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‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......

✍वासुदेव मंगल की कलम से.......
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)

 
कृष्ण जन्माष्टमी पर विशेष
आलेख: वासुदेव मंगल
जन्माष्टमी के पावन पर्व पर आईये श्रीकृष्ण की अनेक लीलाओं का विश्लेष्णात्मक अध्ययन करेंः
कृष्णा एक ऐसे ईष्ट हैं जिनके बाल लाड रूप को भी लडाया जाता सारथी माधव रूप को भी पूजा जाता है। रणछोड़ लीलाओं पर भी भक्त बल्लैय्या लेते हैं। मुरली घर की हर लीला पूज्य है। पीताम्बर धारी, बन्शी बजेय्या, मोरमुकुटधारी, माखनचौर, गय्या के चरैय्या। इस प्रकार कई नाम है कान्हा के जिनमें छुपी हुई प्रकृति की अनोखी झलक।
श्री कृष्ण की प्राकृतिक झलकः मोरपंख, वैजयन्ती माला, चन्दन तिलक चन्दन की सुगन्ध तनाव दूर कर प्रसन्नता देती है। चन्दन की सुगन्ध एकाग्रता प्रदान करती है। पीताम्बरः पीला रंग उत्साहवर्धक एवं उत्तम स्वास्थ्य देने रंग है। अतः भगवान श्रीकृष्ण सदैव पीत वस्त्र धारण करते। इसीलिये सभी शुभ अवसरों पर हल्दी का इस्तेमाल किया जाता है। पीला रंग जागृति और कर्मठता का प्रतीक भी है। यह रंग अँधियारे को दूर कर ऊजाला देता है। श्रीकृष्ण ऋतुओं मे बसन्त कहलाते है जो ऋतुओं का राजा है। क्योंकि इस समय प्रकृति अपने पूर्ण यौवन पर होती है। तो यह श्रृंगार तो कृष्ण के सिर (मस्तक) और शरीर के हुए। अब हम कृष्ण के प्राकृतिक गहनो का वर्णन कर रहे हैं जो हाथों को सुशोभित करते है। वह बान्सुरी जो कृष्ण कन्हैय्या का सबसे प्यारा खिलौना है। बाँसुरी का स्वर मन और मस्तिष्क को शान्ति प्रदान करने होता है। पान्चजन्यः शंख कन्हैय्या का अति प्यारा उद्घोषक रहा। पान्चजन्य शब्द की ध्वनि पाँच मुख से निकलती थी इसी लिए इसे पान्चजन्य स्वर उद्घोषक कहा जाता है जिसे श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध में अर्जुन के सारथी स्वरूप में बजाया था अर्थात् उद्घोषित किया था। ये पाँच ध्वनि द्वार मनुष्य की पाँच इन्द्रियों के सूचक है और इनके अंगों के सूचक है।
श्रीकृष्ण की लीलाएँ: माखन चोर: वासुदेवजी अपने पुत्र श्रीकृष्ण को कंस की क्रूरता से बचाने हेतु देवकी के कहने से मथुरा की कारागार से रात्री को बारह बजे जन्म के समय ही टोकरी मे सुलाकर उस टोकरी को माथे पर रखकर यमुना नदी को पारकर पास ही के ग्वालों के गाँव गोकुल में अपने मित्र यदुबन्शी नन्दराय यशोदा के घर छोड़कर आ गए थे। यदुवंशी गाय पालते थे। अतः कृष्ण का बाल जीवन गायों के साथ ही बीता। कृष्ण ने बचपन से ही गाय चराई और ग्याले ही उनके सखा थे। कन्हैय्या ने गायों का दूध पीया और उससे बना माखन खाया। मख्खन्न शरीर को हष्टपुष्ट बनाता है। कृष्ण को मक्खन बहुत प्रिय था। बचपन में मक्खन मिश्री ही कन्हैया का मुख्य व्यंजन रहा। अगर यशोदा मैय्या माखन देने में आनाकानी करती तो कन्हैय्या माखन यशोदा मैय्या के छाने चुपके चुराकर खाया करते। इसलिये कन्हैया माखनचोर कहलाये।
गया चरैय्या - बन्शी बज्जैय्या: कृष्ण का बचपन गायों को चराते हुए बाल सखा ग्वालों के बीच बीता। अतः वे अक्सर गय्या चरैय्या कहलाये और उस वक्त बान्सुरी वाद्य यन्त्र से सुरीली ध्वनि की धुन पर गुनगुनाते रहने के कारण बन्शी बजैय्या के नाम से पुकारे जाने लगे मुरली घर कहलाये। इन्द्र के प्रकोप से अपने सखा ग्वालों को मेघ से बचाने हेतु गिरराज पर्वत को अपनी दाहिने हाथ में उठाकर उसको छतरी बनाकर सभी सखाओं को इन्द्र की मूसलाधार बरसात से बचाकर गिरीराजघरण कहलाये। महाभारत के युद्ध में सुदर्शनचक्र को अपनी दाहिने हाथ की अंगुली को धूरी बनाकर चलाकर सत्य का साथ देकर पांडवों की कौरवों से रक्षा कर चक्रधारी कहलाये। सखाओं के साथ खेलत वक्त जब गेंद यमुना नदी में चली गई तो यमुना में कूद गए गेन्द लाने के लिये। वहाँ पर कालिया नाग का मर्दन कर गेन्द को यमुना मंे से लेकर आये। इसी प्रकार समुद्र मन्थनकर समुद्र में से चौदह रत्न निकालकर लीला घर कहलाये। इस प्रकार भगवान श्री कृष्ण की अनेक लीलाऐं है।
(1) श्री कृष्ण हर युग के गुरु भी है। रिश्तों को दिल से जीना सिखाया जैसे अर्जुन, सुदामा और उद्धव कृष्ण ने जिनको भी मन से माना उनको जीवनभर निभाया। कृष्ण का इस बारे में सीधा सन्देश यह है कि सबसे बड़ी धरोहर रिश्तें ही हैं।
(2) श्री कृष्ण ने वर्तमान में जीने की कला सिखाई। क्यों व्यर्थ की चिन्ता करते हो। तुम क्या लेकर आए थे जो खो गया है? कर्म पर तुम्हारा अधिकार है कर्म किए जा फल की इच्छा मत कर रे इन्सान जैसा करम करेगा वैसा फल देंगे भगवान। ये है गीता का ज्ञान यह है गीता का ज्ञान।
(3) जीवन को सकारात्मक गति देने के लिए चिंत्तन करें जिससे मन में शान्ति, स्फूर्ति, एकाग्रता आती है। चिन्तन करने से उत्साह और प्रेम का भाव उत्पन्न होता है। जब मनुष्य के सामने कोई समस्या होती है तब ही उसके हल के बारे मे प्रयास करता है अन्यथा कदाचित कभी नहीं करता है व्यर्थ की चिन्ता भय, लोभ, क्रोध और घृणा को जन्म देती है।
(4) नारी का सम्मान अति आवश्यक है। श्री कृष्ण ने नरकासुर राक्षस को मारकर 16100 महिलाओं को मुक्त कराया परन्तु उनके घर वालों ने उनको दुषित मानकर त्याग दिया तब श्रीकृष्ण सभी महिलाओं को पत्नि के रूप में स्वीकारा। महाभारत नारी के सम्मान के लिये ही लड़ा गया। जब द्रौपदी की भरी सभा मे दुशासन ने चीर हरण किया तो महाभारत का युद्ध लड़ा गया था।
(5) बदलाव को स्वीकारें: परिवर्तन संसार का नियम है। आज लोग छोटे मोटे पद पाकर घमण्ड करते है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि जिसे तुम मृत्यु समझते हो वहीं तो जीवन है। एक समय तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो और दूसरे क्षण तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया मन से मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है। तुम सब के हो।
(6) सभी मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होते है, जैसा वे भरोसा करते हैं वैसे ही वह बन जाते हैं। श्रीकृष्ण कहते हैं कि अगर कोई उनको अर्पित कर देता है तो वे उसकी मदद मुक्त होकर करते हैं। उसे भय, चिन्ता, शोक आदि से मुक्त कर देते हैं। उसे बैकुण्ठ भेज देते हैं।
(7) डटकर लड़ने के लिये कृष्ण प्रेरित करते हैंः श्री कृष्ण मृत्यु को नये जीवन की शुरुआत मानते है। सच्चाई को स्वीकार करो और चुनौतियों का डटकर मुकाबला करो। कर्म करते रहो फल की इच्छा न करो उसे भगवान पर छोड़ दो। जो होगा अच्छा ही होगा इसी आशा के साथ जीवित रहना सीखोे।
(8) मन ही किसी का मित्र है और मन ही किसी का शत्रु हैः छोटी छोटी खराब आदतें ही हमारे विनाश का कारण बनती है। क्रोध से भ्रम होता है। भ्रम से बुद्धि का विनाश होता है। जब बुद्धि काम नहीं करती है तब तर्क नष्ट हो जाता है और व्यक्ति का नाश हो जाता है।
(9) लीडर बनें पर श्रेय लेने से बचें: श्री कृष्ण ने सैकड़ों लड़ाईयाँ लड़ी लेकिन उन्होंने कभी भी पद प्रतिष्ठा की चिन्ता नहीं की। इसी प्रकार न ही कभी जीते हुए युद्ध का श्रेय लिया। जरासन्ध का वध किया तो उसके बेटे को राजा बनाया श्री कृष्ण चाहते तो मथुरा, हस्तिनापुर और पूरी पृथ्वी पर राज करते। परन्तु उन्होंने ऐसा नहीं किया। महाभारत की जीत का श्रेय पाण्डव को देते हैं। श्री कृष्ण कहते हैं कि आप जो भी काम करें उसमें पूरा मन लगाए। रम जायें। अपने काम में ही खुशी ढूँढे। ऐसे लोग निश्चित ही सफलता को प्राप्त करते हैं।
(10) श्रीकृष्ण कहते हैं कि भक्ति के मार्ग पर सो मत जानाः यहाँ पर सो मत जाना से दो अभिप्राय है। एक है नीन्द त्यागना और दूसरे का अर्थ है आँखें खुली रखते हुए सोना, जिसे कहते हैं बेहोशी। ज्योतिषियों ने नंन्दराय को बताया था कि भाद्रपद कृष्ण की अष्टमी को आधी रात को पुत्र का जन्म होगा। तब गोकुलवासियों ने खूब तैय्यारियाँ की, लेकिन जब कृष्ण आये तो सब सो रहे थे अपने पिता के सिर पर टोकरी उसके अन्दर से कृष्ण देख रहे थे और यह उनके भक्तों के साथ पहला अनुभव था, कि मैं जब आता हूँ तो मेरे भक्त सो जाते हैं।
फिर उन्होंने रूदन किया तो सब उठे। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर हमें यह समझजना चाहिये कि जो सो गया, उसे उसका ईश्वर मिलने में देर करेगा। यहाँ पर जागने का मतलब होश से है जिसका अंग्रेजी में मतलब अवेयरनेस से है। इसका सीधा सा मतलब यह है कि जो जागता है वह सही काम करेगा वह कभी गलत काम नहीं करेगा। कहने का मतलब जब कृष्ण गोकुल में आए तब सब लोग जागते हुए भी सो रहे थे। यहीं तो है कृष्ण लीला कि यशोदा जी के यहाँ तो लड़की का जन्म हुआ था परन्तु वसुदेवजी कब गोकुल आए, कब कृष्ण की जगह कन्या को ले गए किसी को मालूम नहीं। हमारे ब्यावर सिटी का नाम भी तो डिक्सन ने बिअवेयर रक्खा था बिअवेयर का अर्थ भी तो हमेशा सावधान रहने से है।
 
इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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