‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे
से.......
✍वासुदेव मंगल की कलम से.......
ब्यावर सिटी (राज.)
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)
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ब्यावर की
महान शकसियत कान्त किशोर भार्गव,
ब्यावर के एक भारतीय राजनयिक
आलेख: वासुदेव मंगल - स्वतन्त्रत लेखक ब्यावर सिटी
लेखक आज आपको ब्यावर के महान डिप्लोमेट के जीवन से रूबरू करा रहे हैं
जिनको आज की जेनेरेशन नहीं जानती है।
आज लेखक बचपन में अपने शैक्षिक जीवन का कुछ समय का स्वरूप आपको बता रहे
हैं।
ब्यावर में नृसिंह मन्दिर के सामने शाहजी की हवेली में श्री रामकिशोरजी
भार्गव रहते थे। वे सनातन धरम कालेज में गणित के प्रोफेसर थे। वे कालेज
में वाईस प्रिन्सिपल भी थे। उनके सात पुत्र व दो पुत्रियां थीं। श्री
कान्त किशोर भार्गव उनके दूसरे नम्बर के पुत्र थे। लेखक का इस परिवार
से घरेलु सम्बन्ध था। कारण भार्गव साहिब का छठे नम्बर का पुत्र विजय
किशोर भार्गव लेखक के साथ पढ़ता था। इसलिये लेखक का उनके घर बचपन में
अक्सर आना जाना रहता। भार्गव साहिब के सातों लड़के पढ़ाई में एक से बढ़कर
एक थे। सातों विलक्षण प्रतिभाशाली थे। रामकिशोरजी का परिवार प्रतिभाशाली,
खुशहाल और प्यार भरा था।
तो कान्ता भाई साहिब का जन्म 2 मई सन् 1934 में हुआ था। बड़ा परिवार था।
बहुत सीमित साधन थे। उन्होंने 1952 में गवर्नमेंट कालेज अजमेर से
बी.एस.सी. की 1954 में एम.एस.सी. की गणित में प्रथम स्थान प्राप्त करने
पर आगरा विश्व विद्यालय ने उन्हें सर्वश्रेष्ठ सर्वांगीन छात्र होने के
लिये चटर्जी मेरिट अवार्ड से सम्मानित किया गया। 1954 में उन्होंने
विभिन्न विश्व विद्यालयों में गणित पढ़ाया। लेखक बड़े फक्र के साथ ब्यावर
की इस महान धाती को सलाम करते है जिन्होंने 1957 में प्रतिष्ठित भारतीय
प्रशासनिक और विदेश सेवा परीक्षा दी और परीक्षा में टाप करने वाले
राजस्थान के पहले व्यक्ति बनकर इतिहास रच दिया। इससे उन्हें भारतीय
विदेश सेवा में (आई.एफ.एस.) में एक लम्बा केरियर मिला और 1958 के बाद
से उन्हें विभिन्न स्थानों पर तैनात किया गया। मॉस्को, पेरिस, अदीस,
अबाबा, बुल्गारिया। 1969 में, वह एक परामर्शदाता के रूप में मास्को में
और उसके बाद बुसेल्स में यूरोपीय समुदायों के मिशन के उप प्रमुख के रूप
में वापस आये। इसके बाद संयुक्त राष्ट्र की भूमिका मैं पेरिस में एक
साल की लम्बी पोस्टिंग हुई। उन्होंने मॉरीशस, जिम्बाब्बे और बोत्सवाना
में भारत के उच्चायुक्त के रूप में कार्य किया और अंततः 1989 से 1992
में सेवानिवृत्त होने तक नेपाल में स्थित एस.ए.ए.आर.सी. (दक्षिण एशियाई
क्षेत्री सहयोग संघ) के महासचिव के रूप में कार्य किया। उस दरम्यान
उन्होंने रूसी, फ्रेन्च भाषा सीखी। बलगेरियाई और अन्य कुछ भाषाएँ सीखी।
1992 से 1998 के बीच विकासशील दुनियाँ में एक परियोजना के लिये
फ्रेडरिक एबर्ट स्टिफ्टंग (जर्मन चान्सलर विली ब्रान्ट द्वारा स्थापित)
में सलाहकार के रूप में कार्य किया और एक पुस्तक (जर्मनी के हेंज
बोंगादुर्ग और फारूक सोमन के साथ) का सह लेखन किया बंगला देश से जिसका
शीर्षक था ‘शेपिंग साउथ एशियाज फ्यूचर’ उन्होंने साउथ एशिया 2010
चैलेन्जेस एण्ड अपॉचयुनिटीज पुस्तक का सह सम्पादन भी किया।
1998 में कान्ता भाई साहिब अपने बच्चों के पास रहने के लिये उत्तरी
अमेरिका के कनाडा चले गए कान्ता भाई साहिब ने सन् 1965 में यू के में
जो स्त्री रोग विशेषज्ञ मन्जू के साथ शादी की। उनके तीन बच्चों के नाम
तिषीना, मीनू और आलोक है। लगभग 54 वर्षों तक कान्ता भाई साहिब की
शादीसुदा जिन्दगी खुशहाल रही। वह अपने परिवार के साथ सक्रिय रूप से
शामिल रहे। कई गतिविधियों में, विशेष रूप से इण्डो-कैनेडियन क्षेत्र
में इण्डो-कैनेडियन चैम्बर ऑफ कॉमर्स के सलाहकार के रूप में। 2012 में
उन्हें इण्डो-कैनेडियम के सुधार के रूप में उनके उत्कृष्ठ योगदान और
उपलब्धियों के लिए महारानी एलिजाबेथ द्वितीय हीरक जयन्ती पदक से
सम्मानित किया गया था।
कान्ता भाई साहिब को बचपन में टेनिस खेलने का बहुत शौक था। उन्हें
शतरंज और ब्रिज खेलना भी पसन्द था। बुढ़ापे में भी उन्होंने खुद व्यस्त
रखने के लिए लगातार काम किया और बदलते समय के साथ चलने के लिये नई
कम्प्यूटर तकनीक और एप्लीकेशन सीखने का प्रयास किया। उनका पसंदीदा
उद्धरण था ’अवेक डे ला पेशेंस, टाउट साराइव’ धैर्य के साथ सब कुछ सम्भव
है। कान्ता भाई साहिब को उनकी दयालुता बुद्धिमत्ता सलाह और विचारों के
लिए उन्हें बहुत प्यार, प्रशंसा और सम्मान दिया जाता रहा। वास्तव में
कान्ता भाई साहिब हमेशा ठोस सिद्धान्तों, निष्ठा और सम्मान की जिन्दगी
जीये। वह एक असाधारण व्यक्ति थे जिन्होंने अपनी उल्लेखनीय दयालुता,
सौम्यता, बडप्पन, उदारता और मदद करने और देने की प्रकृति से उन सभी के
जीवन को छुआ और प्रभावित किया जो उन्हें जानते।
उनका निधन 23 अक्टूबर 2019 की शाम टोरन्टो कनाडा में शान्तिपूर्व
ब्यावर के एक साधारण परिवार में जन्मे यह शक्स अपने जीवन में इतने अनेक
सहृदयी काम कर गए।
ऐसी विलक्षण आत्मा को लेखक का शत् शत् नमन क्योंकि लेखक ने तो अपना
बचपन उनके सानिध्य में बिताया है इसलिये वे हमको तो बहुत याद आयेगें।
उनके छोटे भाई विजय भार्गव को भी अपने सहपाठी वासुदेव मंगल की तरफ से
बहुत बहुत शान्तवना ।
यकीन नहीं हो रहा है कि ब्यावर जैसे छोटे से शहर में जन्म लेकर यह
शक्सियत ऐसे अनेक काम कर अमर हो जायेंगे एक असाधारण कृतित्व है उस महान
आत्मा का।
27.06.2024 |
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