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‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......

✍वासुदेव मंगल की कलम से.......  ब्यावर सिटी (राज.)
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)

2024 की 15 जनवरी को मकर सक्रान्ति का पावन  पर्व
आलेख: इतिहासकार वासुदेव मंगल, ब्यावर (राज.)
सूर्य हमारा प्राकृतिक देवता है। भारत का कालचक्र सूर्य की गति के अनुसार चलता है। सूर्य का संक्रमण करना लगातार एक राशि से दूसरी राशि में प्रवाह करना काल प्रवाह का परिचायक है। मकर सक्रान्ति का मतलब सूर्य धनु राशि से इस दिन मकर राशि में प्रवेश करता है।
मकर सक्रान्ति का विशेष महत्व है। इसका कारण है सूर्य इस दिन अपने पुत्र शनि की राशि में प्रवेश करता हैं। अतः इस दिन पिता सूर्य अपने पुत्र शनि के घर स्वयं जाते हैं। अतः इसे पिता पुत्र का मिलाप होता है जिसको अति महत्व पूर्ण माना जाता है क्योंकि शास्त्र के अनुसार ज्योतिष मे सूर्य व शनि में शत्रुता बताई गई है परन्तु मकर सक्रान्ति के पावन दिन में पिता का प्रेमालाप होता है जो अति उत्तम दिन है।
दूसरा कारण मकर सक्रान्ति की महत्ता है भागीरथ राजा इसी दिन गंगा नदी को धरती पर लाकर तिल से तर्पण अपने पूर्वजों का किया था। तर्पण के बाद गंगा इसी दिन सागर में समा गई थी। इसीलिए इसी दिन गंगा सागर में विशाल धार्मिक मेला भरता है।
तीसरा कारण भगवान विष्णु ने इसी दिन असुरों का संहार कर उनके सिर को मंदार पर्वत पर दबाकर युद्ध समाप्ति की घोषणा कर दी थीं। इसी वजह से बुराई पर अच्छाई व असत्य पर सत्य की जीत के रूप में मनाते है।
सोर संवत्सर में मकर सक्रान्ति में सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण तक का सफर अत्यन्त महत्वपूर्ण है। सनातन धर्मी हिन्दू सूर्य के उत्तरायण काल में ही शुभ कार्य करते हैं। सूर्य जब मकर, कुम्भ, वृषभ, मीन, मेष और मिथुन राशि में रहता है तो इसे उत्तरायण कहते हैं। बाकि अन्य राशियों में जब सुर्य रहता है तो इसे दक्षिणायन कहते जैसे सिंह, कन्या, कर्क, तुला, वृश्चिक और धनु राशि में। शास्त्र के अनुसार उत्तरायण देवताओं का दिन तथा दक्षिणायन देवताओं की रात होती है। जितने समय में पृथ्वी सूर्य के चारों ओर एक चक्कर लगाती है उसी अवधि को एक सौर वर्ष कहते हैं। पृथ्वी का गोलाई में सूर्य के चारों घूमना क्रान्ति चक्र कहलाता है। इस परिधि चक्र को बाटकर बारह राशियाँ बनी है। सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करना सक्रन्ति कहलाता है। मकर सक्रान्ति के दिन यज्ञ में दिया हव्य को ग्रहण करने के लिए देवता धरती पर अवतरित होते हैं।
मकर सक्रान्ति का त्यौहार सम्पूर्ण सृष्टि के लिए ऊर्जा के स्रोत भगवान सूर्य की आराधना के रूप में मनाया जाता है। उत्तरायण में इसी मार्ग से पुण्यात्माएं शरीर छोड़कर स्वर्ग आदि लोकों में प्रवेश करती है। सनातन धर्म की मान्यताओं के मुताबिक इस दिन पुण्य, दान, जप तथा धार्मिक अनुष्ठानों का अत्याधिक महत्व है और इसी दिन किये गए दान पुण्य से उन्हें सौ गुणा ज्यादा फल प्राप्त होता है। उत्तरायण सूर्य के आने से पर सूर्य की किरणें पृथ्वी पर पूरी तरह से पड़ती है और यह पृथ्वी प्रकाशमय हो जाती है।
वैज्ञानिकों के अनुसार 21-22 दिसम्बर के आस पास से ही दिन का बढ़ना शुरू हो जाता है। इसीलिए वास्तविक शीतकालीन संक्रान्ति 21 दिसम्बर या 22 दिसम्बर जब उष्णकटिबन्धीय रवि मकर राशि में प्रवेश करती है इसी लिए वास्तविक उत्तरायण 21 दिसम्बर को होता है। यहीं मकर सक्रान्ति की वास्तविक तारीख भी थी। एक हजार साल पहीले मकर सक्रान्ति 31 दिसम्बर को मनाया गया था वर्तमान समय में साधारणतया 14 जनवरी को मकर सक्रान्ति मनाई जाती है। वैज्ञानिक गणनाओं के अुनसार पाँच हजार साल बाद मकर सक्रान्ति का पर्व फरवरी के अन्त तक हो सकता है जब कि नो हजार साल बाद में यह जून में आ जायेगा।
खगोलीय अवधारणाओं के मुताबिक सूर्य के धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करने को मकर सक्रान्ति कहा जाता है। दरअसल हर साल सूर्य का धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश 20 मिनट की देरी से होता है। इस तरह हर तीन साल के बाद सूर्य एक घण्टे बाद और हर 72 साल एक दिन की देरी से मकर राशि में प्रवेश करता है। इस तरह 2080 के बाद मकर सक्रान्ति 16 जनवरी को पडेगी।
सक्रान्ति के बाद मौसम में बदलाव आता है और हमारे खानपान में भी बदलाव करते है। इसका सीधा सीधा अर्थ है कि परिस्थिति में आए बदलाव के अनुसार हमें अपने आप को ढाल लेना चाहिए। इस दिन से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने जीवन में आपसी रिश्तों मजबूत बनाये रखना चाहिए यही सबसे बड़ी पूँजी होती है। शुभ कार्यों की शुरुआत करने में देरी नहीं करे। याद रखें एक असफलता दूसरी सफलता का दरवाजे खोलती है। आपको अपने लक्षों को पूरा करने के लिये मेहनत करनी पडेगी। अतः मकर सक्रान्ति का दिन हमारे जीवन में नई उमंग जोश और ऊर्जा का संचार करता है।
14.01.2024
 
 
इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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