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‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......

✍वासुदेव मंगल की कलम से.......
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)

क्यों टूट रहे हैं-पहाड़ हम ही है गुनहगार
सामयिक लेख: वासुदेव मंगाल, ब्यावर जिला (राज.)
चूँकि प्रकृति द्वारा नैसर्गिक संरचना प्राकृतिक होती है। जैसे पहाड़, पठार, मैदान रेगिस्तान, समुद्र, झरने, झिल ,नदी-नाले, वन, जंगल इत्यादि।
यह संरचना कुदरती होती है धरती पर, जमीन पर इनकी आकृति स्वतः ही बनती बदलती रहती है। इसी प्रकार आकाश में चाँद, तारे, सुरज, नक्षत्र, आकाश गंगाएँ यह भी कुदरती होती है। पेड़-पौधे ये भी कुदरत की ही देन है।
आज जो पहाड़ दरक रहे है उसका सीधा-सीधा कारण मनुष्य द्वारा प्रकृति के साथ छेड़छाड़। पहाड़ो के बीच खुली जगह में कृत्रिम झील बनाना भी खतरे से खाली नहीं है।
आज प्रत्येक देश विकास के नाम पर सीधे सीधे प्रकृति द्वारा उपहार के रूप में हमें दी गई अमूल्य भूगर्भिय खनिज पदार्थों का दोहन हम अमानवीय तरीके से कर रहे हैं। उसी का नतीजा भयानक राजरोग जैसी अनेकानेक बिमारियों ने अपना स्थान ले लिया है। अन्धाधुन्ध पेड़ों की कटाई से आक्सीजन जैसी हवा को हम कार्बन मे बदल रहे है। असीमित कल कारखानों से निकलने वाली कार्बन, इसी प्रकार आटो गाड़ियों से पेट्रोल-डीजल का धुआँ इत्यादि ने जीवों का जीना धरती पर दूभर कर दिया है।
अतः इसका दोष हमारा ही है। हमने प्रकृति में ऐसी स्थिति पैदा कर दी है। कि ये सब घटक जान लेवा हो गए।
इसी प्रकार पहाड़ों का हाल है जो रोज टूट-टूटकर गिर रहे है। अतः आधारभूत ढाँचे निर्मित करने के लिये हम पहाड़ो की ढ़लानों की कटाई करते हैं। उन पर हम पुल बनाते है। बाँध कृत्रिम दीवार बनाकर बाँधते है। सड़क बनाते है। इसी प्रकार पहाड़ों में सुरंग बनाते है।
इसका सीधा सा कारण हम विकास के नाम पर प्रकृति का विनाश कर रहेें है। जगह जगह पहाड़ियों को खोदकर - तोडकर खनिज पदार्थों के लिये दँवााईयें बना रहे है उसी का परिणाम है बादल फटने से आफत आती है। एक जगह ही बरसाती बादलों का पानी पड़ने से बाढ़ आती है। पहाड़ दरकतें है। जिससे मकान टूटकर गिरते है। असंख्य जीव काल के गाल मे समा जाते है। जगह जगह सड़के टूटती है पुल टूटते है। रेल की पटरियां टूटती है। बारिश के बाद कई ईलाकों में जल भराव होता है, कटाव के कारण घर टूटकर बह जाते है, गाड़िया मवेशी मनुष्य बह जाते हैं।
झरने ओवरफ्लो हो जाते है जिससे पानी का सैलाब आता है। तूफान से तबाही मचती है। तो यह सब हमारी गलत तरीके से आधारभूत ढांचों का निर्माण करने से ऐसी तबाही का मन्जर झेलना पड़ता है। अतः इस संकट के सीधे सीधे हम मानव लोग ही जिम्मेवार है कि बिना सोचे समझे अन्धाधुन्ध पेड़ों की और पहाड़ों की कटाई का परिणाम ही पहाड़ों का टूटकर गिरना।
अगर प्रकृति का पालन करोगे तो कोई आफत नहीं आयेगी नहीं तो ढेरों संकटों का सामना करना पडेगा। जैसे रोज़ भूकम्प आ रहे हैं। पृथ्वी हिल रही है पृथ्वी का तापमान बढ़ने से जंगलों मे आग लग रही है। जंगल के जंगल जल रहे है। पहाड़ों की बर्फ पिघल कर रही है जिससे बर्फीले पहाड़ टूट टूट कर गिर रहे है। नदियों में बाढ़ आ रही है। बर्फीले तूफान आ रहे है। समुद्र का पानी बढ़ रहा है जिससे किनारों पर बसे हुए शहर पानी में डूबते जा रहे हैै। अतः ग्लोबल वार्मिंग का नजारा सारी दुनियाँ को लील रहा है। आसमान में सेटलाईट का कचरा आसमान को प्रदूषित कर रहा है।
अतः विनाश की घंटी बज रही है। इससे मनुष्य को, सरकार को, देश को और विश्व को सावधान करना है मानव अस्तित्व खतरे में है और विकास की जगह विनाश हो रहा हैै।
प्रकृति का दोहन व्यवस्थित तरीके से नहीं करके, गलत तरीके से अव्यवस्थित तरीके से किये जाने से ऐसा हो रहा है। अतः सिस्टम को व्यवस्थित करने से ही प्राकृतिक आपदाएँ रुक सकती है अपित् कदापि नहीं।
इसी प्रकार आर्कटिक सागर और अंटार्कटिका सागर की बर्फ की दीवारें पिघलकर टूट टूट कर गिर रही है जिससे समुद्र के पानी का आयतन दिनो दिन बढ़ता जा रहा है। समुद्र में पानी का फैलाव होने से ही समुद्र के किनारों पर बसे हुए शहर के शहर और गाँव पानी मे डूबते जा रहे हैं।
इस प्राकृतिक आपदा के गुनहगार हम मानव ही है। हम कुदरत के नियमों की लगातार अवहेलना कर रहे है जिससे ही यह प्राकृतिक आपदा पर आपदाएँ बराबर निरन्तर आ रही है। पेड़ो की जड़े ही मिट्टी में नमी बनाये रखती है।
जब तक हरियाली नहीं होगी तो मिट्टी में लगातार कटाव होता रहेगा। जब मिट्टी में कटाव होता रहेगा तो जमीन पोली होती जायेगी। जब जमीन खोखली होगी तो पहाड़ पत्थरों का बोझ सहन नहीं कर पायगें और टूट टूटकर गिरना आरम्भ कर देंगें जिससे विभत्स विनाश का मन्जर पैदा होकर बढ़ता जायेगा। इस प्रकार लगातार यह समा होने से आस पास का एरिया विरान नजर आयेगा।
अतः पहाड़ो की मिट्टी का कटाव रोकने के लिये पहाड़ों की ढलानों पर लगाएँ गए वृक्षों व पेड़ों को काटना नहीं चाहिये। पेड़ों की जड़े ही तो पहाड़ों पर पानी के तेज बहाव को रोकती है। इस प्रकार पहाड़ी बस्ती की रक्षा करती है।
दूसरा कारण पहाड़ में सुरंग भी बहुत समुचित छानबीन करके बड़ी सावधानी से बनाई जानी चाहिये। सुरंग बनाने पर पहाड़ न दरके इस प्रकार की समुचित व्यवस्था की जानी चाहिये।
इसी प्रकार पहाड़ों की घाटियों मे मोड़ पर सड़के, रेल की पटरियाँ भी पूरी छानबीन करके बड़ी सावधानी पूर्वक बनाई जानी चाहिये ताकि बीच में सड़क टूटने का जगह जगह डर नहीं रहे।
अभी पहाड़ो पर क्या हो रहा है? कम हवा के दबाव के चक्र दो विपरीत दिशाओं में बन रहे है। यह बरसाती बादल जब आपस में परस्पर टकराते हैं तो दोनों ओर के बरसाती बादलों का सारा का सारा पानी टकराने के स्थान पर एक ही जगह पर गिरता है जिससे झील का नजारा बनता है और स्थान विशेष भयंकर तबाही होती है। पहाड़ों पर बसे हुए गांव के गाँव बस्ती उजड़ जाती है। नदियों में भयानक बाढ़ आने से गाँव के गाँव पानी के रेले में डूब जाते हैं। भयानक प्राकृतिक आपदा बार बार आती है। अगर वन जंगल होंगे तो वनों की नमी के कारण भाप के बादल धीरे धीरे बरसात करते हुए आगे बढ़ेगें। ऐसी सूरत में बादल टकराने से बरसात करते है तो कुदरती जोखिम से बहुत कुछ बचा जा सकता है। जब पहाड़ों पर जंगल के जंगल काट दिये जाते है तो तब बादलों के टकराने की स्थिति बनती हैं। ऐसी होने से बादलों की चाल तेज होती है और परस्पर टकराने की नोबत आती है।
पहाड़ों को जगह जगह ऊँचाई पर तोड़ने से भी ऐसी स्थिति बनती है। बादलों को आगे बढ़ने का सीधा सपाट रास्ता मिल जाता है। दो विपरीत दिशा में बादलों की चाल से ऐसा होता है।
मानव को जंगल नहीं काटना चाहिये। प्रकृति के नियमों का पालन ही ऐसी आपदाओं को रोकने का सुलभ साधन मात्र है जिनका पालन अक्षरशः किया जाना चाहिये। इसके सिवाय और कोई उपाय नहीं है।
आज दुनियाँ में ग्लोबल वार्मिंग की बात तो सब देश करते हैं परन्तु कितने देश गीन हाऊसेस का पालन करते हैं यह सोचने का सबसे बड़ा प्रश्न है। अतः ज्यादा से ज्यादा ग्रीन हाउसेज ग्रीन बेल्ट ग्रीन एटमोसफीयर करने की जरूरत है तब ही इस विपदा से बचा जा सकेगा अन्यथा कोरी बातों से यह संकट बाकायदा बरकरार रहेगा।
ऐसी आपदाओं से विकसित देशों को ज्यादा नुकसान होता है। ऐसे देश आधारभूत कृत्रिम ढ़ाँचें बिना सोचे समझे ज्यादा बनाते है जो ऐसी आपदाओं की गिरफ्तों में आते है जिससे नदियाँ अचानक अपना रास्ता बदलती है ओर क्षति पैदा करती हैै। मानसून की हवाओं की चाल का सही रूख ही ऐसी घटनाओं को रोकने में कारगर साबित हो सकता है। अतः प्राकृतिक स्वरूप के आधार पर स्थान विशेष पर आधारभूत निर्माण किये जाने चाहिये। यह ही एक सीधा, सरल और कारगर उपाय है।
 
 
इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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