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महाराणा प्रताप


1540-1590
राणा के जीवन के ऐतिहासिक घटना क्रम
रचनाकारः वासुदेव मंगल

 

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महाराणा प्रतापसर्किल , मेवाडी गेट बहार ब्यावर

 


1
महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई सन् 1540 . में हुआ।
2
अकबर द्वारा मेवाड, अजमेर, नागौर एवं जैतारण सन् 1556-57 . में विजय किये गये।
3
कुँवर अमरसिंह का जन्म 16 मार्च सन् 1559 . में हुआ।
4
महाराणा उदयसिंह द्वारा उदयपुर बसाना सन् 1559 . में।
5
सिरोही के देवड़ा मानसिंह का मेवाड़ में शरण लेना सन् 1562 . में।
6
मालवा के बाज बहारदुर का मेवाड़ में शरण लेना सन् 1562 . में।
7
अकबर की आमेर से सन्धि सन् 1562 . में।
8
अकबर का मेड़ता पर आक्रमण और जयमल का चित्तौड़ आगमन सन् 1562 . में।
9
उदरयसिंह की भोमट के राठौड़ों पर विजय 1563 . में।
10
अकबर का जोधपुर पर आक्रमण सन् 1563 . में
11
महाराणा उदयसिंह द्वारा चित्तौड त्याग सन् 1567 . में।
12
अकबर का चित्तौड़ पर पुनः आक्रमण विजय 25 फरवरी 1568 ईं. में।
13
अकबर का रणथम्भौर पर आक्रमण विजय 24 मार्च 1569 ईं. में।
14
नागौर, जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर द्वारा अकबर की मुगल आधीनता स्वीकार करना 25 नवम्बर से 25 दिसम्बर सन् 1570 . में।
15
उदयसिंह की मृत्यु और प्रताप का गोगूदाँ में राजतिलक 28 फरवरी सन् 1572 ईं. में।
16
मुगल दूत जलाल खाँ कोरची का मेवाड़ आना सन् 1572 ईं. में।
17
ण् कुँवर मानसिंह कच्छावा का अकबर के दूत की हैसियत से, मेवाड़ आकर महाराणा प्रताप से भेंट करना सन् 1573 . के अपे्रल महीने में।
18
अकबर के तीसरे दूत भगवन्तदास का प्रताप से मिलना सितम्बर सन् 1573 . में।
19
टोडरमल का प्रताप से मिलना दिसम्बर सन् 1573 ईं. में।
20
हल्दीघाटी का युद्ध 18 जून 1576 . में।
21
ईडर के नारायणदास, सिरोही के सुरताण, जालोर के ताजखां, जोधपुर के चन्द्रसेन, बून्दी के दूदा द्वारा मुगलों को मुहतोड़ उत्तर देना जून अक्टूबर सन् 1576 . में।
22
प्रताप द्वारा गोगून्दा वापिस लेना और अकबर के बैठाये थोनों पर आक्रमण अगस्त सितम्बर सन् 1576 . में।
23
मुगल सेना द्वारा जालौर, सिरोही एवं ईडर पर आक्रमण करना अक्टूबर, सन् 1576 ईं. में।
24
अकबर की मेवाड़ पर चढ़ाई - अक्टूबर सन् 1576 . में।
25
ईडर के नारायणदास सिरोही राव सुरताण द्वारा पुनः मुगलों से सॅंघर्ष - जनवरी, फरवरी सन् 1577 . में।
26
मुगल सेना द्वारा पुनः ईडर पर आक्रमण 19 फरवरी सन् 1577 . में।
27
मुगल सेना द्वारा बून्दी विजय पर आक्रमण मार्च 1577 . में।
28
प्रताप द्वारा मोही तथा अन्य मुगल थानों पर आक्रमण तथा विजय अक्टूबर सन् 1577 . में।
29
शाहबाजखाँ की मेवाड पर चढ़ाई 15 अक्टूबर 1577 . में।
30
शाहबाजखाॅं द्वारा कुम्भलगढ़ विजय 3 अपे्रल 1578 . में।
31
प्रताप का दप्पन के राठौड़ों के विद्रोह को दबाना और चावण्ड को राजधानी बनाना 1578 ईं. में।
32
भामाशाह का मालवा पर आक्रमण और प्रताप को लूट का धन भेंट करना सन् 1578 . में।
33
प्रताप की सेना का डूॅंगरपुर, बाॅंसवाड़ा पर आक्रमण सन् 1578 . में। 
34
शाहबाज खां का द्वितीय आक्रमण 15 दिसम्बर सन् 1578 . में।
35
शाहबाज खां का तृतीय आक्रमण 9 नवम्बर 1579 . में।
36
प्रताप के मेवाड के मैदानी भाग से मुगल थाने उठाना और माण्डलगढ़, चित्तौड़गढ़ तक आक्रमण करना सन् 1580-1584 . तक।
37
प्रताप के मुगल सेवक भाई जगमाल का सिरोही के राव सुरताण के विरूद्ध युद्ध में मारा जाना 15 अक्टूबर 1583 . में।
38
मुगल सेनापति जगन्नाथ कच्छावा की मेवाड़ पर चढ़ाई दिस्म्बर 1584 ईं. में।
39
जगन्नाथ कच्छावा का प्रताप के निवास स्थान चावड पर आक्रमण सितम्बर 1585 . में।
40
अमरसिंह द्वारा रहीम खानखाना के परिवार के स्त्री, बच्चों को सादर लौटाना सन् 1585 . में।
41
प्रताप द्वारा माण्डलगढ़, चित्तौड़गढ़, छोड़कर समस्त मेवाड़ पर पुनः विजय सन् 1586 . में।
42
महाराणा प्रताप का चावण्ड में निधन 19 जनवरी सन् 1590 . में।


रण-बाकुँरा राजस्थान! रक्तदानी राजस्थान! बलिदानी राजस्थान! शौर्य, साहस और सॅंघर्ष की सतत् शाखा का समुच्चय राजस्थान कहीं जोहर व्रत तो कहीं केसरिया व्रत कर्नल टाड ने लिखा कि यह वहीं राजपूत है जिसके वॅंशजों ने कभी अरब ईरान जय किया था। इनके वंशजोँ में एक राजा गज थे जिन्होंने गजीन को अपनी राजधानी बनाया। तब उसका नाम था गजनबी। उस समय राजपूत नाम का चलन नहीं था वे रावल कहलाते थे। उन्हीं लोगों ने रावलपिण्डी बसाई स्यालकोट को केन्द्र बनाया। इसका नाम पहीले शालिपुर था। इसका इससे भी प्राचीन नाम साकल था। शालि का सम्बन्ध शालिवाहन से है ये गज के पुत्र थे। आगे रावल, महारावल, राजकुल सरीखे शब्द विख्यात हुए। बप्पा रावल सर्वविदित है और यही मेवाड के राजपूतों के आदि पुरूष है। चित्तौड़ इनकी राजधानी थी। ये बप्पा रावल खुरासान, मुल्तान, काबुल, कन्धार जीतते हुए पुनः गजनी तक पहॅंुचे थे।

 

 

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