लेखक : वासुदेव मंगल
भारत देश में क्षेत्रफल में राजस्थान सबसे बड़ा प्रदेश होने कारण व
राजा-रजवाडां का प्रदेश होने से एवं ठोस, द्रव्य और गैसीय, खनिज पदार्थों
वाला अतुलीय सम्पदा भण्डारों वाला प्रदेश व धरोहरों व विरासत वाला
राज्य होने के कारण राज्य सरकार को इस प्रदेश का चहुँमुखी विकास
जनसंख्या को आधार मानकर नहीं करना चाहिये अपित् इस राज्य का सर्वांगीन
विकास राज्य को सो जिला इकाई में बाँटकर करना होगा तब ही राज्य का
सम्पूर्ण विकास हो सकेगा।
भोगौलिक दृष्टि से विश्व की सबसे पुरानी अरावली पर्वत की श्रृँखला इस
प्रदेश को उत्तर पूर्व से पश्चिम दक्षिण दो बराबर भाग में बाँट रही हैं
मेर प्रदेश यानि पहाड़ी क्षेत्र जो राज्य का पूर्वी हिस्सा है और दूसरा
मरू प्रदेश जो राज्य का पश्चिमी भाग है। जिसे रेगिस्तानी भाग भी कहते
हैं।
इस राज्य में पूर्वी पहाड़ी पर्वतीय भाग में ठोस खनिज सम्पदा अतुलनीय
मात्रा में दबी भरी पड़ी है और इसी प्रकार राज्य के पश्चिमी भाग में तरल
द्रव्य और गैसीय पदार्थ अर्थात् खनिज तेल और गैस भी अनगिनत मात्रा में
जमीन के नीचे रेगीस्तानी भाग में दबी भरी पड़ी है।
यह प्रदेश कुछ भाग में कहीं-कहीं कृषि भूमि वाला भी है जहाँ सिंचाई होती
है वहां पर खेती भी होती है।
अतः प्राकृतिक सन साधनों वाला अतुलीय विभिन्न प्रकार के जिन्सों वाला
राज्य है राजस्थान।
आवश्यकता है मात्र इन विभिन्न प्रकार के खनिज पदार्थों के वैज्ञानिक
तरीकों से दोहन करने की। अपरिमित खनिज भण्डार भरे पडे़ हैं इस राज्य
में।
अतः अब समय आ गया है कि देर ही सही परन्तु इस प्लेटीनम जुबली वर्ष से
राज्य सरकार को इसका बहुआयामी विकास करने का प्लान आरम्भ कर देना चाहिये।
इस प्लान में लेखक का यह सुझाव है कि राज्य को क्षेत्रफल की दृष्टि से
सो जिलों में विभाजित करके इस राज्य का सम्पूर्ण विकास किया जाना चाहिये
क्योंकि यहां पर इस राज्य में स्किल्ड मानव श्रम शक्ति प्रचुर मात्रा
में उपलब्ध हैं आवश्यकता है आधुनिक मशीनरी सन साधन उपलब्ध कराने की। धन
विनियोजन की भी कमी नहीं हैं।
आज प्लेटीनम जुबली वर्ष में प्रवेश करने पर राजस्थान राज्य के निवासियों
को लेखक की ओर से ढे़र सारी बधाई और शुभकामनाएँ।
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