E-mail : vasudeomangal@gmail.com 

‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......

✍वासुदेव मंगल की कलम से.......
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)

क्या केन्द्र शासित प्रदेशों में लोकतंत्र पर अंकुश वाजिब है?

सामयिक लेख: वासुदेव मंगल, स्वतन्त्र लेखक ब्यावर (राज.)

हाल ही मे दिल्ली राज्य का उदाहरण ले लीजिए। उपराज्यपाल किसी सामन्त की तरह नजर आते हैं जबकि उनका मात्र संवैधानिक पद है। जबकि विधान सभा का मुख्य मन्त्री सीधा जनता द्वारा चुनकर आता है जो लोक सेवक होता है।
परन्तु यहाँ पर कुछ ओर ही हो रहा है दिल्ली राज्य में। यहाँ के उप-राज्यपाल एक चुनी हुई सरकार को सहयोग देने के बजाय उसके दैनिक कार्यों तक में बाधा उत्पन्न करते हुए दिखाई देते हैं।
बहरहाल दोनों को ही अपने अपने पदों की गरीमा बनाई रखनी चाहिये। उपराज्यपाल स्पष्ट रूप से केन्द्र के एजेन्ट प्रतीत हो रहे है जिनका प्रमुख उद्देश्य एक दो तिहाई बहुमत से चुनी हुई सरकार को गिराने का अंदाज नजर आ रहा है।
यहाँ पर पूर्व कांग्रेस की शीला दीक्षित के पन्द्रह सालों के शासन को याद कर कहते हैं कि उस शासनकाल में तो कभी ऐसी नौबत नहीं आई। इस प्रश्न के प्रतिउत्तर मे यह कहना है कि उस समय ज्यादावर दिल्ली में कांग्रेस की सरकार थी और बी.जे.पी. के अटल बिहारी बाजपेयी जैसे बड़ी सोच के नेता थे।
दिल्ली की स्थानीय सत्ता का मायाजाल बहुत पुराना है। 12 दिसम्बर सन् 1911 मे राज्य अभिषेक दरबार मे दिल्ली को ब्रिटिश इण्डिया की राजधानी घोषित किया गया था। राष्ट्र अध्यक्ष के प्रतिनिधि कमिश्नर द्वारा प्रशासित दिल्ली को उपराज्यपाल के साथ एक विधान सभा और प्रतिनिधि मण्डल भी मिला। परन्तु कानून बनाने के अधिकार, पुलिस और म्युनिसिपल कारपोरेशन तथा अन्य स्थानीय संस्थाएँ मुख्य कमिश्नर के अधीन ही रही।
आजादी के सन् 1953 में राज्यों के पुनगर्ठन के दौरान दिल्ली केन्द्रशासित क्षेत्र बनकर सीधे राष्ट्रपति के अधीन आ गया। इसमें स्थानीय प्रतिनिधित्व के लिए दिल्ली म्युनिसिपल कारपोरेशन (एम.सी.डी.) बनाया गया। परन्तु इस व्यवस्था (सिस्टम) मे दिल्ली के नेता लोग कोरे के कोरे रह गए तो उनको संतुष्ट करने के लिए आगे चलकर मेट्रोपोलिटन काउंसिल का गठन किया गया। इसमें मुख्य कार्यकारी पार्षद के नेतृत्व से चुने हुए और नामित पार्षद भी रखे गए परन्तु इस काउंसिल को कोई वैधानिक अधिकार नहीं दिये गए।
ऐसी सूरत मे इस काउंसिल का एमसीडी और अन्य स्थानीय संस्थाओं से लगातार संघर्ष होने लगा। इस कलह को कम करने के लिए दिसम्बर 1989 मे दिल्ली विधान सभा का गठन किया गया। इस विधान सभा में मन्त्री मण्डल भी गठित किया जा सकता था। एमसीडी के अधिकार से बिजली, पानी और सीवरेज को निकालकर उनके बोर्ड गठित किये गए, अग्निशमन, स्वास्थ्य, शिक्षा और प्रमुख सड़कों को दिल्ली सरकार के अधीन किया गया, राजमार्गों और लुटियन्स दिल्ली की सड़कें केन्द्र के अधिकार में रही। और कालोनियों की सड़कों पर एमसीडी का अधिकार हुआ।
अभी हॉल ही 2021 में एमसीडी का फिर विभाजन हुआ।
इन सब लगातार होते बदलावों के बावजूद दिल्ली पर मुख्य नियंत्रण राष्ट्रपति के नेतृत्व में केन्द्र सरकार का ही रहा क्योंकि पुलिस, उच्च प्रशासनिक अधिकारी और नियम कानून निर्माण आदि सभी संसद और गृहमन्त्रालय के अधीन ही रहे।
इस प्रसंग को इस तरह से समझा जा सकता है कि दिल्ली के लोगों के जीवन को कई दिशाओं में खींचा जा रहा है। इस कारण वहाँ दिल्ली में कोई भी प्रशासनिक कुशलता विकसित नहीं की जा सकती।
जिस शहर में एक मुख्य सड़क और उससे निकलने वाली घमनी सड़कों के तीन तरह के रख रखाव वाले हों और भारत जैसे जिम्मेदारी निभाने वाले कर्मचारी हो तो जनता का जीवन कैसा हो सकता है यह आसानी से समझा जा सकता है।
इन कई तरह के प्रशासनों का अपना अपना भ्रष्टाचार होता है। और अपनी अपनी अकड़ परन्तु इसके साथ यह भी कि जिम्मेदारी एक दूसरे पर टालना बहुत आसान हो जाता है। चूँकि देश में प्रजातन्त्र है तो सबको जन धन रूपी मलाई खानी है खासकर के नेता और सरकारी तन्त्र को जनहित का नाम लेते हुए कुर्सी का रसास्वादन करते रहते हैं।
यहाँ पर यह बात ध्यान में रखने वाली है कि बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का झांसा दिया था। झाँसा इसलिए क्योंकि सारे के सारे सांसद विजयी होने के बावजूद बीजेपी ने अपना वादा नहीं निभाया और अभी हाल ही में आम आदमी पार्टी सरकार के उच्चतम न्यायालय में जीत के बावजूद एक रात्रि कालीन अध्यादेश द्वारा दिल्ली पर केन्द्र सरकार ने अपना शिकंजा कस लिया। जब मुख्य मन्त्री है, मन्त्री है और विधायक है तो फिर दिल्ली का आम आदमी अपने किसी प्रशासनिक कार्य के लिये क्या केन्द्रिय गृह मन्त्रालय या प्रधान मन्त्री के पास जायेगा ? अपने दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का वादा किया, जनता ने आपको विजयी बनाया और आप अपने ही वादे से मुकर गए।
दिल्ली के प्रशासन को सुचारू चलाना कोई अति जटिल कार्य नहीं है परन्तु नेताओं का अहंकार स्वार्थ और धन कमाने की उनकी लालसा ने पूरे एनसीटी (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) को भ्रष्टाचार का अड्डा बना डाला। इस मुद्दे पर व्यापक संवाद होना चाहिए।
नेशनल केपीटल टेरीटेरी ही महफूज नहीं होगी तो फिर इतना बड़ा अवाम कैसे सम्भलेगा यह एक विचारणीय प्रश्न है। इसके लिये नेताओं में और प्रशासनिक तन्त्र में जनसेवा की भावना निस्वार्थ सेवा काम करने की तत्पर लगन, त्याग और तपस्या आदि गुण से जन सेवक, राष्ट्र सेवक जन ट्रस्टी लोक सेवक नगमा निगारों में ये होने चाहिये तब ही सच्ची जन सेवा हो सकेगी और वास्तव में तब ही जन सेवक कहलाने के हकदार होगें नहीं तो कदापि नही। जन सेवक का तमगा लगाकर अगर आप अपनी और अपनों की सेवा करने में मशगूल हो गए तो फिर बेचारी जनता का क्या होगा जिसने वोट देकर आपको जनसेवक की कुर्सी पर बैठाया है उसको टेक्स रूपी झांसें में रखकर, रोजगार न देकर और मेहगाई पर नियन्त्रण न कर बेचारे को यों ही मरने के लिये छोड़ दोवेेगे क्या यहीं आपका राज धर्म रह गया है क्या? आज देश का अवाम आपसे यह अक्ष प्रश्न पूछ रहा है। क्या आपके पास इसका कोई यथोचित उत्तर है?
आज इस प्रकार सदन में बहस हो रही है। इस गरमागरम प्रकरण पर हमारे जन प्रतिनिधियों को अपने वोट के जरिये इसका उचित स्थाई समाधान करना चाहिये ताकि लोकतन्त्र की स्वस्थ धारा बहती रहे एक जागरूक नागरिक की सभी संसद सदस्यों से अपील है कि इस ग्राहय मसले पर मानवता रूपी आवरण पहनाकर आप अपने मताधिकार का अपने विवेक से सही चयन करेगें ऐसी दोनों सदनों के संसद सदस्यों से लेखक की विनती है। यह बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा हैं जिसका आपके द्वारा सही समाधान करना है क्योंकि दिल्ली हमारी राष्ट्रीय राजधानी है जिसकी आधारभूत समस्या का स्थाई समाधान होना लोकतान्त्रय परम्परा से अत्यन्त आवश्यक है।
आज मत के द्वारा शानदार मौका है जिसके जरिये पर समस्या हमेशा के लिये हल कर सकेंगें। सारी अवाम की आपके ऊपर नजर है। देखते है आप कितना विवेक काम में लेते है। ऐसे मानवीय मसले पर पार्टी से ऊपर उठकर देश की मलाई के लिये आपको अपने मताधिकार का उपयोग करता है।

 
इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
Follow me on Twitter - https://twitter.com/@vasudeomangal
Facebook Page- https://www.facebook.com/vasudeo.mangal
Blog- https://vasudeomangal.blogspot.com

E mail : praveemangal2012@gmail.com 

Copyright 2002 beawarhistory.com All Rights Reserved