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आजादी का दीवाना स्वामी कुमारानन्द
रचनाकार - वासुदेव मंगल
स्वामी कुमारानन्द जी का जन्म बैसाख शुक्ला 3 सं. 1945 में तद्नुसार ईस्वी सन् 1888 में तत्कालीन रंगून के मजिस्ट्रेट के यहां पर हुआ। आपके पूर्वज ढ़ाका के रहने वाले थे। आपके बचपन का नाम व्दिजेन्द्रकुमार था। स्वामी जी ब्यावर में राष्ट्रीयता के जन्मदाता थे।
देश के इतिहास में यदि कोई ऐसा व्यक्ति था जिसने अपना सम्पूर्ण जीवन लगातार कठोर यातनाओं व नृशंस अत्याचारों के सहने में ही बिताया और जिसका क्रांतिकारी मस्तिष्क मातृभूमि को आजाद कराने के लिए अनेकानेक महत्वपूर्ण योजनायें भी बनाने में संलग्न रहा और जिसने अपने जीवन पर्यन्त तिल-तिल कर अपनी जवानी को देश के लिए होम दी। वे ओर कोई नहीं अपितु आजादी के दीवाने स्वामी कुमारानन्दजी ही थे।
स्वामी कुमारानन्द के हृदय में देश भक्ति की जो प्रबल ज्वाला धधक रही थी उससे कोई इन्कार नहीं कर सकता। राजस्थान और विशेषतः ब्यावर नगर स्वामीजी का अत्यधिक ऋणी है। आप ब्यावर के राष्ट्रीय आंदोलन के जन्मदाता रहे तथा अनेक प्रमुख राजनैतिक कार्यकर्ताओं के गुरू रहे व अत्याचार त्रस्त और उत्पीडि़त जनता का नेतृत्व करने में आप सदैव अग्रसर रहे। आपने न केवल ब्रिटिश साम्राज्यशाही के छक्के छुडा दिये अपितु 13 वर्ष की आयु में अर्थात सन् 1901 में आपने अपने खून से यह प्रतिज्ञा लिखी थी कि ‘‘ आजीवन देश की सेवा करूंगा। ’’
स्वामी का कोई सानी नहीं जिसका सम्पूर्ण जीवन देश सेवा में बिता हो। आज तो लोग कुर्सी हथियाने की फिराक में रहते हैं और यह अवसर प्राप्त करते ही वैभवता, विलासिता का जीवन जीते है।‘ देशहित का चिन्तन ’ आज के किसी भी नेता को नहीं रहा हैं।
विद्यार्थी जीवन में ही स्वामी जी ने बिना पासपोर्ट ही चीन में जाकर प्रजातंत्रीय चीन के पिता ‘स्वर्गीय डाॅ. सनयातसेन के सानिध्य में रहे और उनसे राजनीति की शिक्षा ग्रहण की। लगभग 20 वर्ष की उम्र में आपने पंाडिचेरी आश्रम के योगगीराज अरविन्द घोष के साथ क्रांतिकारी प्रवृतियों को प्रोत्साहन देने के लिए भारत भ्रमण किया। इसी भ्रमण के सिलसिले में अक्टूबर 1909 में आप प्रथम बार श्री अरविन्द घोष के साथ में ब्यावर पधारे और ‘ तिलकयुग के भामाशाह ’ देशभक्त दामोदरदासजी राठी का आतिथ्य स्वीकार किया। सन् 1910 में स्वामीजी ने इन्हीं अरविन्द घोष के नेशलन काॅलेज से सम्मान सहित बी.ए. पास किया। योगीराज अरविन्द घोष स्वामीजी से अत्यन्त प्रभावित रहे। अतः पांडिचेरी आश्रम में स्वामीजी के जाने-आने की कोई मनाहीं नहीं थी।
स्वामीजी के पिता इन्हें भारतीय सिविल सर्विस की परीक्षा दिलाना चाहते थे। लेकिन इनकी देशभक्ति ने इन्हें कटंकाकीर्ण जीवन के मार्ग को अपनाने के लिए विवश कर दिया और आप सक्रिय रूप से सार्वजनिक क्षेत्र में कूद पडे़। सन् 1911 में आप क्रांतिकारी प्रवृतियों में गिरफतार कर लिए गए और अनेक वर्षों तक भारत की विभिन्न जेलों में आपको भयंकर यातनांए सहनी पड़ी। कोडों की मार, बदन में बिजली चढ़ाना, नाखूनों में सुईयां चुभाना, पेशाब पिलाना, काल-कोठरी में बन्द करना आदि अनेक नृशंस अत्याचार भी आपने जेलों में भुगते। कई बार तो विरोध स्वरूप दीर्घकालीन अनशन भी किये थे।
लगभग सन् 1919 में सन्यासी के वेश में ब्यावर नगर में स्वामीजी का आगमन हुआ और आप श्री चिरंजीलाल भगत की बगीची में ठहरे। धीरे-धीरे ब्यावर इनकी क्रांतिकारियो प्रवृतियों का केन्द्र बन गया। भारत विख्यात अनेकानेक क्रांतिकारियों के आप गुरू तो थे ही इसलिये आपके कारण ब्यावर में श्री एम.एन. राय, चन्द्रशेखर आजाद, भगतसिंह, बटुकेश्वरदत्त, हंसराज वायरलैस, काकोरी के शहीद रामप्रसाद बिस्मिल, शौकित उस्मानी आदि का लगातार आना-जाना रहा। आपके परामर्श से ही इन शूरवीरों के कार्यक्रम तैयार किये जाते थे। आपकी सहायता से ही चन्द्रशेखर आजाद तो अज्ञातवास के समय मे भी पर्याप्त समय तक इधर ही रहे और कहते हैं कि उसने अपना बलिदान भी स्वामीजी के आदेशानुसार किया।
स्वामीजी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के बहुत पुराने सदस्य रहे। अक्टूबर 1927 में कलकत्ता में अखिल भारतीय कांगे्रंस कमेटी की सभा में प्रधान स्वर्गीय श्री निवास आंयगर की अस्वस्थता के कारण आप ही एक दिन के लिए कार्यकारी प्रधान बनाये गए। इस प्रकार राष्ट्रीयता का सर्वोच्च सम्मान भी आपको प्राप्त हुआ। आपने ‘अखिल भारतीय राजनैतिक पीडि़त संघ’ की स्थापना की जिसका प्रथम अधिवेशन स्वामी गोविन्दानन्दजी की अध्यक्षता में कानपुर में सम्पन्न हुआ। सन् 1928 में आपने कलकत्ता कारपोरेशन के सहस्त्रों हरिजनों की हड़ताल का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया।
सन् 1929 में आपका अधिकतर समय जेलों में ही बीता। अनेक प्रान्तीय सरकारों ने आपका प्रवेश निषिद्ध कर दिया। जब कभी आपको जेल से बाहर रहने का समय मिला तो आप ब्यावर में ही रहे। विद्यार्थी आन्दोलन को भी आपने प्रोत्साहन दिया। आपने राजपूताना मध्य भारत छात्र संघ की स्थापना की जिसका प्रथम अधिवेशन दिसम्बर सन् 1937 में स्वर्गीय के.एफ. नरीमन की अध्यक्षता में हुआ। सेठ श्री घीसूलाल जाजोदिया के साथ आपने मील मजदूर आंदोलन में भी सक्रिय भाग लिया।
आपका सपना साकार हुआ और 15 अगस्त सन् 1947 को भारत आजाद हुआ। आपने ब्यावर विधानसभा क्षेत्र से कम्यूनिस्ट पार्टी के उम्मीदवारी से विधायक के रूप में पाॅंच वर्षो तक ब्यावर क्षेत्र का राजस्थान विधानसभा में प्रतिधिनित्व सन् 1962 से 1967 तक किया था। अन्त में 29 दिसम्बर सन् 1971 को स्वामीजी सदैव के लिए ब्रहम्लीन हो गये। आज की पीढी के लिए स्वामीजी राजनैतिक त्याग तपस्या के जाजवल्य आदर्श है जिनको उनके इन महान् आदर्शो से शिक्षा अपने जीवन में अंगीकार करनी चाहिए। आपके के कारण ही ब्यावर भारत के मानचित्र पर ही नही अपितु विश्व के मानचित्र पर आ गया। राष्ट्रीय आन्दोलन से जुड़े बड़े-बडे़ देश भक्त, जुझारू कार्यकर्ता ब्यावर में आने लगे और आपसे प्ररेणा लेकर भारत के विभिन्न स्थानों में क्रान्तिकारी आन्दोलन को सक्रिय रूप देने लगे। इसमें महत्वपूर्ण उत्तर प्रदेश, बंगाल, महाराष्ट्र और पंजाब प्रान्त मुख्य है। अतः ब्यावर राष्ट्रीय आन्दोलन के कार्यकर्ताओं की कर्म एवं प्रेरणा स्थली बन गया। आप राष्ट्रीय आन्दोलन के जनक बन गये। सारा भारतवर्ष आपको सम्मान की दृष्टि से देखता है। सूचना के अधिकार को प्राप्त करने के आन्दोलन का सूत्रपात भी मेघसेसे अन्तर्राष्ट्रिय पुरूषकार से सम्मानित अरूणाराय ने आपकी प्रतिमा के नीचे बैठकर चांगगेट ब्यावर से सफलता पूर्वक संचालन किया। परिणामस्वरूप कई राज्यसरकारों ने सुचना के अधिकार को जनता को सुलभ कराने के लिए कानून बनाया और अन्य राज्य सरकारें व केन्द्रिय सरकार भी इस अधिकार को शीघ्रताशीघ्र कानुन बनाने की सोच रही है। ऐसा है आपका ब्यावर महान्। आपके कारण ही पं. सुन्दरलाल शर्मा, सूर्यदेव शर्मा साहित्य लंकार, मनमथनाथ गुप्त आदि महान साहित्यकार एवं तात्कालीक विद्धान ब्यावर पधारें।
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