विकास
करने की
दृष्टि से
राजस्थान को
दो राज्यों
में बाँटा
जावे
(1)‘मरू
प्रदेश’ (2)‘मेरवाड़ा
प्रदेश’
आलेख:
वासुदेव
मंगल
Date
- 20-12-2017
राजस्थान
देश का सबसे
बड़ा राज्य
हैं। इसका
क्षेत्रफल 343
लाख
हेक्टेयर
भूमि हैं।
परन्तु
चुंकि इस
राज्य की
प्राकृतिक
भौगौलिक
विषमता यह है
कि राज्य का 90
प्रतिशत भाग
रेगिस्तानी
और पथरीला
पहाड़ी
प्रदेश है।
इसमें
168 लाख
हैक्टेयर
भूमि कृषि
योग्य है। 101
लाख
हेक्टेयर
भूमि बंजर
है।
राज्य
में भारत देश
के कुल
भौगौलिक
क्षेत्रफल
का 10.04 प्रतिषत
क्षेत्रफल
हैं। परन्तु
इस 10.4 प्रतिशत
क्षेत्रफल
में उपलब्ध
कुल जल का भाग
मात्र 1.16
प्रतिशत ही
है।
दक्षिण
पश्िचम से
उत्तर पूर्व
की ओर फैली
हुई अरावली
पर्वत
श्रँृखला
राज्य को दो
भौगोलिक
क्षेत्रों
में विभाजित
करती है।
राजस्थान
के पश्िचम
में थार
मरूस्थल है।
यह मरूस्थल
राज्य के
क्षेत्रफल
का 60 प्रतिशत
भाग हैं।
राज्य में
वार्षिक
वर्षा शुष्क
गर्म पश्िचम
में 10 मि.मी. से
दक्षिण
पूर्व में 900 मि.मी.
तक होती हैं।
प्रत्येक 5
साल में
सामन्यत 3
वर्ष अकाल से
प्रभावित
होते है।
तात्पर्य
यह है कि
असामान्य
वर्षा से
अर्थात
अनिश्चित और
असामयिक
वर्षा के
असंतुलित
वितरण के
कारण फसल
उत्पादन
असुरक्षित
रहते हैं।
कभी
कभी कम समय
में अधिक
वर्षा होने
से प्राप्त
वर्षा का जल
बहकर व्यर्थ
चला जाता है।
इस प्रकार
वर्षा का
अंतराल भी
काफी होता है
जिससे फसल
उत्पादन में
विपरीत
प्रभाव पड़ता
है।
फलस्वरुप
राज्य की
कृषक की कृषि
उत्पादन में
कमी तथा कृषि
योग्य भूमि
बंजर भूमि
में तब्दील
हो जाने से
चारा,
लकड़ी,
दूध
इत्यादि की
कमी के कारण
सामाजिक एवं
आर्थिक
स्थितियां
कमजोर होती
जा रही है।
ऐसी
राज्य की
भौगोलिक
स्थिति के
कारण समूचे
प्रदेश के
विकास के लिए
राजस्थान
राज्य को दो
राजनैतिक
प्रदेशों
में विभक्त
किया जावे।
पहला
मरुप्रदेश
और दूसरा
मेरवाड़ा
प्रदेश
(1)
मरूप्रदेश:-
संस्कृत में
मरू
रेगिस्तानी
भाग को कहते
हैं। उत्तर
पूर्व से
दक्षिण
पष्चिम भाग ‘मरू
प्रदेष’
बना
दिया जावे।
इस प्रदेश
में 12 जिले
क्रमशः
उत्तर पूरब
से दक्षिण
पश्चिम तक
झुंझुनू,
चूरू,
सीकर,
श्री
गंगानगर,
हनुमानगढ़,
बीकानेर,
नागौर,
जोधपुर,
जैसलमेर,
बाड़मेर,
पाली
और जालौर रखे
जावे। यह
प्रदेश
रेगिस्तानी
भाग है। अतः
इस प्रदेश का
नामकरण
मरूप्रदेश
रखा जावे और
इस मरू
प्रदेश की
राजधानी
जोधपुर बनाई
जानी चाहिए।
क्योंकि
जोधपुर इस
भाग का
केंद्र भाग
होता है।
(2)
मेरवाड़ा
प्रदेश:-
अरावली
श्रृंखला का
सम्पूर्ण
पूर्वी भाग ‘‘मेरवाड़ा
प्रदेश’’
बना
दिया जावे।
संस्कृत
भाषा में मेर
पर्वत को
कहते हैं और
वाडा निवास
स्थान को
कहते हैं।
अथार्त
पर्वतीय
ग्रामीण
प्रकोष्ठ।
अतः इसी
प्रकार
उत्तर पूर्व
से दक्षिण
पश्चिम की
अरावली
पर्वत
श्रंखला
वाला प्रदेश
का पूर्वी
संपूर्ण
भौगोलिक भाग ‘‘मेरवाड़ा
प्रदेश’’
बना
दिया जावे।
क्योंकि यह
संपूर्ण
भूभाग
पथरीला,
पहाड़ी
और पठारी है।
इस भू भाग में 21
(इक्कीस) जिले
आते हैं।
क्रमशः
उत्तर पूरब
से लेकर
दक्षिण
पश्चिम तक
अरावली
पर्वत
श्रंखला
में। अलवर,
भरतपुर,
जयपुर,
दोसा,
सवाई
माधोपुर,
करौली,
धौलपुर,
बांरा,
टोंक,
बूंदी,
कोटा,
झालावाड़,
अजमेर,
भीलवाड़ा,
चित्तौड़गढ़,
प्रतापगढ़,
बांसवाड़ा,
राजसमंद,
उदयपुर,
डूंगरपुर
और सिरोही।
इस प्रदेश
की राजधानी
सभी भागों की
समान दूरी के
लिहाज से
अजमेर बनाई
जावे।
ऐसा
करने से ही
राजस्थान का
समुचित
विकास हो
सकेगा।
भारत की
स्वतंत्रता
के 70 वर्षों
में भी
राजस्थान का
समुचित
विकास नहीं
हो पाया है।
इसका मुख्य
कारण ही
क्षेत्रफल
में फैला
इतना विशाल
भूभाग में
भौगोलिक
विषमता
संपूर्ण
रेतीला और
पथरीला दो
बराबर भागों
में बंटा हुआ
प्रदेश है।
अतः
रेतीले
प्रदेश का
अलग से विकास
और पथरीले
प्रदेश का
अलग से विकास
किया जाना
चाहिए तब ही
मरू और
मेरवाड़ा
प्रदेश के
कारण ही
एकीकृत
राजस्थान का
संपूर्ण
विकास हो
सकेगा
अन्यथा
नहीं।
ऐसा
करने से देश
के
क्षेत्रफल
का 5.4 प्रतिषत
भूभाग
मरूप्रदेश
में 201.8 लाख
हेक्टर भूमि
आएगी और बाकी 5
प्रतिशत
भूभाग की 141.2
लाख हेक्टर
भूमि
मेरवाड़ा
प्रदेश में
आएगी। ऐसा
करने से इन
दोनों
प्रस्तावित
बनाए जाने
वाले नए
मरूप्रदेश
और मेरवाड़ा
प्रदेश का
समुचित
विकास किया
जा सकेगा।
अभी
संसद का
शीतकालीन
अधिवेशन चल
रहा है। हो
सके तो इसी
सत्र में
अथवा
राजस्थान
सरकार को इस
आशय हेतु
राज्य का
विशेष
अधिवेशन
जल्द से जल्द
बुलाकर
प्रस्ताव को
पारित कर
अमलीजामा
पहनाने
वास्ते
केंद्र
सरकार को
सिफारिश
करनी चाहिए।
केंद्र
सरकार को
शीघ्रता
शीघ्र इसको
वास्तविक और
व्यवहारिक
स्वरुप
प्रदान करना
चाहिए तब ही
इस मरू और मेर
प्रदेश का
समुचित
विकास हो
सकेगा
अंन्यथा
कदापि नहीं।
आलेख:
ब्यावर शहर
के
इतिहासविद्
वासुदेव
मंगल
ब्यावर
(राज.) अजमेर
http://www.beawarhistory.com
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