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ब्यावर में जनसंघ के संस्थापक
वैद्य श्री रविदत्त आर्य
(1920 - 1982)
लेखकः वासुदेव मंगल


यह पर लेखक ब्यावर के एक एसे व्यक्तित्व का चित्रण कर रहा है जो अपने जमाने का एक अन्य उभरती राष्ट्र्ीय धारा का जाज्वल्यमान दीप था। जिसने अपनी निरभिमानी, आर्यधर्म की मरते दम तक माशाल को शाश्वत प्रज्जवलित रखा। 
19वीं सदी का उत्तरार्द भारतवर्ष में राजनैतिक जनचेतना के साथ साथ धार्मिक उत्थान और सामाजिक पुनरउत्थान का जनजागरण काल भी था। इसी श्रंखला में ब्यावर में भी धार्मिक पुनरजागरण हेतू सन 1860 ई. से 32 साल तक ब्यावर के आस पास के क्षेत्रों में स्काटलैण्ड के एक प्रबुद्ध पादरी सर विलियम सूल ब्रेड के नेतृत्व में जत्था ईसाईधर्म की शिक्षा का प्रसार प्रचार करता रहा। जिसके तहत् ही ब्यावर, टाटगढ़, नसीराबाद, अजमेर, जयपुर, केकड़ी, देवली, एरनपुरा रोड, आबूरोड आदि स्थानो पर प्रसार हुआ और चर्च की स्थापना की गई। 
सन् 1881 के 9 सितम्बर को एक अन्य धर्म, आर्य समाज के प्रर्वतक क्रान्तिकारी सन्यासी स्वामी दयानन्द सरस्वती ब्यावर पधारे जिन्होंने आर्य संस्क्रति का शंकनाद किया। इस प्रचार प्रसार के तहत ब्यावर के श्री नन्दलाल जी ब्राहम्ण सोनी, श्रीमाली व गोत्र गौड कश्चप के साथ-साथ दस बीस अन्य प्रबुद्ध नागरिकों ने भी आर्य धर्म स्वीकारते हुए पाली बाजार स्थित लाल प्याउ के पीछे वाले कमरे को आर्य समाज का मन्दिर बनाया। 
श्री रविदत्त जी वैद्य का जन्म 26 जून 1920 में श्री नन्दलाल जी के घर हुआ। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा गुरूकुल कॉंगडी में सम्पन्न हुई। तत्पश्चात् आपने लाहौर में रहकर आयुर्वेद का कोर्स किया। बचपन से आपका उदार तपस्वीस्वरूप था। दिल्ल निवासी विद्या भास्कर शास्त्रीजी व ब्यावर के गुरूदत्त जी आपके सहपाठी थे।
आप दहेजप्रथा व जातिप्रथा के सख्त खिलाफ थे। आप आडम्बरहीन व्यक्तित्व थे। 
आरम्भ में आपकी सोना चॉंदी के व्यापार में आपकी रूचि नहीं रही। अतः आपने आयुर्वेदिक औषधालय खोला जिसे जीवनपर्यन्त तक चलाकर मानव सेवा का लक्ष्य पूर्ण किया। आपके औषधालय का नाम राष्ट्रि्य आयुर्वेदिक सफाखाना था जो पाली बाजार में स्थित था। 
श्री रविदत्त वैद्य हमेशा दीन दुखियों के हमदर्द रहे। वे अपने व्यवसाय के प्रति ईमानदार थे। वे स्त्री शिक्षा के प्रबल पक्षधर थे। माता ही अपने बच्चों को उत्तम संस्कार दे सकती है यह उनकी प्रबल धारणा थी। 
अतः इसी कारण उनके पिताश्री नन्दलालजी की अन्य पुत्रवधु श्रीमति गोदावरी देवी ने अपना मकान सन् 1912 में बालिकाओं की शिक्षा हेतु समाज को समर्पित कर दिया। जहॉं पर सन् 1912 से गोदावरी आर्य कन्या विद्यालय में ब्यावर शहर की बालिकाऐं अध्ययन कर रही है। रविदत्त जी सदा सादा जीवन उच्च विचार के मूर्त रूप थे। उनकी गौ पालन में अत्यधिक रूचि थी। कृषि कार्य में भी हमेशा उनकी रूचि रही। उनका जीवन नियमित था। 
श्री सुन्दरसिंह भण्डारी उनको राजनिति में लाये। उनका गम्भीर सुलझा हुआ व्यक्तित्व एक सहज आकर्षण का केन्द्र था। वे बहुत ही लोकप्रिय निष्ठावान राजनेता थे। 
श्री रविदत्तजी वैद्य ब्यावर म्युनिसिपल कमेटी के कई बार पार्षद रहे।सन् 1957 ई. वे राजस्थान प्रदेश भारतीय जनसंघ के प्रादेशिक अध्यक्ष रहे। 
सन् 1957 में वे हिन्दी सत्याग्रह आन्दोलन के सिलसिले में जेल गये। सन् 1975 ई. में देश में आपातकाल लागू किये जाने के दौरान पुनः वे जेल गये। सन् 1966 ई. में अनिवार्य जमा योजना के खिलाफ लड़ते हुए जेल गये। सन् 1968 में बस आन्दोलन में हिस्सा लिया। 
इसी प्रकार उन्होंने गौ रक्षा आन्दोलन एवं बंगलादेश के विषय में आन्दोलन में हिस्सा लिया। ब्यावर का यह चमकता सितारा 19 मई सन् 1982 में ब्यावर के क्षितिज में ओझल हो गया। श्री रविदत्त वैद्य ने अपना सम्पूर्ण जीवन दुसरों के दुख दर्द को दूर करने में लगा दिया। दूनियॉं में ऐसे व्यक्ति दुर्लभ ही होते है। 

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