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*2 अक्टूबर 2023 को लाल बहादुरशास्त्री के 119वें जन्म दिन पर विशेष*
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आलेखः वासुदेव मंगल, ब्यावर सिटी (राज.)
भारत देश के दूसरे प्रधानमन्त्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर सन् 1904 को हुआ था। आत्मसम्मान के घनी, आजादी के दिवाने शास्त्रीजी स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान जेल गए थे। वे 17 साल की उम्र में जेल गए।
लाला लाजपतराय से लोक सेवा मण्डल की दीक्षा लेकर उनके कहे अनुसार जीवन पर्यन्त शास्त्रीजी नींव के पत्थर की भाँति सादगी का जीवन जीते रहे। वे नैतिकता की प्रतिपूर्ति थे। सन् 1956 में तमिलनाडु के अरियालपुर में हुई रेल दुर्घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए तुरन्त रेलमन्त्री के पद से इस्तीफा दिया। आजकल पद पर चिपके रहने वाले मन्त्री की तरह वे नहीं थे। अपने जीवन में उन्होंने कभी भी आडम्बर नहीं किया। ने दिखावे से सदा दूर रहे। उन्होंने कभी नहीं चाहा कि उनका नाम अखबारों की सुर्खियाँ बने और लोग उनकी प्रशंसा करें। वे कभी भी ताजमहल के संगमरमर के पत्थरों से कोसों दूर रहे जिनकी आभा, खूबसूरती और चमक की दुनियां प्रशंसा करती है। उन्होंने हमेशा अपना जीवन नींव के पत्थर की भाँति सादगी से जिया। उनके जीवन में कोई तड़क-भड़क नहीं थीं। वे जय जवान-जय किसान के उद्घोषक थे। शास्त्रीजी जन जन के दुलारे थे। कर्त्तव्यनिष्ठा और सत्यता के पुजारी। वे नाटे कद वाले व्यक्ति थे। उनका चेहरा सदा मुस्कराता रहता था। उन्होंने, अपने जीवन में कभी भी कानून कायदे की अवहेलना नहीं की और न ही कभी अवहेलना होने दी।
सन् 1965 की भारत पाकिस्तान की लड़ाई के समय पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय सीमा रेखा को पार करके पाकिस्तान की धरती में घुसकर आक्रमण कर लाहौर के नजदीक पहुँच जाने का साहसिक फैसला लेने वाले शास्त्रीजी ही थे। उनके इस निर्णय की प्रशंसा तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल चौधरी और वायुसेना के मुखिया एयर मार्शल अर्जुन ने भी की थीं।
शास्त्रीजी का जीवन नींव के पत्थरों की भाँति अन्तर्मुखी था। उनका सद्चरित्र, निष्काम जीवन हमेशा प्रेरणादायी रहेगा। आने वाली पीढ़ियाँ उनके आदर्शों को अपने जीवन में आत्मसात करेगी। सुनील शास्त्री उनके लड़के ने एक बार अपने पिता की कार चलाई तो सुनील ने किलो मीटर का हिसाब कर पैसा सरकारी खाते में जमा कराया था।
सन् 1965 के युद्ध में हैदराबाद के पूर्व निजाम मीर उस्मान अली ने युद्ध के फण्ड में पाँच टन सोना यानि पाँच हजार किलो सोना दान में दिया। आज के बाजार मुल्य के रूप में निजाम का योगदान करीब तीन अरब रुपया बनता है। यह भारत में किसी भी व्यक्ति या संगठन द्वारा अब तक का सबसे बड़ा योगदान है। इस सोने को लेने के लिये स्वयं लाल बहादुर हैदराबाद गए और मीर उस्मान अली को धन्यवाद दिया।
शास्त्रीजी मन और कर्म से पूरी तरह गाँधीवादी थे। एक बार उनके घर पर सरकारी विभाग की तरफ से कूलर लगाया गया। शास्त्रीजी ने अपने परिजन से कहा, इलाहाबाद के पुश्तैनी घर में कूलर नहीं है। कभी धूप में निकलना पड़ सकता है। ऐसे आदतें बिगड़ जाएगी। उन्होंने तुरन्त सरकारी विभाग को फोन कर कूलर हटवा दिया। शास्त्रीजी के प्रधानमन्त्रीत्व काल में जब भुखमरी की विपत्ति आई देश में तो स्वयं शास्त्रीजी ने एक दिन का व्रत रखा तथा अपने परिजनों से भी नियमित व्रत रखवाया तथा शास्त्रीजी ने कहा कि देश का हर नागरिक यदि एक दिन का उपवास रक्खे तो भुखमरी की समस्या का सामना किया जा सकता है। तो ये रोचक प्रसंग है, जो शास्त्रीजी के जीवन दर्पण को प्रतिबिम्बित करते है।
स्वर्गिय शास्त्रीजी उजबेगिस्तान की राजधानी ताशकन्द में तत्कालिन रसिया के प्रधानमन्त्री की मध्यस्था में पाकिस्तान से युद्ध का समझौता करने गये 11 जनवरी 1966 को। परन्तु बड़े खेद के साथ लिखना पड़ रहा है कि वहाँ पर उनकी मृत्यु का रहस्य आज भी बना हुआ है।
जननायक लाल बहादुरजी के जन्मदिन पर हम सभी देशवासी उनकी कर्तव्य निष्ठा, सत्यता, निर्भीकता, ईमानदारी, देशप्रेम, सादगी और सरलता से प्रेरणा लें।
2 अक्टूबर 2023 को जन नायक शास्त्रीजी के 119 वें जन्म दिन पर 142 करोड़ भारतवासियों का उनके श्री चरणों में कोटि कोटि नमन और श्रद्धा सुमन।
02.10.2023
इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
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