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‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......

✍वासुदेव मंगल की कलम से.......
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)

8 नवम्बर सन् 2016 को पाँच सो हजार के नोटों की नोट बन्दी व दूसरी दो हजार के नोट की नोटबन्दी पर विशेष

रचना - वासुदेव मंगल (भूतपूर्व बैंकर)
महंगाई पर नियन्त्रण करने के लिये वर्तमान की केन्द्र सरकार ने 8 नवम्बर सन् 2016 को एक फरमान जारी किया कि एक हजार और पाँच सो मूल्य के करेन्सी नोट प्रचलन से बन्द किये जाते हैं यह होना चाहिये।
ऐसा करने का सीधा सा प्रभाव यह होना चाहिये था कि बाजार में यह करेन्सी बन्द होने पर मुद्रा का संकुचन होगा और महंगाई पर काबू पाया जा सकेगा।
परन्तु हुआ इसके विपरीत। नोट बन्दी की समय सीमा ज्यादा से ज्यादा एक दिन होती हैं। यहाँ पर बन्द किये गए नोटों का चलन एक महीने तक विभिन्न प्लेटफार्मो (मन्चों) से जारी रक्खा। इसका सीधा सीधा दुष्परिणाम यह हुआ कि देश के तहखनों मंे जमा नोटों की थप्पियां ब्लैक मनी (कालाधन) इन मन्चों के मार्फत बाहर आकर सफेद हो गया। इसका सीधा असर यह हुआ कि देश में काले धन की मुद्रा का प्रसार जोरों से हुआ और मुद्रा संकुचन की जगह मुद्रा का प्रसार हो गया जिससे महंगाई कम होने के बजाय और ज्यादा बढ़ गई।
मध्यम वर्ग के लोगों का गुजर बसर करना व जीना मुश्किल हो गया। नोट बन्दी के कारण मध्यम वर्ग के लोग मारे-मारे इधर से उधर भटकने लगे। लोग बैंकों के बाहर दिन रात लम्बी-लम्बी कतार में खेड़ होकर परेशान हुए। फिर भी नोटो का खजाना खाली होने पर बार-बार बिना नोट बदले खाली हाथ घर लौटे।
ऐसा तो देश में पहीली बार इस प्रकार का सरकार का असफल सिस्टम (व्यवस्था) देश में देखने को मिली।
नोट बन्दी के कारण नए नोट छापने पर 8 हजार करोड़ रूपये का खर्च आया, 15 लाख लोगों की नौकरी गई, 100 लोग जान से हाथ धो बैठे और जी डी पी में 1.5 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई जो नोटबन्दी की असफलता दर्शाती है।
बैंकर का अनुभव है कि सन् 1978 में एक पांच और दस हजार के नोटों का चलन बन्द किया था तो सिर्फ एक दिन ऐसे नोटो को रात्री को बारह बजे तक बैंकों में जमा कराने का समय दिया। परन्तु यहां पर तो बन्द किये जाने वाले नोटो का प्रचलन एक महीने तक का रक्खा। जिससे देश का काला धन बाहर आकर सफेद हो गया। ओर कई करोंड़ लोग रातों रात माला माल हो गए।
भविष्य में सरकार को ऐसे मौद्रिक फैसले सोच समझकर लेने चाहिये। इसके तात्कालिक धनात्मक ऋणात्मक प्रभाव को ध्यान में रखकर इस प्रकार की घोषणा की जानी चाहिये जिससे देश की गरीब और मध्यम वर्ग की जनता आर्थिक परेशानी में न आये।
लेखक स्वयं बैंकर रह चुका हैं अतः अनुभव के आधार लेखक के स्वयं के विचार है।
अभी हाल ही में दो हजार के नोट की बन्दी से खुले बाजार में फुटकर नोटों की तंगी होने से भयंकर छोटे करेन्सी नोटों की कमी उत्पन्न हो गई है। सरकार चाहती है देश का ज्यादातर वस्तुओं का फुटकर व्यापार क्रेडिट सिस्टम पर हो। देश की ज्यादातर आबादी अशिक्षित है गरीब हैं रोज मजदूरी कर जीवन करने वाली लेबर कोम क्रेडिट क्या जाने? अतः गरीब देश में विकसित देश की प्रथा जनता पर थोपना अन्याय है। ऐसे में देश का विकास कतई सम्भव नहीं हैं जब तक सरकार देश के पढे़ लिखे नोजवानों नवयुवतियों को रोजगार मुहैय्या नहीं कराती है तब तक क्रेडिट बेसिस सिस्टम से कारोबार रोजमर्रा की छोटी-छोटी फुटकर वस्तुओं का लेनदेन करना सम्भव ही नहीं मुश्किल होगा।
अतः देश के प्रत्येक नागरिक पर देश के कर्जे का बोझ बढ़ाने के बजाय देश की माली हालत पर ध्यान दे सरकार की गलत नीति पर चलकर जन कल्याण नहीं कर सकती। सरकार की गलत नीति तो देश को रसातल में ले जा रही हैं जन उत्थान की तो सरकार की लेश मात्र बिल्कुल ही चिन्ता फिकर नहीं है तो जनकल्याण की सोचना तो सरकार की थोथी नीति है।
दूसरा सरकार ने सन् 2017 की एक जुलाई को एक और जनता को परेशान करने वाला दूसरा कानून जी एस टी का और थोप दिया। इस व्यवस्था में भी सरकार एकदम असफल रही। भारत देश जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में वस्तुकर और सेवाकर एक साथ गरीब अवाम पर थोपना भी विवेकपूर्ण फैसला नहीं हैं भारत जैसा संघीय प्रदेशों वाला देश अलग अलग राज्यों में अलग अलग विचार धारा वाली पार्टियों की सरकार द्वारा शासित है। अतः इन तमाम राज्यों के लिये भी जी एस टी कलक्शन केन्द्र सरकार द्वारा करना और फिर राज्यों को डिस्ट्रीब्यूट करना भी न्याय संगत नहीं हैं क्योंकि सन् 2017 से अब 2023 का समय साल का इस व्यवस्था में केन्द्र का भेदभावपूर्ण अनुभव रहा है। असमान विचार धारा वाली राज्य की सरकारों को समय पर उनके हिस्से का पैसा केन्द्र सरकार द्वारा नहीं भेजा जाता हैं जिससे उन राज्यों के सामने वित्त संकट हमेशा लगातार बना रहा हैं अलग अलग वस्तुओं पर अलग अलग कई अनेक दर से कर लगाना भी असंगत है। अतः सरकार को राज्य सरकारों के साथ भेदभावपूर्ण रवैय्या अख्तियार नहीं करना चाहिये। नहीं तो कर की पहीले वाली व्यवस्था ही सही थी। नहीं तो इस प्रणाली पर समीक्षा कर सरकार को इस सिस्टम की खामी को तुरन्त प्रभाव से चुस्त दुरूस्त किया जाना चाहिये तब ही सरकार इस क्षेत्र के कार्य में सफल हो सकती है अन्यथा कदापि नहीं।
अतः सरकार को इसकी खामी को दुरूस्त करके कार्य करना अति आवश्यक हैं भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने जी एस टी लाकर रोटी और आटे पर लगान टेक्स। एक साथ चार चार प्रकार की दरों वाले टेक्स। इस प्रकार देश के अवाम को राहत देने के बजाय जी एस टी लूट से जनता को खुला शोषण कर रही है। भारतीय जनता पार्टी सरकार।
जी एस टी थोपकर देश के आवाम के साथ दिन भर में बार बार उपभोक्ता वस्तुओं पर से टेक्स वसूल कर देश की जनता को खासा परेशान कर के रख दिया छ साल में और वोट भी इन्हीं टेक्स देने वाली जनता जनार्दन से लेकर पुनः सत्ता में आने की सोच रही हैं भारतीय जनता पार्टी की केन्द्रीय सरकार बजाय सहूलियत देने के आर्थिक शोषण कर रही है। वैसे ही इस सरकार के कूशासन से जनता महंगाई और बेरोजगारी से गले तक पेरशान है ऊपर से यह रजिया-जजिया जैसा वस्तु और सेवा कर जी एस टी के नाम से जबरिया ओर थोप दिया जनता जनार्दन पर ।
अतः इस सरकार ने अपने कार्यकाल में रोजगार महंगाई पर तो नो साल में बिल्कूल ध्यान न देकर जनता के शोषण जैसे नोटबन्दी, जी एस टी जैसे कार्य किये है। ऐसी सरकार को लाने से क्या फायदा जो अवाम की भलाई के बारे में बिल्कुल भी नहीं सोचे और जो व्यापार करना ही अपना मकसद बना लेवे ऐसी सरकार किस काम की? देश की जनता को अपनी भलाई स्वयं सोचनी चाहिये अब ऐसा ही समय आ गया है कि हमारे कर्णधार, जनसेवक, जनट्रस्टी, नगमानिगार अपनी और अपनों की भलाई की फिकर करते है चुनकर आने के बाद जनता की बिनापर और भूल जाते है जन सेवा का कार्य, मात्र अपनी और अपनों की भलाई की सोचने लगते है।
वस्तुकर भी अट्ठाईस, प्रतिशत की दर से...... अरे शासकों रहम करो........ क्या तुम को लूटने के लिये देश का अवाम ही मिला क्या? और कोई दूसरा नहीे मिला। क्या इसी काम का नाम है जन सेवा....... देश सेवा.....। धन्य हो मेरे शाकसगण धन्य हो और धन्य हो तुम्हारी जन सेवा का कार्य जिनकी तुम जन सेवक बने। बिजली के बिल में करन्ट आता हैं बिल में अब कोयला कर फ्युल चार्ज के नाम से अतिरिक्त कर और लेना शुरू कर दिया। बिजली की खपत तो चौथाई और सब टेक्स मिलाकर चार गुणा वसूल किया जा रहा है। अब और कोई टेक्स बाकी और बच गया है तो वह भी लगा दो ताकि तुम्हारी अधूरी कसर पूरी हो जाय। धन्य हो मेरे राजस्थान की सरकार।
मतलब रोटी पर टेक्स, आटे पर टेक्स, पानी पर टेक्स, हवा पर टेक्स, कपड़े पर टेक्स और रोटी पकाने की गैस की टंकी एक हजार एक सौ तीस रूपये। धन्य हो सरकार पेट्रोल-ड़ीजल सौ रूपये से अधिक एक लीटर। सब्जी में टमाटर एक सो तीस रूपये हरा धनिया तीन सो रूपये, निम्बू अदरक दो सौ रूपये का एक किलो। और कोई कसर देश के गरीब को लूटने की बाकी रह गई है तो वह भी पूरी कर लो।
धन्य हो मेरी सरकार तुम धन्य हो और धन्य हो तुम्हारे कारनामे। जन सेवक जो हो।
 
इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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