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‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......

✍वासुदेव मंगल की कलम से.......  ब्यावर सिटी (राज.)
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)

ब्यावर का इतिहास
आलेख : वासुदेव मंगल, ब्यावर (राज.)
प्रस्तावना :- अजमेर तो ऐतिहासिक नगर रहा है। ईसा से पाँच सौ वर्ष पूर्व बौद्धधर्म प्रचलित था। फिर जैन धर्म। ईसा की एक शहस्त्राब्दी के बाद जिसमें सम्राट पृथ्वीराज चौहान हिन्दू राजा के बाद सन् 11 सौ के अन्त में मुस्लिम आक्रान्ताओं का राज सन् 12 सौ के अन्त में भारत वर्ष के साथ अजमेर में भी होने लगा। कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपने एजेन्ट को अजमेर की सुपुर्दगी देकर दिल्ली चला गया। इसी समय ओलिया ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेर शरीफ पधारे फिर मुगल साम्राज्य के बाद 1615 में सर टामसरो अंग्रेज एजेन्ट ने अजमेर में जहाँगीर बादशाह से व्यापार करने की अनुमति ली। फिर मराठा राज अजमेर में कायम हुआ। सन् 1818 में अंग्रेजी हुकुमत ने नीमच के बदले अजमेर प्राप्त किया। जिसकी फौजी छावनी नसीराबाद में कायम की।
ब्यावर का उद्भवः- अजमेर के दक्षिण मे मगरा-मेरवाड़ा जंगलाती पहाड़ी क्षेत्र में दूर-दूर तक मेरे जाति आदिवासी विचरण करती हुई जंगल में निवास करती थीं। इस जाति ने सन् 1724 से लेकर 1823 तक सौ साल में दस लड़ाईयाँ लड़ी। अन्तिम लडाई सन् 1823 में अंग्रेंजों से हार गई। विस्तारवादी नीति के तहत् नसीराबाद की अंग्रेजी फौज ने देलवाड़ा केम्प से मेर जाति के 31 गाँवों पर जीत हासिल कर, ब्यावर में इन गाँवों पर नजर रखने के लिए सन् 1823 में एक नई केन्द्रिय छावनी कायम की कर्नल हैनरी हॉल की देखरेख में। सन् 1835 मे हैनरी हाल के इस्तीफे के बाद कर्नल चार्ल्स जॉर्ज डिक्सन ने इस फौजी छावनी को नागरिक कॉलोनी में बदल कर ऊन और रुई-कपास का व्यापारिक केन्द्र बनाया। साथ ही इस नया नगर को ब्यावर नाम देकर सात तहसीलों का मेरवाड़ा बफर स्टेट बनाया। यह सब कार्य डिक्सन ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी प्रतिनिधि के रूप में किया। 1853 में अजमेर का चार्ज भी डिक्सन को दिया गया ब्यावर के साथ साथ। सन् 1857 में भारत में अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ जँगे आजादी का गदर आरम्भ हो गया। चूँकि डिक्सन के पास नसीराबाद अजमेर की फौजी छावनी की जिम्मेबारी भी थीं जिसको 28 मई सन् 1857 में लूट लिया गया था। अतः डिक्सन सदमे में आकर 25 जून 1857 को ब्यावर में ही भगवान के प्यारे हो गए। तत्पश्चात् । दिसम्बर 1858 बरतरनिया की गौरी सरकार ने हिन्दुस्तान की कमान अपने हाथ में लेकर वायसराय की नियुक्ति शुरू की। अजमेर मेरवाड़ा स्टेट में भी अंग्रेज कमिश्नर सीधा ब्रिटेन से नियुक्त होने लगा साथ असिसटेण्ट कमिश्नर ब्यावर में भी ब्रिटेन से ही नियुक्त होने लगे। यह सिलसिला 1911 तक चला। फिर 1911 के किंग पंचम जॉर्ज के दिल्ली दरबार में हिन्दू कमिश्नर की नियुक्ति, ब्यावर में शुरू हुई जो, भारत की स्वतन्त्रता प्राप्ति तक कायम रही। स्वतन्त्रता के बाद राज्य सरकार द्वारा यह नियुक्ति की जाती है।
साई मशीनरी का आगमन व ईसाई धर्म का प्रचार प्रसार :- 1859 में स्काटलैण्ड के पादरी स्टील व विलियम शूल ब्रेड ने इस ईलाके खारची गाँव में आकर ईसाई धर्म का प्रचार आरम्भ किया। अतः राजपूताना मे ईसाई धरम का प्रचार ब्यावर से ही 1859 में आरम्भ हुआ जो शनै शनै पूरे राजपूताना में फैल गया। इस आशय का पहला चर्च सन् 1860 में 3 मार्च को ब्यावर में ही बनाया। अतः ब्यावर में सबसे पहिले ईसाई धर्म आया। इसके पहले डिक्सन ने ब्यावर को लोकतान्त्रिक, समाजवाद, धर्मनिरपेक्ष पद्धति पर ब्यावर के शासन को कायम किया ब्यावर मेरवाड़ा प्रदेश में।
आर्य समाज का प्रादुर्भाव :- चूँकि उस वक्त जंगे आजादी का गदर आरम्भ हो चुका था। ब्यावर में भी अंग्रेजी पृष्ठभूमि थीं। अतः देशी रियासतों में ब्यावर के आस पास। सन् 1875 में फ्रीडम फाईटर श्यामजी कृष्ण वर्मा ने ब्यावर को अपनी कर्मभूमि बनाई। श्यामजी कृष्ण वर्मा स्वतन्त्र विचारों वाले व्यक्ति थे। वे स्वामी दयानन्द के परम भक्त थे। अतः ब्यावर में दूसरे नम्बर पर आर्य समाज घर्म का प्रादुर्भाव हुआ। सितम्बर 1881 में स्वामी दयानन्द ने ब्यावर में धानमण्डी बाजार में लाल प्याऊ के पीछे परिसर में आर्य समाज की स्थापना की जो सन् 1912 में इसके मूल आर्य समाज परिसर में शिफ्ट हो गया जो आज भी वहाँ पर ही अवस्थित है। ब्यावर में श्यामजी कृष्ण वर्मा ने ही मर्केण्टाईल ट्रेड एसोशियेशन स्थापित की। उन्होंने अपना राजपूताना कॉटन प्रेस लगाया 1892 में जिसमें खेतड़ी नरेश व स्वामी विवेकानन्दजी ने शिरकत की। श्यामजी कृष्ण वर्मा ने ही स्वामी दयानन्दजी की प्ररेणा से ब्यावर के बाजार की मुख्य चौपटी पर आस्था के खुल्ले सँगमरमर की झरोखा रूपी छतरी का निर्माण करवाया जो सब घरमों की आस्थावानों की आस्थारूपी स्थली थी। जहाँ पर पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण चारों आस्था रूपी प्राकृतिक दिशाओं में प्रत्येक आस्तिक अपने मजहब के अनुसार आस्थारूपी दिशा में धोक लगाता ग्रामीण हो या शहरी नागरिक जब तक यह छतरी 1972 तक कायम रही। यह सिलसिला आस्थावान का धोक लगाने, का बदस्तूर जारी रहा। यह कड़वा सच है कि जब यह छतरी गिरा दी गई तब से ब्यावर का विकास अवरुद्ध हो गया और पतन हो रहा है। एक बार पुनः सन् 2005 में एकता सर्किल के नाम से इसे पुनर्स्थापित किया गया तब फिर से ब्यावर विकास की राह पर चलने लगा था परन्तु 13 जनवरी सन् 2007 को रात्री के 12 बजे बाद फिर से यहाँ पर विकृत अवरोध पैदा कर दिया। चूंकि आर्य समाज भी मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं करता हैं। अतः सब धर्मों का एकतारूपी खुल्ला झरोखा बनाया आस्था का जिसे सब धर्मों के लोग घोकते थे अपनी अपनी आस्था के अनुसार जिससे डिक्सन छत्री कहलाने लगी। स्वतन्त्रता के बाद दकयानूसी लोगों ने इसे गुलामी की निशानी मानते हुए गिरा दिया सन् 1972 में तत्कालीन नगरपालिका के चेयरमेन गंगा विशनजी जोशी व उनके समर्थकों ने। बाद में दूसरी बार सन् 2007 में पुनः एक बार बिना प्राण प्रतिष्ठा के डिक्सन छत्री के चबूतरे पर कोई देवी की मूर्ति बैठा दी जिससे पुनः देवदोष पैदा हो गया जिससे ब्यावर का विकास पुनः अवरुद्ध हो गया। यद्यपि अतीत में यही ब्यावर अठाहरवीं सदीं के पूर्वार्ध में भारत वर्ष में पंजाब के फाजिल्का के समकक्ष राष्ट्रीयस्तर की ऊन और कपास रुई का व्यापारिक केन्द्र रहा था जहाँ 1876 में रेलवे का ट्रैफिक होने से सूती कपड़े की स्पीनिंग, विविंग व प्रान्त प्रिन्टिंग की तीन मिल्स भी औद्योगिक क्षेत्र में उत्पादन करने लगी। इसी कारण ब्यावर राजपूताने का मेनचेस्टर कहलाता था। मनी मार्केट होने से मनी का रोटेशन घूमता। अतः ब्यावर सेठाणा शहर कहलाता था जहाँ पर दिसावर से लोग कमानें के लिए आते थे। व्यापार की पोटेन्शियलिटी होने के कारण खुशहाली थीं। आर्थिक ग्रोथ काबिले तारिफ थी। सबसे पहले ईसाई क्रिश्चयिनिटी कम्युनिटी के कारण शिक्षा व चिकित्सा स्वास्थ्य के क्षेत्र में शिक्षण संस्थाएँ एवं चिकित्सालय औषधालय खुले व्यापार के साथ साथ। फिर दूसरे नम्बर पर आर्यसमाज का प्रादुर्भाव होने से आर्य समाज का विद्यालय व भवन बना। फिर सन् 1904 में सनातन धर्म के स्वामी प्रकाशानन्द जी ब्यावर पधारे जहाँ पर सनातन धर्म प्रकाशनी पाठशाला खोली जिसका विशाल भवन 1910 मे राठीजी की हवेली के सामने बनवाया गया ट्रस्ट बेसिस पर सन् 1928 में बिहारीलालजी भटनागर वर्मा के प्रयास से टाटगढ़ रोड पर रायबहादुर प्यारेलालजी भार्गव ने सनातन धर्म कालेज के लिये बहुत बडा भू-भाग दान में दिया जो पिछवाड़े में मैदा फैक्ट्री से भार्गव कालोनी तक पूर्व मे साँखला कालोनी तक दक्षिण में बृजराज आर्य का चूने का भट्टा सोहन नगर, नवरंग बगीची इत्यादि आबादी इस भूभाग का वर्तमान में आबाद हो गई। सन् 1932 में इस भूभाग के एक हिस्से पर कॉलेज की बिल्डिंग बनाकर सनातन धरम कालेज शुरू किया गया जहाँ पर कक्षा नो से बारहवीं तक चलाई जाने लगी। दसवीं तक की पढ़ाई को मेट्रिक व बारहवीं तक की पढ़ाई को इण्टरमिडियट तक की पढ़ाई की डिग्री दी जानें लगी।
सन 1920 में जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा शान्ति जैन मिडिल स्कूल की स्थापना पिपलिया बाजार में मिडिल की स्थापना की गई जिसकी एक शाखा टाटगढ़ रोड़ चार मील पर जैन गुरुकुल स्कूल के नाम से आरम्भ की गई। ईसाई कम्युनिटी ने मिशन बॉयज् गर्ल्स स्कूल हाईवे 8 मार्ग पर खोली क्रमशः 1872 व 1900 ईसवी में फिर मुस्लिम कम्युनिटी ने अजमेर रोड़ सतपुलिया के पास मोहम्मदअली स्कूल स्थापित की।
आरम्भ में ड़िक्सन द्वारा वर्तमान में पण्डित मार्केट वाले स्थान पर हालैण्ड स्कूल 1850 में खोली गई जहाँ चार जमात तक उर्दू, ऑग्ल भाषा व महाजनी तक की पढ़ाई कराई जाती थीं। बाद मे यह स्कूल सन् 1910 मे टाउन हॉल के सामने हाईवे पर, बनाई गई बिल्डिंग में शिफ्ट कर दी गई सन् 1950 में इसका नामकरण पटेल स्कूल कर दिया गया। सन् 1912 में आर्य समाज गली में गोदावरी आर्य कन्या पाठशाला खोली गई। डिग्गी मोहल्ले के चौराहे के पास सोहनलाल जी शर्मा द्वारा मोतीलालजी चौखाणी न्यू कॉटन प्रेस स्टेशन वालों को प्रेरित कर 1945-48 में डिग्गी कन्या पाठशाला खोली गई। 1960 मे सैय्यद की मजार के पास छावनी रोड पर कन्या पाठशाला की एक ब्रान्च ओर खोली गई। चिकित्सा के क्षेत्र में दी तिजारती चैम्बर सर्राफान औषधालय डिग्गी मोहल्ले में पिनारान मार्ग पर, औषवाल सेवा समिति औषधालय पिपलिया बाजार में व इसी मार्ग के चौराह पर सेठानी गंगा बाई मेटरनिटी होम खोला गया। वर्तमान में सनातन घरम मिड़िल स्कूल, संस्कृत कालेज, शान्तिजैन स्कूल, तिजारती चौम्बर ओषधालय व सेठानी गंगा बाई मेटरनिटी होम बन्द कर दिया गया है। आज एक सेवा समिति औषधालय चल रहा है। तो यह तरक्की हुई है ब्यावर की। सारे कॉटन प्रेस व कपड़े की तीनों मिले बन्द कर दी गई है उनकी मशीनरी व जमीन बेच दी गई है। स्वतन्त्रता के बाद ब्यावर का बुलियन मार्केट, कॉटन मार्केट, वूल मार्केट व ग्रेन ट्रेड बन्द कर दिये गए। स्वतन्त्रता के बाद शाहपुरा मोहल्ले में, गोपालजी मोहल्ले में पुरानी सिनेमा गली, रायल सिनेमा के पास पूर्व प्राथमिक खोली गई स्कूलें बन्द कर दी गई। प्राईवेट सेक्टर में डीएवी कालेज 1975 में, वर्धमान (कन्या) गर्ल्स पोस्ट ग्रेजुएट कालेज 1994 में नेहरू नगर में खोले गए। ब्रिटिश काल का 1869 में मेवाड़ी गेट के अन्दर चौराहे केपास खोला गया शफा रवाना 1954 से अमृतकौर हॉस्पिटल बिल्डिंग में शिफ्ट कर दिया गया? इस भवन में अब सिर्फ सिटी डिस्पेन्सरी चल रही है। चांग गेट बाहर टाटगढ़ रोड़ पर सन् 1897 में खोला गया सेठ खींवराज राठी द्वारा पशु चिकित्सालय का अब 126 साल बाद रिनोवेशन किया जा रहा है। सनातन धरम कालेज में सन् 1954 में डिग्री की क्लोसेज तीनों फैकल्टी ऑर्टस-कॉमर्स व साईन्स में व 1956 से सोश्योलोजी में पोस्ट ग्रेज्यूट क्लासेज चालू की गई। होस्टल के रूप में गिब्सन होस्टल व अन्य होस्टल बन्द कर दिये गय। टाटगढ़ रोड पर कॉलेज के पास वाले बच्चों के पार्क को अब पार्श्वनाथ हॉस्पीटल में तब्दील कर दिया गया। अब रायल टाकीज 1945 व रूपबानी टाकिज् 1944 बन्द कर दिये गए। मात्र 1981 जय मन्दिर सिनेमा व सिटी टाकीज चालू है।
चारों दरवाजों बाहर बसाई गई प्राईवेट बगीचियाँ करीब करीब अब समाप्त कर दी गई है। या तो उनकी जमीन उपयोग करने वाले मालिकों द्वारा बेच दी गई है या फिर उनमें वाणिज्य संसस्थान खोल दिये गए हैं। प्रेस वाली जमीन पर कई कालोनियो के अन्दर आबाद हो गई है।
अब ब्यावर सिटी के चारों ओर हाइवे बन गया। सिटी में सन् 2012 से मास्टर प्लान लागू हो गया है जिसके पचास पेरा-फेरी पास के गाँवों को शहरी सीमा में मिला दिये गए हैं। अतः अब ब्यावर सिटी की सीमा आठ किलोमीटर क्षेत्र की परिधि में हो गई है। वर्तमान में ब्यावर सिटी की पोपूलेशन (आबादी) चार (4) साढ़े चार लाख के लगभग है। 17 मार्च सन् 2023 में ब्यावर को राजस्थान सरकार ने जिला (डिस्ट्रीक्ट) घोषित कर अमल में ला दिया है। अतः अब ब्यावर जिला मुख्यालय या डिस्ट्रीक्ट हेड क्वार्टर क्रमशः, जैतारण, रायपुर, ब्यावर, मसूदा, विजयनगर, बदनौर व टॉटगढ़ की तहसीलों को मिलाकर बनाया गया है। अब ब्यावर के सब डिविजन कार्यालयों को अपग्रेड कर कलक्टर, एस०पी० व डिस्ट्रीक्ट जज कोर्ट में तब्दील कर दिया गया है सन् 2023 से ही। अतः अब लेखक ब्यावर डिस्ट्रीक्ट का इतिहास जनसाधारण दुनियाँ के सामने लायेगें। इन्तजार कीजिए शीघ्र ही ब्यावर का कलेवर आपके सामने पेश किया जायेगा बहुत जल्द।
ब्यावर सिटी बहुत कुछ मायने में आपको बदला बदला सा नजर आयेगा जैसेः- शासन, प्रशासन, व्यापार, उद्योग, शिक्षा, चिकित्सा, सामाजिक कलेवर, खेल-कूद, परिवहन, पर्यटन, रिलिजियन रेल इत्यादि खनिज में चुस्त दुरुस्त इतिहास आदि आदि।
03.01.2024
 
 
 
इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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