‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे
से.......
✍वासुदेव मंगल की कलम से.......
ब्यावर सिटी (राज.)
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)
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हल्दी घाटी का कण-कण प्रताप के शौर्य, पराक्रम और
बलिदान की कहानी कहता है। 18 जून 1576 में मेवाड़ के तत्कालीन राजा
महाराणा प्रताप और मुगल सम्राट अकबर के सेनापति सवाई मानसिंह के बीच
जबरदस्त युद्ध हुआ था। खमनोर तहसील के हल्दीघाटी में शहीदों की स्मृतियों
में छतरियां बनी हुई है। हल्दीघाटी का युद्ध तंग पहाड़ी दर्रे से बनास
नदी मोलेला तक खुले मैदान में लड़ा गया था। हल्दी घाटी के युद्व में जब
महाराणा प्रताप चारों तरफ से घिर गए थे। ऐसे संकट के समय चेतक ने अपने
प्राणों की परवाह किए बिना उन्हें युद्ध क्षेत्र से सुरक्षित निकाल कर
करीब 6 किलोमीटर दूर दुर्गम बरसाती नाले को पार कर महाराणा प्रताप की
जान बचाई थी। 22 फीट के नाले को पार कर खेड़ी ईमली नामक जगह पर अपने
प्राण दे दिए। महाराणा प्रताप ने अपने प्रिय चेतक को बलीचा में दफनाते
हुए यहां शिव मंदिर की स्थापना की, जो आप भी चेतक समाधि के पास स्थित
है। 18 जून 2024 को हल्दी घाटी युद्ध की 448वीं युद्ध तिथि पर
स्वामीभक्त चेतक सहित, सभी देशभक्तों को कोटि कोटि नमन है। |
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