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28 दिसम्बर 2023 को इण्डियन नेशनल काँग्रेस का 139 वाँ स्थापना दिवस पर भारत की आजादी में ब्यावर का राजनैतिक योगदान
आलेख: वासुदेव मंगल, ब्यावर सिटी व जिला (राज.)
यद्यपि काँग्रेस पार्टी का गठन 28 दिसम्बर 1885 ई. में ए.ओ. हयूम व लेडी एनीबेसेन्ट के द्वारा किया था तथापि इस सँगठन की स्थापना भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के उपनिवेश के समर्थन में ही की गई थीं। कारण स्पष्ट रहा कि सन् 1857 की जँगें आजादी के कारण भारत में अंग्रेजी राज की शक्ति शनैः शनैः क्षीण हो रही थी। अतएव अंग्रेज़ी हुकुमत को डर था कि उनकी सत्ता भारत से उखड़ ना जाये।
आरम्भ में आई.एन.सी. के भारत में दो दल थे। गरम दल जिसके नेता बाल गंगाधर तिलक और नरम दल के नेता गोपाल कृष्ण गोखले थे।
इसके पहले जँगें आजादी के गदर के नेता ताँत्या टोपे, झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, फडण्वींस इत्यादि ने अंग्रेजी हुकुमत के नाक में दम कर दिया था।
आई.एन.सी. गरम दल के नेताओं ने उन्नीसवीं सदी के अन्त में जुझारू रणनीति से सम्पूर्ण भारत में अंग्रेजों को उनकी कमजोर अहमियत का अहसास कराकर बीसवीं सदी के आरम्भ के प्रथम दशक में आजादी की गदर को काफी मजबुत स्थिति में ले आए।
1915 में नरम दल के नेता गोपाल कृष्ण गोखले दक्षिणी अफ्रिका के नेटाल प्रान्त से भारत गुजरात काठियावाड के मोहन दास करमचन्द गाँधी को भारत लाकर अपने नरम दल की बागडोर सम्भलाई। नरम दल अहिंसक आन्दोलन में विश्वास रखता था जिसका प्रभाव शून्य था। गरम दल ही प्रभावी था।
इसके पहले 1911 में अंग्रेजों ने अपनी राजधानी कलकत्ता से दिल्ली शिफ्ट की। पंचम जार्ज राज दरबार मे तमाम देशी रियासतों के राजा महाराजाओं की उपस्थिति में भव्य समारोह लाल किले में आयोजित किया गया। इसके पहिले हाथी के चांदी के ओहदे पर पंचम जार्ज का चाँदनी चौक में भव्य जुलुस निकाला गया जिसमें राजपूताना के शाहपुरा के प्रतापसिंह बारहठ ने बम फेंककर अंग्रेजी हुकुमत को आगाह कर दिया ब्यावर मेरवाड़ा स्टेट में भी अंग्रेजी रियासत थी जहाँ पर भी इस दरबार में अंग्रेज कमिश्नर की जगह हिन्दू कमिश्नर की नियुक्ति मथुरा के श्री बृजजीवनलाल जी चतुर्वेदी जी की गई। ओक्ट्राय कमिश्नर जैसलमेर के भी पोलूरामजी गार्गिया को बनाया गया। ब्यावर में भी गरमदल का ही प्रादुर्भाव था। ब्यावर में तिलकयुग के राणा प्रताप राष्ट्रवर खरवा नरेश गोपालसिंहजी ठाकुर साहिब व ब्यावर के तिलक युग के भामाशाह दानवीर सेठ दामोदर दासजी राठी गरमदल के सक्रिय कार्यकर्ता थे। गरम दल की हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिवोल्यूशनरी आर्मी की श्यामगढ़ के किले की बावड़ी में ब्रान्च (शाखा) थी जहाँ पर फ्रीडम फाईटर को हथियार बनाने और चलाने की ट्रेनिंग दी जाती थीं। यह कार्य बंगाल के रासबिहारी बोस की देखरेख में गुप्त रूप से होता था। उस काल में ब्यावर में मोती लाल नेहरू, लोकमान्य बालगंगाधर तिलक, यू. एन. ढेबर, शौकत उस्मानी आदि नेता आये। ब्यावर जँगें आजादी के आन्दोलन के क्रान्तिकारियों का गढ़ था जहाँ पर बंगाल प्रान्त, उत्तर भारत, पंजाब, मध्यभारत व बम्बई प्रान्त के क्रान्तिकारियों का अक्सर आगमन होता रहता था। अतएवं यह क्षेत्र (एरिया) क्रान्तिकारी गतिविधियों का पूरे भारतवर्ष में उस समय केन्द्र था। तीसरे दशक में आज से सौ वर्ष पहले सन् 1923-24 मे भगतसिंह और चन्द्र शेखर आजाद भी स्वामीकुमारानन्दजी के पास ब्यावर में ट्रेनिंग के सिलसिले आये थे जो चाँग गेट बाहर चिरंजीलाल भगत की बगीची में ठहरे थे। इनको कानपुर से गणेशशंकर विद्यार्थी ने स्वामीजी के पास भेजा था। ट्रेनिंग के बाद वे महफूज, गन्तव्य पर पहुँच गए। हिन्द केसरी लाला लाजपत राय के निजी सचिव पण्डित सुन्दरलालजी शर्मा ने ब्यावर में रहकर ब्यावर में अन्य भारत में अंग्रेजी राज के तीन जिल्द की किताब लिखी। यह काल 1925 तक गरमदल का ब्यावर में सक्रिय रहा। फिर नरम दल के महात्मा गाँधी का प्रभाव शुरू गया ब्यावर में जहाँ पर नमक आन्दोलन, संविनय अवज्ञा आन्दोलन आदि हुए इस काल में 26 जनवरी 1930 में तत्कालीन म्युनिसिपल चेयरमेन श्री नथमलजी घीया ने टाऊन हॉल परिसर में तिरंगा झण्डा फहराया जिसके कारण उनको पद से हटकर जेल हो गई। कस्तूरबा गाँधी भी ब्यावर आई। 1934 में अछूतोदार आन्दोलन के सिलसिले में महात्मा गाँधी भी स्वामी कुमारानन्दजी के निमन्त्रण पर ब्यावर आए जिनको ब्यावर के शंकराचार्यजी ने काले झण्डे के साथ बहिष्कार किया। राजस्थान के पहले मुख्यमन्त्री श्री जयनारायणजी व्यास, मध्यप्रदेश के पहले मुख्यमन्त्री श्री गोपीचन्दजी विजयवर्गिय ने राजनीति की एबीसीडी ब्यावर से ही सीखी। राजस्थान के मुख्य मन्त्री श्री मोहनलालजी सुखाडिया का इन्दुबाला के साथ विवाह ब्यावर में ही सम्पन्न हुआ। 1938 मे राजपूताना में देशी रियासतों मे राजनीति में प्रजातन्त्र की स्थापना होने लगी थी जिससे देशी रियासतों में भी राजनैतिक जागरुकता आने लगी सुभाष चन्द्र बोस के राजनैतिक गुरु बाबा नरसिंग दासजी ब्यावर से कटक में नजरबन्दी की हालत में भारत से बाहर जाकर सुभाष को स्वतन्त्रता की गतिविधि जारी रखने के लिए सलाह देकर छोडने वर्धवान रेलवे स्टेशन तक छोड़कर आए पेशावर की ट्रेन 1941 में। ब्यावर में स्वामी कुमारानन्दजी 1920 में आकर अपनी कर्म भूमि बनाई। अतः ट्रेड यूनियन की स्थापना की कपड़े की मिल्स की वजह से मजदूर वर्ग हित के लिए। साथ ही सेठ घीसूलालजी जाजोदिया के साथ मिलकर फतेहपुरिया बाजार में लेखक के घर के सामने काँग्रेस पार्टी की ब्रान्च ब्यावर में खोलकर कांग्रेस का दफ्तर जाजोदियाजी के परिसर में चालू किया 1920 में। अतः ब्यावर भी कांग्रेस गतिविधि का राजनैतिक गढ़ बन गया। सन् 1942 में महात्मा गाँधी के अंग्रेज़ों भारत छोड़ो आन्दोलन में ब्यावर से भी कांग्रेसियों ने बम्बई जाकर सक्रिय भूमिका निभाई।
बड़े उनमने मन से लिखना पड़ रहा है कि ब्यावर के नागरिकों से जिस तन मन धन से भारत की जंगें आजादी के आन्दोलन में भूमिका निभाई उसी शहर के हुक्मरानों ने भारत की आजादी के अपने हित के लिए ब्यावर के नागरिकों के हित को तिलान्जलि दे दी। यह तो स्वप्न में भी सोचा न था कि स्वतन्त्रता के बाद वो ही गिरगिट की के तरह रंग बदल लेंगे। ‘बी’ और ‘सी’ की राजनीतिक लड़ाई में ब्यावर की अतीत में किये गए व्यापारिक व औधोगिक तमाम विकास को चौपट कर दिया। सामाजिक व शैक्षिणिक व स्वास्थ्य के तमाम विकास को चौपट कर दिया व ब्यावर को बर्बादी के गर्त में धकेल दिया हमारे ही बी और सी रहनुमाओं ने। ऐसा करने से उनको क्या मिला? यह तो वो ही जानें। गोया आने वाली सन्तति तो उनको माफ नहीं करेगी।
ब्यावर क्षेत्र की जनता तो आजादी के बाद रामराज की उम्मीद लगाए थी। बृजमोहनजी शर्मा व चिम्मन सिंहजी लोढ़ा की लडाई मे पिछले छियेत्तर वर्षों से ब्यावर के अतीत में किये गए तमाम विकास को बर्बाद कर दिया। किसको दोष दिया जाये जब अपने ही बेगाने हो जाए। आज भी छियेत्तर वर्ष बाद भी ब्यावर की प्रजा यह दंश भोग रही है। देश में ब्यावर क्षेत्र के सिवाय सब जगह विकास हो रहा है। ब्यावर श्री रासासिंहजी रावत पांच बार संसद सदस्य बने बेरंग रहे। इसी प्रकार ब्यावर के श्री शंकरसिंहजी रावत चौथी बार विधायक बने है। इस बार आज ही इनकी पार्टी ही के विधायकों को मन्त्री परिषद के मन्त्री पद की दिनांक 30 दिसम्बर 2023 को शपथ ली है परन्तु ब्यावर से श्री शंकर सिंहजी रावत को नहीं लिया गया है तो आप अन्दाजा लगा लिजिये कि भविष्य में ब्यावर का कैसा विकास होगा? हाल ही मे 2024 में निकट भविष्य में जल्द ही लोक सभा चुनाव होने वाले है मार्च, अप्रैल या मई में। ब्यावर की जनता को पुनः एक बार सर सब्ज बाग दिखाये जायेंगे राजनीतिज्ञों द्वारा लोकसभा में। चिकनी चुपड़ी बातें की आयेगी चुनाव के समय।
अब जनता को इनके झांसे में नहीं आना हैं।
आज दोनों ही राजनैतिक पार्टियाँ खुदगर्ज है। चाहे कांग्रेस पार्टी हो या फिर भारतीय जनता पार्टी।
एक फिल्मी गाने की तर्ज है कि मतलब निकल गया तो पहचानते नहीं यू मुँह मोडकर जा रहे है कि जानते नहीं। मतलब निकल गया तो.......
02.01.2024
 
इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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