महत्व को भली भांति समझते थे। उनको अंग्रजी भाषा का अच्छा ज्ञान था।
इतिहास के ज्ञान और उसकी समझ ने उनको स्वतन्त्रता, लोकतन्त्र और संसदीय प्रणाली को समझने और उसके महत्व को जानने में मदद की।
1885 में गोपाल कृष्ण गोखले पुणे में डेक्कन एज्युकेशन सोसाइटी के अपने सहयोगियों के साथ फरग्यूशन कॉलेज के संस्थापक सदस्यों मं शामिल हो गए। इस कालेज में एक प्रधान अध्यापक तक बने। पुणे में गोखले महादेव राणाडे न्यायाधीश और समाज सुधारक के सम्पर्क में आये ओर उनको अपना गुरू बना लिया राणोडे को।
1886 में बीस वर्ष की उम्र में गोखले ने ‘‘ब्रिटिश शासन के अधीन भारत’’ विषय पर एक सार्वजनिक भाषण दिया। उन्होंने बाल गंगाधर तिलक की साप्ताहिक पत्रिका ‘‘मराठो’’ के माध्यम से अपने लेखों से लोगों के अन्दर छिपी हुई देशभक्ति को जगाने की कोशिश की।
गोखले शीघ्र ही डेक्कन एज्युकेशन सोसाइटी के सचिव बन गए। 1894 में पूणे में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के आयोजित सत्र में गोखले को स्वागत समिति का सचिव बनाया गया। इस सत्र के कारण गोखले को स्वागत समिति का सचिव बनाया गया। इस सत्र के कारण गोखले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस महत्वपूर्ण सदस्य बन गए।
गोखले पूणे नगर परिषद् के दो बार अध्यक्ष चुने गए।
कुछ दिनों के लिये गोखले बम्बई विधान परिषद् के एक सदस्य भी रहे जहां पर उन्होंने सरकार के खिलाफ अपनी बात रक्खी।
1892 में गोखले ने फरग्यूसन कालेज छोड़ दी। वे दिल्ली के इम्पीरियल विधान बहस के दौरान काफी चतुरता से प्रस्तुत किया।
1905 में गोखले ने सर्वेण्टस ऑफ इण्डिया सोसाइटी नामक एक नई समिति की शुरूआत करी। इस समिति के कार्यकर्त्ताओं को देश की सेवा के लिये प्रशिक्षित किया। 1905 में गोखले ने इंगलैण्ड में ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों पर किये जा रहे अनुचित व्यवहार के सम्बनघ में 49 दिनों के अन्तराल में 47 विभिन्न सभाओं को सम्बोधित कर सबको मन्त्र मुग्ध कर दिया। गोखले ने मूलभूत रूप से भारत में स्वराज या स्वशासन पाने के लिये नियमित सुधार की वकालत की।
उन्होंने 1909 में मोर्ले मिन्टो सुधारों के प्रस्तुतिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जो अन्त में एक कानून बन गया।
हाँलाकि इन सुधारों ने भारत में साम्प्रदायिक विभाजन का बीज बोया फिर भी उन्होंने सरकार के भीतर सबसे अधिक अधिकार वाली सीटों पर भारतीय पहुँच का अधिकार दे दिया। इसी कारण गोखले जी की आवाज को सार्वजनिक हितों के मामलों में और अधिक सुनी जाने लगी। गोखले जी काँग्रेस के गरम और नरम दल के सेतु थे। गोखले जी का निधन 19 फरवरी 1915 को हो गया।
लेखक का उनके जन्म दिन पर शत्-शत् नमन्।
महात्मा मोहनदास करम चन्द गांधी जी को दक्षिणी अफ्रिका महाद्धीप के नेटाल से लाकर गोखलेजी ने ही कांग्रेस के नरमदल की बागडोर 1915 में ही सम्भलाई।
गोखलेजी ने स्वतन्त्रता की कानूनी आधार की नींव रख दी थी भारत में जिस पर चलकर महात्मा गांधी ने 1935 में भारतीय इम्पीरियल पार्लियामेण्ट में शासन में कुछ प्रतिशत सीटों पर भारतीयों को आरक्षित करने के प्रावधान को लागू करवा लिया। धीरे धीरे इसी व्यवस्था ने ही पूर्ण स्वतन्त्रता का रास्ता खोला।
बीसवीं सदी का आरम्भ अर्थात् पहला दशक ही भारत की स्वतन्त्रता के लिये मार्ले मिण्टो 1909 का सुधार कानून अच्छी शुरूआत थी।
परन्तु इस मार्ले मिण्टो 1909 के सुधार कानून का दुर्भाग्यपूर्ण पहलू देश का विभाजन रहा।
अतः गोखलेजी देश के हित के रचनात्मक कार्य कर इतिहास में सदा के लिये अमर हो गए।

 
इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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