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‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......

✍वासुदेव मंगल की कलम से.......
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)

आर्टिफिशियल इंटेलिजेन्सः बनावटी मेधा में भावना का अभाव
सामयिक मौलिक लेख - वासुदेव मंगल, ब्यावर जिला (राज.)
कृत्रिम मेधा से मानवीय संवेदना समाप्त होकर भावनाओं का यांत्रिकीकरण हो जाता है। चिन्ता इसी बात की है कि आज के युग में भाव स्वतः स्फूर्त न होकर तकनीक से पैदा किये जा रहे है। इससे हमारी निजता और गरिमा भंग होती जा रही है। यह तकनीक मानव जीवन की जटिलताओं को कृत्रिम रूप प्रदान करती है। यह तकनीक मानव जीवन की जटिलताओं को वैकल्पिक तरीके से समाधान करती है। चैट जीपीटी इस पर अपने को समेट लेगी।
सम्बन्धों के आधार पर शब्दों और कार्यों का जो नवाचार होता है वह इस तकनीक में संभव ही नहीं है। मानवीय संवेदनाएँ आहट होने लगेगी और व्यक्ति के जीवन में भावनाओं का कोई स्थान नहीं रहेगा।
कृत्रिम जीवन में ‘घृणा’ बहुत आसानी से प्रवेश कर जाती है। प्रेम शून्य समाज यान्त्रिकवत् होकर परोपकार गुणों से दूर भागकर एक मशीन का रूप ले लेता है। आर्टिफिशियल इन्टेलिजेन्स से किसी समस्या का तात्कालिक हल तो निकल जाता है पर ऐसा किया हुआ हल भावनागत रूप से सही है या गलत है, उसका भविष्य में मानवीय श्रद्धा पर विश्वास पर व प्रेम पर कितना असर पडे़गा, यह सब कहना बड़ा मुश्किल सा हो गया है।
एक तरह से मनुष्यता भी वास्तविक सहजता को छोड़कर अपना कृत्रिम घौंसला बनाने में लगी हुई है तो इस तकनीक से तो फिर भावी पीढ़ियों पर इसका परिणाम घातक सिद्ध होने की पूर्ण आशंका बनी हुई है।
प्रकृति प्रदत्त मेधा शक्ति भावना, प्रेम, आसक्ति आदि गुणों से ओत प्रोत होती है अतः यह मेधाशक्ति, संवेदनाओं से परिपूर्ण होती है। प्रेम ही भावना रूपी पेड़ का तना होता है जिससे ‘भावना’ भाव या विचारों के सहारे बेल फैलाती है।
कृत्रिम मेधा शक्ति से मानव का व्यक्तित्व नहीं बनाया जा सकता है यह तो प्राकतिक मेधा शक्ति से ही संभव है।
यहाँ पर लेखक आपको माइक्रो चिप्स के बारे में एक उदहरण दे रहे हैं कि अमेरिका का पश्चिमी केलिफोर्निया प्रदेश में कभी कोई घटित घटना में असंख्य मानवीय मूल्यों का श्ररण हुआ। ये मानव मस्तिष्क रेगिस्तानी फोसिल्स मे दब गए। प्राकृतिक मेधा जलने पर तो नष्ट हो जाती है परन्तु मिट्टी में दबने पर यथावत रहती है। अतः कई देश अनुसन्धान कर इस जगह के फोसिल्स वाली मिट्टी के कणों से कृत्रिम मेधा शक्ति के रूप में माईकोचिप के रूप में सिम का निर्माण किया वह ही तकनीक कृत्रिम मेधा शक्ति का रूप है। अन्तर इतना ही है कि प्राकृतिक मेधाशक्ति में विचारों की श्रृंखला बराबर बनी रहती है जो निजता होती है और कृत्रिम मेधा शक्ति में चैट जीपीटी के भावों का समावेश होता है जो बनावटी होता है, जो माइक्रोचिप के सिम के निर्माण पर निर्भर है शत प्रतिशत। विश्व में माइक्रोचिप तकनीक का निर्माण कई देश कर रहे है जैसे ताइवान इत्यादि। यह रहस्य अनुसन्धान का विषय है।
जीवित मानव (व्यक्ति) जब किसी विषय की गूढ़ता पर चिन्तन करता है तो विचारों की तरंगें मस्तिष्क में प्रवाहित होने लगती है। यह प्रवाह निरन्तर उस विषय के विचारों का आगे से आगे अपने आप स्वतः ही बढ़ता जाता है और विचारों के प्रवाह का अंकन कागज पर कलम सेे उकरता जाता है। तो यह इन फ्लो और आउटफ्लों विचारों का प्राकृतिक मेधा का कागज पर सिमटता जाता है। और व्यक्ति की यह भाव भंगिमा ही उस व्यक्ति विशेष के मौलिक विचार होते है जो किताब रूपी या लेशन के रूप में या फिर शोध पत्र के रूप में उसकी नीजि सम्पत्ति या बैद्धिक सम्पत्ति होती है।
तो जीवन में व्यक्ति के चिन्तन और मन्थन से बड़े बड़े रहस्यों की गुत्थियाँ सहज सुलझ जाती है। लेकिन यह घटक वातावरण, पारिवारिक गुणों, एकाग्रचित्तता, आत्मविश्वास आदि गुणों पर निर्भर करता है। ये प्राकृतिक मेधा शक्ति के पोषनीय तत्व गुण है जो आज के इस कृत्रिम आवरण से सम्भव ही नही अपित बहुत कठिन है। कोई कोई असंख्य मानव में से कोई कोई इस प्रकार के वरच्यू को प्राप्त कर विरला ही इस प्रकार की थाती को उपलब्ध कर पाता है।
आज की दुनियाँ कृत्रिम मेधा शक्ति पर निर्भर हो गई है जिससे मौलिकता से कोसों दूर हो गई है। उनको तो स्पून फीड चाहिये। तैय्यार किया हुआ भोजन थाली मे परोसा हुआ सामने चाहिये।
अतः मनन करने की प्रवृति, स्वाध्याय की आदत न होकर हल किये हुए प्रश्न कुन्जी के रूप में चाहिये तो वैसे ही शिक्षा का रूप हो गया। व्यक्ति विशेष अपने दिमाग पर सोचने का जोर डालेगा ही नहीं तो उस प्रश्न का हल कैसे कर पावेगा।
अतः पढ़ाई का यह ही सरल तरीका है कि किसी भी प्रश्न के लिये स्वयं स्वतः चिन्तन करें। चिन्तन से मन्थन करने की आदत से सन्दर्भित प्रश्न का उत्तर मन्थन करने से अपने आप प्राप्त हो जाएगा।
ऐसा सिनेरियो या वातावरण पढ़ाई मे शिक्षा के क्षेत्र में बनाया जावक तो देश बहुत जल्दी तरक्की कर सकता है वरना कदापि नहीं।
अतः भावना रूपी, प्रेमरूपी, श्रद्धारूपी, आस्थारूपी समुद्र में गोते लगाना है तो व्यक्ति विशेष को ऊपर वर्णित तमाम बातों का ईमानदारी से अक्षरशः पालन करना पड़ेगा तबही व्यक्ति विशेष पारस बन सकता है। बौद्धिक -पारस जो अक्षुणन होगा। उसका जीवन में कभी पराभव नहीं होगा।
भगवान की दी हुई, इस प्राकृतिक मेधा शक्ति पुन्ज या मानव मस्तिष्क जो सवा दो ओन्स का होता है। शरीर मे यह यन्त्र माथे मे स्थित होता है। इसमें असंख्य टिश्यूज या मेमोरी सेल या तन्तुरूपी माइक्रोचिप होते हैं एक मेमोरी सेल में एक मेमोरी रहती है। अतः स्मरणशक्ति का यह पुन्ज है। लेकिन विधा का उपयोग करने का यह तरीका है कि जो भी ‘अमुख’ आप देखते हैं या फिर पढ़ते है या फिर लिखते है वह ’अमुख’ आपकी मेमोरी सेल में स्वतः ही अंकित हो जाता है जो स्थाई होता है। आप इस प्रकार स्मरण शक्ति का भण्डार है बशर्ते इसका ईमानदारी से भविष्य में सही जगह पर उपयोग करे। परन्तु यह शक्ति तब ही फरटाईल होगी जब आप समय विशेष पर इस शक्ति का मनन करके चिन्तन और मन्थन का फैक्टर काम मे उपयोग मे लेगें विषय विशेष प्रश्न पर।
 
 
इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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