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‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......

✍वासुदेव मंगल की कलम से.......
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)

 
10 जुलाई 2023 को ब्यावर की अधिसूचना को 188 वर्ष हुए

लेख - वासुदेव मंगल

आज ही के दिन ब्यावर के संस्थापक कर्नल डिक्सन ने ब्यावर को सिविल सिटी में बसाने की अधिसूचना राजपूताना गजेटियर में जारी की थी। इस बात को 188 वर्ष पूरे हुए। इस काल में ब्यावर सिटी तीन दौर देखे-
पहला दौर: अतीत का गौरवकाल: ऊन और कपास रूई की राष्ट्रीय मण्डी।
इसी काल में सन् 1857 से लेकर भारत की आजादी तक 1947 तक भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में ब्यावर का योगदान।
भारत में अग्रेजी हुकूमत ने सन् 1818 में सम्पूर्ण भारत में अंग्रेजी राज घोषित कर दिया। उसी के तहत् भारत की समस्त देशी रियासतों के राजा महाराजाओं और जागीरदारों ने अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार कर ली। परन्तु साथ में अंग्रेजी राज इनकी आन्तरिक शासन प्रणाली को स्वतन्त्रत रखते हुए मात्र टेक्स वसूली तक अपना शासन बरकरार रक्खा।
ब्यावर स्थापना 1823 से 1835 तक सेण्ट्रल केन्टोनमेण्ट बोर्ड कार्य रूप में रहा। तत्पश्चात् 1 फरवरी 1836 से सिविल सिटी के रूप में वूल एण्ड कॉटन ट्रेड सेन्टर के नाम से विख्यात हुआ। 1840 में इसी ईलाके को मेरवाड़ा, मारवाड़ ओर मेवाड़ का कुछ ईलाका मिलाकर, एसोशियेट कर, मेरवाड़ा बफर स्टेट के नाम से पूरे विश्व में जाना जाने लगा। चूंिकं ईस्ट इण्डिया कम्पनी शासित यह अंग्रेजी रियासत बनाई गई। अतः यहां पर उनके प्रतिनिधि कर्नल डिक्सन द्वारा शासित राज था जो परकोटे के अन्दर था। इसके बाहर के मेवाड़, मारवाड,़ ढूँढार देशी जयपुर, जोधुपर, उदयपुर रियासतें के तिजारती मार्ग टेªफिक रूट रोड़ था। ब्यावर मेरवाड़ा स्टेट का हेड क्वार्टर बनाया गया। अतः 1836 से 1856 बीस वर्ष में ब्यावर बूल काटन का नेशनल टेªड सेन्टर के नाम से भारत में ही नहीं अपित् ब्रिटेन में भी विख्यात हो गया। ब्यावर के साथ ही अजमेर भी अंग्रेजी राज था। ब्यावर में आबू परगना था और अजमेर की नसीराबाद फौजी छावनी और अजमेर शासन की कमान भी डिक्सन के पास थी।
1857 में अेंग्रेजी शासन के खिलाफ स्वतन्त्रता संग्राम का गदर पूरे भारत में आरम्भ हो गया। ब्यावर में भी अंग्रेजी हुकूमत की खिलाफत शुरू हो गई। इस गदर में ब्यावर क्षेत्र का पृष्ट भाग सामरिक, भोगौलिक और राजनैतिक दृष्टि से स्वतन्त्रता संग्राम के अनुकूल था। इस ईलाके के बाहरी क्षेत्र जंगल, पहाडी गौरिल्ला युद्ध करने लायक थे। साथ ही देशी रियासतें में हथियार रखने पर कोई पाबन्दी नहीं थी। अतः स्वतन्त्रता की लडाई के लिये ये रियासतें महफूज थी। जो स्वतन्त्रता सैनानियों के लिये पनाहगाह साबित हुई।
इसीलिये ब्यावर भारत के स्वतन्त्रता संग्राम का पूरे भारत वर्ष में स्वतन्त्रता की लड़ाई लड़ने के लिये जाना जाने लगा। इस कार्य के लिये पूरे भारत के स्वतन्त्रता सेनानी देश भक्त ब्यावर का रूख करने लगे। इस कार्य में ब्यावर स्वातन्त्रय कार्य करने का श्यामगढ़ का किला गढ़ की पहचान बना चुका। यहाँ पर प्रशिक्षण कार्य किया जाता था जो चारो तरफ पहाड़ी और जंगल से घिरा क्षेत्र है। इसके अतिरिक्त परकोटे के बाहर चिरंजीलाल भगत की बगीची भी महफूज जगह थी इसके अलावा अन्य बहुत सारी जगह महफूज थी। अतः इन रियासतों में हथियार बनाना और चलाना फ्रीडम फाईटर को ट्रेण्ड किया जाता था। उस जमाने के बहुत सारे ग्रेट पेट्रियोट इस ईलाके के और बाहर के इस काम में मशगूल थे जैसेः- स्वामी दयानन्द क्रान्तिकारी सन्यासी का आदेश, श्यामजी कृष्ण वर्मा ग्रेट पेट्रोयट, खरवा नरेश क्रान्तिकारी गोपालसिंह जी, सेठ दामोदरदास राठी, रास बिहारी बोस, स्वामी कुमारानन्द, बाबा नरसिंगदास, विजयसिंह पथिक आदि आदि।
देशी कपड़ा मिलों के कारण मिल वर्कर्स के कारण लेबर टेªड मूवमेण्ट भी ब्यावर से ही आरम्भ हुआ। अतः ब्यावर फ्रीडम फाईट का क्रियेटिव सेन्टर रहा। यहाँ से ही पंजाब, बंगाल, उत्तर भारत, मध्य भारत, बम्बई प्रान्त के क्रान्तिवीरों को सरंक्षण, प्रशिक्षण, अधीक्षण, दिया जाकर समस्त भारत में भेजा जाता था।
इस क्रान्तिकारी जानकारी के अभाव और क्रान्तिकारी शिक्षा के अभाव में अभी तक यह क्षेत्र क्रान्ति की आहूति की जानकारी से अछूता रहा हैं इसलिये स्वतन्त्रा के बाद जब स्वतन्त्रता का अमृत महोत्सव जब पूरे देश में शोर जोर से मनाया जा रहा है तो ब्यावर को हमारे नेताओं की वास्तविक जानकारी नहीं होने के कारण उपेक्षित रक्खा गया हैं यह ब्यावर का दुर्भाग्य ही कहलायेगा क्योंकि जिस शहर ने स्वतन्त्रता की अलख जगाई उसे तो महरूम रक्खा जा रहा है तो फिर यह कैसा अमृत यह तो ब्यावर के नागरिकों के लिये विष समान है।
दूसरा दौर: यहीं कारण रहा कि हमारे आजादी के बाद के हुक्मरानों को वस्तु स्थिति से साक्षात्कार नहीं होना था। इसीलिये इस क्षेत्र का आजादी के बाद भरपूर शोषण किया जा रहा है। यहां तक की यहां की धरोहर तक को समाप्त किया गया। दूसरे शहर को तो परकोटे को धरोहर माना जाकर सेहज कर रक्खा जा रहा हैं। यहां के नगर की धरोहर परकोटे को सबसे पहीले समाप्त किया गया। स्टेशन को, बगीचे को, बिचड़ली तालाब को, नेश्नाबूद किया गया और, जो नामोनिशान बच गया है उसे जड़मूल से साफ किया जा रहा हैं यहां तक कि ब्यावर नाम से यहां के शासक को एलर्जी हो गई है। जो शिल्पकला पर आधारित माडल शहर जयपुर मिनियेचर की थीम पर बसाया था उसे समूल नष्ट कर दिया गया। कितना बड़ा विकास किया है हमारे नगमा निगारों ने धन्य हो जनता के सेवक। किसी ने पांच टर्न (पच्चीस साल) पूरे किये किसी ने हेट्रिक लगा ली स्थानीय लोक सभा सांसद रासासिंहजी रावत व शंकरसिंहजी रावत जैसे लोक सेवक, जनता के ट्रस्टी कितना विकास किया है आपके सामने है।
ब्यावर स्टेट से डिस्ट्रीक्ट, फिर जिले से उपखण्ड, फिर उपखण्ड का भी खण्ड 2002 में, फिर खण्ड का भी खण्ड 2013 में। फिर परकोटा, ताल बगीचा, जल, जंगल, जमीन का नम्बर, फिर स्टेशन प्ले ग्राउण्ड का नम्बर धन्य है मेरा ब्यावर महान और उसके खेवनहार।
तीसरा दौरः वर्तमान में मुख्यमन्त्री को चौक्का लगाना हैं या तो पिच्चेत्तर साल मेें कुल आठ जिले घोषित किये गए और अब सीधे ही सतरह जिले एक स्ट्रोक में हाफ सेन्चुरी बना दी राजस्थान में जिलों की अशोकजी गहलोत ने। इसका मेसेज साफ है कि अब मुख्यमन्त्री राजस्थान में भी अन्य बडे़ राज्यों की तरह विधान परिषद् बनाना चाहते हैं विधान सभा तो है जिसके पन्द्रह कार्यकाल सत्र पूरे हो चुके 1952 से लेकर 2023 तक बहत्तर साल में। मुख्य मन्त्री जी का लेखक आभार व्यक्त करता है कि देर से ही सही लेकिन आपने ब्यावर की सुध तो ली अब ब्यावर अपनी खोई हुई अतीत की तरक्की पुनः हासिल कर पायेगा और पुनः भारत में प्रथम पायदान पर आने की भरपूर कोशिश करेगा।
स्वतन्त्र भारत मंे किसी ने भी अभी तक ब्यावर क्षेत्र के निवासियों की मेघा और ऊर्जा शक्ति को नहीं समझा है। ब्यावर के निवासियों में श्रम शक्ति अपार है और इसी प्रकार ऊर्जा शक्ति भी प्रचुर है। आवश्यकता थी मोटीवेशन की जिसे अब पूरा किया जा रहा है।
इसे तो क्रान्तिकारियों की तीर्थ स्थली के रूप में स्वतन्त्रता के समय से ही विकसित किया जाना चाहिये था।
अब ब्यावर की जिले के रूप में पहिचान बनी है। अब यह हर क्षेत्र मंे विकास के आयाम स्थापित करेगा। राजस्थान के मध्य भाग में स्थित होने के कारण ऊर्जा का केन्द्र है और ऊँचाई पर स्थित होने कारण मेघा का केन्द्र है। जैसे शरीर में सिर में मस्तिष्क होता है और नाभि में ऊर्जा होती है उसी प्रकार ब्यावर की जनता जनार्दन है।
 
इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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