‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे
से.......
✍वासुदेव मंगल की कलम से.......
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)
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9 मई 2023 को गुरूदेव रवीन्द्र नाथ
टैगोर की 163वीं जयन्ती पर विशेष
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लेखक - वासुदेव मंगल, ब्यावर
जन्मदिन 9 मई 1861 सालगिरह (वर्षगाँठ 162वीं) कोलकत्ता के जोड़ा साँको
ठाकुर बाड़ी में शारदादेवी की कोख से हुआ। उनके पिता का नाम
देवेन्द्रनाथ टैगोर था।
सन् 1883ई. में उनका विवाह मृणालिनी देवी से हुआ।
रविन्द्र बाबू ने स्कूल की पढ़ाई सेंट जेवियर में की। उन्होंने लन्दन
कालेज विश्व विद्यालय में लॉ की पढ़ाई की। लेकिन 1880 में बिना डिग्री
हासिल किये वापस आ गए। रविन्द्र का मन साहित्य में ही रमता था। उनको
आपने मन के भावों को कागज पर उतारना पसन्द था। रविन्द्र बाबू को प्रकृति
से बहुत प्यार था। वर्ष 1891 से लेकर 1895 तक उन्होंने ग्रामीण बंगाल
के पृष्ठभूमि पर आधारित कई लघुकथाएं लिखी।
सन् 1901ई. में रविन्द्र बाबू ने शान्ति निकेतन गए। यहाँ पर उन्होंने
एक स्कूल पुस्तकालय और और पूजा स्थल का निर्माण किया। यहाँ पर उन्होंने
बहुत सारे पेड़ लगाये और एक सुन्दर बगीचा भी बनाया। शान्ति निकेतन में
रहते हुए ही उनकी पत्नि और दो बच्चों की मौत भी हुई। उनके पिता भी सन्
1905ई. में चल बसे। इस समय तक उनको अपनी विरासत से मिली सम्पत्ति से
मासिक आमदनी भी होने लगी थी। कुछ आमदनी उनके साहित्य की रॉयल्टी से भी
होने लगी थी।
14 नवम्बर 1913 को रविन्द्रनाथ टैगोर को साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला।
नोबेल पुरस्कार देने वाली संस्था स्वीडिश अकैडमी ने उनको कुछ कार्यों
के अनुवाद और गीतान्जली के आधार पर उन्हें यह पुरस्कार देने का निर्णय
लिया था। अंग्रेजी सरकार ने उन्हें वर्ष 1915 में नाइटहुड प्रदान किया
जिसे रविन्द्रनाथ ने 1919 के जलियावाला बांग हत्याकाण्ड के बाद छोड़ दिया।
अपने जीवन के अन्तिम दशक में ठैगोर सामाजिक तौर पर बहुत सक्रिय रहे। इस
दौरान इन्होंने लगभग 15 गद्य और पद्य कोष लिखे।
कविताओं के साथ साथ रविन्द्र बाबू ने उपन्यास, लेख, लघु कहानिया
यात्रा-वृतान्त, ड्रा और हजारों गीत भी लिखे।
एक महान् कवि और संगीतकार के साथ साथ रविन्द्र नाथ टैगोर एक उत्कृष्ट
संगीतकार और पेन्टर भी थे। भारत और बंगलादेश के राष्ट्रगीत भी रविन्द्र
बाबू के द्वारा उनकी कलम से लिखे गए। ये गीत रविन्द्र संगीत माला के ही
हिस्से है।
रविन्द्र बाबू ने 60 साल की उम्र में ड्राईंग और चित्रकला में रूचि
दिखाना आरम्भ किया।
रविन्द्र बाबू एक बहुआयामी व्यक्तित्व और कृतित्व थे। वे मानवतावादी
व्यक्तित्व थे। वे एक मात्र गैर यूरोपीय व्यक्ति थे जिनको सन् 1913 में
ही नोबल पुरस्कार साहित्य के क्षेत्र में ब्रिटेन के राजदूत ने उनके
लिये ग्रहण किया।
वे एक मात्र कवि है जिनकी दो रचनाऐे दो देशों का राष्ट्रगान बनी। भारत
का राष्ट्रगान ‘जन-गण-मण’ और बंगला देश का राष्ट्रीय गान ‘आमार सोनार
बंगला’ उनकी ही रचनाएं है। 7 अगस्त 1941 को टैगेर का निधन हो गया।
उनके विचार :-
पहिला : हर एक कठिनाई जिससे आप मुँह मोड़ लेते हैं, एक भूत बनकर आपकी
नींद में बाधा डालेगी।
दूसरा : हर बच्चा इसी सन्देश के साथ आता है कि भगवान अभी तक मनुष्यों
से हतोत्साहित नहीं है।
तीसरा : जो कुछ हमारा हैं वह हम तक आता है। यदि हम उसको ग्रहण करने की
क्षमता रखते है।
चौथा : तथ्य कई है पर सत्य एक है।
पांचवाँ : पृथ्वी द्वारा स्वर्ग से बोलने का अथक प्रयास है ये पेड़।
करीब तब होते है जब हम विनम्रता में महान होते है।
अन्त में विचारक वासुदेव मंगल की इस महान् दार्शनिक के जन्म दिन पर
शत्-शत् नमन्।
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