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‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......

✍वासुदेव मंगल की कलम से.......  ब्यावर सिटी (राज.)
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)

 
28 दिसम्बर 2023 को इण्डियन नेशनल कांग्रेस पार्टी का 139वाँ स्थापना दिवसः 138 साल
आलेख: वासुदेव मंगेल ब्यावर सिटी व जिला (राज0)
सन् 1857 में भारत में जंगें आजादी का बिगुल बज चुका था। कारण 1818 में अंग्रेजी हुकुमत ने सम्पूर्ण भारत में एक सत्र राज्य घोषित कर दिया था। देशी रियासतों में आन्तरिक शासन पद्धति स्वतन्त्र थी परन्तु बाह्यरूप से अंग्रेजी शासन के अधीन थी।
अतएव सन् 1884 तक अंग्रेजी बरतानिया की भारत में हुकुमत पर जंगे आजादी के आन्दोलन का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। चुनांन्वें अग्रेजी हुकुमत ने भारत में अपने समर्थन में भारतीय लॉबी बनाने की हिमायत में अंग्रेज पुरुष ए.ओ. ह्यूम व महिला लेडी एनी बेसेन्ट के नेतृत्व में इण्डियन नेशनल कांग्रेस की 28 दिसम्बर सन् 1885 में भारत में स्थापना की जिसका आज 28 दिसम्बर 2023 को 139वाँ स्थापना दिवस है जिसे राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस पुणे सिटी में बड़ी धूम धाम, जोश-खरोस के साथ मना रही है।
स्थापना से आई. एन० सी० के इस लम्बे सफर मंे बहुत उतार-चढ़ाव आये। चूँकि इसकी स्थापना उन्नीसवीं सदी के नौवें दशक में हुई और बीसवीं सदी के तीसरे दशक के अन्त में बरतानिया की हुकुमत से भारत में शासन में इस पार्टी को आंशिक राजनैतिक शेयर करना आरम्भ कर दिया।
ब्यावर में तो तत्कालिन म्युनिसिपल कमेटी चेयरमेन श्री नथमलजी घीया ने तो जोश ही जोश में 26 जनवरी सन् 1930 के स्वतन्त्रता के आन्दोलन में टाऊन हॉल परिसर में तिरंगा फहरा दिया था अंग्रेजी राज में। परिणामस्वरूप उनको पद से बर्खास्त कर जेल हो गई। तत्पश्चात् हरविलासजी शारदा ने अजमेर मेरवाड़ा से सेण्ट्रल एसेम्बली दिल्ली में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हुए बाल विवाह रोक का कानून शारदा एक्ट 1935 पारित करवाया था। कालान्तर में 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणामस्वरूप 1945 तक बरतानिया साम्रज्य की शक्ति क्षीण होने के कारण तात्कालिन ब्रिटिश प्रधानमन्त्री लार्ड एटली ने भारत को स्वतन्त्रता प्रदान करने कर मानस बना लिया था।
ब्यावर मेरवाड़ा स्टेट में ब्यावर सिटी में कांग्रेस पार्टी की शाखा की स्थापना फतेहपुरिया बाजार मेें घीसुलालजी जाजोदिया एवं स्वामी कुमारानन्दजी के सानिध्य में सन 1920 में हो चुकी थी जिससे उस समय के ब्यावर के जोशीले राजनीतिज्ञ पार्टी कार्यकर्ता थे जैसे बद्री दत्त जी हेड़ा इत्यादि ।
अतः कांग्रेस पार्टी के बेनर तले ब्यावर में तमाम आन्दोलन सक्रिय रूप में होते रहे। चूँकि यहाँ पर कांग्रेस के गरम दल की शाखा थीं। अतः तमाम आन्दोलन जोश खरोस के साथ होते थे जैसे - नमक कानून, सविनय अवज्ञा आन्दोलन, होमरूल आन्दोलन, भारत छोड़ो आन्दोलन इत्यादि इत्यादि। उस समय ब्यावर कांग्रेस का आन्दोलन परवान पर था व कांग्रेस का गढ़ था। ब्यावर के लोग सक्रिय भाग लेते रहे। तमाम राजपूताना रियासतो में राजनैतिक हलचल होने लगी थीं। उसी समय जयनारायण व्यास, गोपीचन्द्र विजयवर्गीय जैसे कार्यकर्ता ब्यावर से ही तैय्यार हुए थे। 1938 में राजपूताने की देशी रियासतों में प्रजातन्त्र की स्थापना होने लगी थी।
परिणाम स्वरूप 15 अगस्त 1947 में भारत को स्वतन्त्रता प्रदान की गई। अतः 14 अगस्त 1947 रात्री को ठीक 12बजे ब्यावर का नजारा जोशीला था। मन्दिरों में आरती होने लगी। हाथी घोड़ो के ओहदों पर जोशीला जुलुस निकाला गया। कई सरकारी गैर सरकारी इमारतों पर भव्य आकर्षक रोशनी की गई व तिरंगा झण्डा फहराया गया। लेखक भी उस समय 2 साल 10 महीने का था। अतः याद आता है कि वह नजारा भी देखने काबिल था।
अंग्रेजों ने भी जाते जाते भारत की हुकुमत कांग्रेस पार्टी के हुकुमरानों को ही सौंपी क्योंकि वह ही एकमात्र राजनैतिक पार्टी थी।
ब्यावर अजमेर में अंग्रेजी हुकुमत ही थी। अतः यहाँ का माहौल तो बहुत अधिक जोशीला था। क्यों कि ब्यावर तो राजपूताना में स्वतन्त्रता आन्दोलनों का गढ़ था।
लेखक के घर के सामने ही फत्तेहपुरिया बाजार में कांग्रेस का दफ्तर घीसूलालजी जाजोदिया के कटले के बाहर बाजार में ही था। लेखक ने पिता श्री बाबूलालजी ने भी रात्री को ठीक बारह बजे 14 अगस्त 1947 की रात्री को शानदार रेशमी तिरंगा झण्डा बल्व की रोशनी में पचास फीट ऊंचे लोहे पाईप पर फहराया था जो हाईवे आठ नंबर पोस्ट ऑफीस से दिखाई दे रहा था। सभी में खुशी का माहौल था।
तत्पश्चात 1950 में कांग्रेस का यह दफ्तर लोहिया बाजार डिक्सन छत्री चौराहे पर शिफ्ट हो गया था फत्तेहपुरिया बाजार से।
परन्तु अब ब्यावर की हवा ही बदल गई। उस समय का जज्बा अब देखने को नहीं मिलता।
हमारे रहनुमाओं ने तो शासन की हवा ही बदल दी। जो जज्बा उस समय था वह आज कायम नहीं रह सका। सारी हवा ही बदल गई।
राजस्थान के पहले मुख्य मन्त्री जयनारायण व्यास और मध्य प्रदेश के पहले मुख्य मन्त्री गोपीचन्द विजयावर्गीय ने राजनीति की ए बी सी डी ब्यावर से ही सीखी। लेखक के पिताश्री व चाचा श्री भी उस समय कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता रहे। कांग्रेस का दफ्तर भी लेखक के घर के सामने फतेहपुरिया बाजार में था। अतः कांग्रेस के कार्यकर्त्ता लेखक की दुकान के चबूतरे पर तख्ते मुड्डे पर ही बैठे रहते थे। बड़ी रौनक रहती थी उस समय।
परन्तु आजादी के बाद की फिजा बिल्कुल ही बदल गई कांग्रेस की। ऐसा सपने में भी सोचा न था कि हमारे अपने ही रहनुमा, शासनकर्ता जन सेवक न रहकर खुदगर्ज होंगें। इससे तो अंग्रेजी राज ही बढ़िया था। खैर समय समय की बात है। समय बड़ा बलवान है। इस पर लेखक को एक कहावत याद आती है कि समय की बलिहारी अस्तु काबा लूटी गोपियाँ वो ही अर्जुन और वो ही अर्जुन के बाण अर्थात् काबा अर्जुन के देखते देखते गोपियों को लूटकर ले गए और अर्जुन कुछ भी उन गोपियों की रक्षा न कर सका।
आज भारत का लोक तन्त्र भी खतरे में है क्योंकि 1953 में डा. श्यामाप्रशाद मुखर्जी द्वारा स्थापित की गई जन संघ राजनैतिक पार्टी से हटकर बनी, वर्तमान में केन्द्र में शासन करने वाली पार्टी भारतीय जनता पार्टी भी कांग्रेस पार्टी की उस वक्त की पिचेहर वर्ष पूर्व वाली एकाधिकार पार्टी है वर्तमान में।
ब्यावर में उदयपुर के सुन्दर सिंहजी भण्डारी आये 1953 में और वैद्य रविदत्तजी को ब्यावर में जनसंघ पार्टी स्थापित कर, उसका अध्यक्ष बनाया। इस प्रकार ब्यावर में सन् 1953 में कांग्रेस राजनैतिक पार्टी के विकल्प के रूप में दूसरी पार्टी का उद्भव हुआ भारत में।
फिर भी श्रीमती इन्दिरा गाँधी की कांग्रेस पार्टी का वर्चस्व ही बना रहा एकाधिकार के रूप में 1976 तक। सन् 1977 में पहली बार जनसंघ से गठबन्धित जनता दल का गैर कांग्रेस पार्टी का मोरारजी देसाई प्रधानमन्त्री के नेतृत्व में भारत में शासन स्थापित हुआ था। परन्तु परस्पर स्वार्थ के कारण गठवन्धन का बिखराव हो गया था।
परिणाम स्वरूप सन् 1980 में जनता दल का जनसंघ रूपी घटक दल भारतीय जनता पार्टी के रूप में शासन में आई। यहाँ पर भी इस पार्टी का अन्य घटक दल से तालमेल नहीं बैठे पाया। 1980 में विश्वनाथ प्रतापसिंह तत्कालीन प्रधान मन्त्री के मण्डल आयोग की सिफारिश लागु करने से जाति आरक्षण का मुद्दा जोर पकड़ गया तो बीजेपी दूसरे घटक ने मन्दिर मस्जिद का मुद्दा केन्द्र में उछाल कर शासन में साम्प्रदायिकवाद को उत्सन्न कर दिया। जब सन् 1990 से केन्द्रिय शासन में मुख्य मुद्दे रोटी रोजी के तो गोण हो गए और हिन्दुत्व का धार्मिक मुख्य मुद्दा उछाला गया बीजेपी द्वारा जिससे देश में बेरोजगारी और मँहगाई की मुख्य समस्या उभरकर आई परिणाम स्वरूप देश में असन्तोष की भयंकर इससे ज्वाला भड़क गई है। जिससे देश में अराजकता का वातावरण पैदा हो गया। अतीत में कांग्रेस पार्टी की तरह वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी का केन्द्र में एकाधिकार शासन होने से अधिनायकवाद उत्पन्न हो गया जिससे देश में विद्रोह की ज्वाला प्रस्फुटित हो गई है जो देश की एकता के लिए भयंकर खतरा उत्पन्न हो गया। पुनः एक बार देश के खण्डित होने का खतरा उत्पन्न हो गया है।
अनेकता में एकता रूपी सांस्कृतिक देश में खण्डन की स्थिति उत्पन्न हो गई।
भगवान शासक दल को सद्बुद्धि दे या फिर विपक्ष एक होकर सरकार का मुकाबला करें तब ही इस मुद्दे का समाधान हो सकता है अपित् कदापि नहीं। देश के सामने सोच का यह ही मुख्य बिन्दु है नहीं तो देश टुकड़े टुकड़े हो जायेगा जिसे कोई नहीं रोक पायेगा।
यह ज्वलन्त यक्ष प्रश्न आज देश के सामने है जिस पर व प्रबुद्धजन नागरिकों को मननकर इस समस्या का कोई हल जल्दी से जल्द निकालना होगा नहीं तो देश पुनः एक बार खड्डे में चला जायेगा जिसको बाहर निकालना नामुमकिन ही नहीं होगा वरन् असम्भव होगा।
अतः लेखक की इस चेतावनी पर गौर फरमाते हुए आवाम को इस समस्या का हल खोजना बहुत जरूरी हो गया नहीं तो देश को अपरिमित नुकसान होगा जिसकी भरपाई निकट भविष्य में होनी असम्भव होगी।
अतएव इस आवश्यक मुद्दे पर अवाम को जल्द से जल्द कोई हल निकालना जरूरी हो गया है जिस पर तुरन्त गौर फरमाया जाना अति आवश्यक है। आवश्यक जानकर लिखा है। तुरन्त सुविचार करे।
नये साल 2024 के भोर मे देश के अवाम को 143 करोड़ देशवासियों को लेखक का यह सुसन्देश गौर करने हेतु नये साल की शुभकामनाओं के साथ।
02.01.2024
 
इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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