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रक्षाबन्धन:

आत्मा परमात्मा के बीच महात्मा का स्वरूप
सामयिक लेखः वासुदेव मंगल, ब्यावर जिला (राज.)
रक्षा बन्धन रक्षा करने का संकल्प है। यह एक मार्मिक उत्सव है जो कच्चे धागे का, भाई बहिन का अटूटबन्धन होता है। इस पर्व को मनाने से आत्मिक सन्तुष्टि प्राप्त होती है कि मुसीबत के समय भाई हमेशा बहिन के लिये ढाल की तरह तत्पर खड़ा रहता है।
इस पर्व को मनाने का गूढ़ रहस्य है। जब बहना, बाबूल का आँगन छोड़ दूर देश पिया के घर चली जाती है, तब भाई बहिन का यह रिश्ता अक्षुणत बना हुआ रहता है। इस पर्व से बाबूल के घर की बचपन की स्मृति मानस पटल पर बहना के अंकित होती है। यह स्मृति इस पर्व से जीवन्त होती है। इस पर्व को मनाये जाने का यही सात्विक स्वरूप है जो अटूट बन्धन होता है मायका और पिया का घर सेतु के रूप में।
भारत देश आध्यात्मिक देश मे जहाँ आरम्भ से वर्णव्यवस्था चली आ रही है ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। इस व्यवस्था के अनुकूल ही इस देश में चार वर्ण के आधार पर चार त्यौहार मनाये जाते रहे है। रक्षा बन्धन साधों का त्यौहार अर्थात् ब्रह्म वर्ण का त्यौहार मुख्य रूप से होता है। इस दिन ब्रह्म अपने यजमान की कलाई पर मोलीरूपी धागा कलेवा के रूप मे मन्त्रोच्चार सूत्र के साथ बान्धकर यजमान की यश और कीर्ति की कामना करते है तथा यजमान अपनी सामर्थ्य स्वरूप ब्रह्म को दक्षिणा प्रदान करते हैं। तो दूसरे शब्दों में यह ब्राह्मण वर्ग वर्ण का प्रमुख त्यौहार है जिसे बड़े उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है।
वर्तमान में इस पर्व मे भी बनावटीपन आ गया है। भारतीय परम्परा में विश्वास का बन्धन ही प्रमुख है। अतः रक्षाबन्धन इसी विश्वास का बन्धन है। माला के मणियों की तरह रक्षा सूत्र भी लोगों को जोड़ता है।
वर्तमान में समाज में व्याप्त विभत्स घटनाओं को रोकने का एकमात्र रास्ता जनजागृति, जन-अभियान, जनचेतना और सामाजिक चेतना ही है। समाज के युवाओं को रोजगार देने के साथ-साथ उनमें नैतिकता के संस्कार में वृद्धि करने की जरूरत है। राखी के पावन पर्व पर बहिन भाई की कलाई पर राखी बाँधते वक्त भाई से यह वचन लेती है कि आप नारी की अस्मिता की रक्षा करेंगें।
रक्षाबन्धन को जनचेतना सामाजिक सदभाव और सामाजिक क्रान्ति के माध्यम के रूप में मनाये जाने पर भारतीयों के मन के अन्दर धीरे ही सही एक न एक दिन नारीयों के लिये सम्मान की भावना पनपेगी। वह समय अवश्य आयेगा जब आदमी के दिल में दानवी कलुपित अमानुषिक विचारों की जगह नारी के प्रति सौहाद्रता और सम्मान की भावना जागृत होगी जिसके फलस्वरूप देश की हर माता-बहनें एवं बेटियाँ सुरक्षित रहेगी ।
इस पावन पर्व को सामाजिक क्रान्ति बनाने के लिये इन भावनाओं को हम अपने स्तर पर फेस बुक, टवीटर, सोशल मिडीया, प्रिन्ट मिडीया व इलेक्ट्रोनिक मीडिया, धार्मिक आयोजनों पर, सामाजिक आयोजनों पर स्कूलों के माध्यम से, कालेजों में गोष्ठियों के माध्यम से, स्वयंसेवी संस्थाओं के माध्यम से, लोकल चेनल से, प्रचारित-प्रसारित करे। धार्मिक नेता, साधुसन्त, स्थानिय प्रशासन, राज्य सरकारें, केन्द्रिय सरकार भी इस पावन पर्व के महत्व का ज्यादा से ज्यादा प्रसार प्रचार तथा आयोजन बहन-बेटियों की सुरक्षा दिवस के रूप में गश्तीपत्र के द्वारा मनाये जाने की अपील करें।
प्राचीन काल से गुरु शिष्य भी यह पर्व उत्साहपूर्वक मनाते रहे है। शिष्य शिक्षा पूर्ण कर गुरुकुल से विदा लेते वक्त गुरू से रक्षा सूत्र बाँधकर विदा लेता है और गुरू भी शिष्य के रक्षा सूत्र बान्धकर इस आशीर्वाद से विदाई देते है कि उसने जो ज्ञान प्राप्त किया है वह अपने भावी जीवन में समुचित ढंग से प्रयोग करें।
यह पर्व बुजुर्गों के सम्मानस्वरूप भी सहृदयता से मनाये जाने की बड़े स्तर पर कोशिश होनी चाहिये। बुजुर्गों की सेवा सुश्रूषा से लेकर उनके शेष जीवन खुशहाली का ख्याल रखे। उनकी पूरी तरह से देखभाल करे, सेवा करे। और उनको अकेला नहीं छोडेंगें।
अतः रक्षा बंधन का यह पावन पर्व कई प्रकार से मनाये जाने के संकल्प के साथ सारगर्भित हो इसी कामना के साथ लेखक व परिजन पर्व पर आप सभी देशवासियों को शुभकामना। आप सभी देशवासी स्वस्थ रहें, सुखी रहे। तो आईये आज हम सभी एक-दूसरे को रक्षा सूत्र में बाँधे एवं राष्ट्र निर्माण तथा राष्ट्र कल्याण हेतु कार्य करने का संकल्प लें।
 

इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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