‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे
से.......
✍वासुदेव मंगल की कलम से.......
ब्यावर सिटी (राज.)
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)
|
|
24 जून 2024 को महाराजा सवाई
मानसिंहजी द्वितीय
की 54वीं पुण्य तिथी पर विशेष
आलेख: वासुदेव मंगल - स्वतन्त्र लेखक, ब्यावर सिटी
चूँकि सवाई मानसिंह द्वितीय का बचपन का नाम मोरमुकुट सिंह था जो ईसरदा
के ठाकुर सवाईसिंहजी के द्वितीय पुत्र थे जिनको जयपुर के महाराजा
माधोसिंहजी द्वितीय ने 24 मार्च 1921 में गोद लिया और उनका नाम मानसिंह
द्वितीय रखा।
सवाई मानसिंहजी द्वितीय माधोसिंहजी महाराजा की मृत्यु के पश्चात् 7
सितम्बर 1922 में जयपुर की गद्दी पर बैठे। मानसिंहजी की 11 वर्ष की
अल्पायु होेने के कारण राजकाज रेजीडेन्सी काउन्सिल के द्वारा किया जाने
लगा।
मानसिंहजी की प्रारम्भीक शिक्षा अजमेर के मेयो कॉलेज में हुई।
तत्पश्चात् सैनिक शिक्षा उन्होंने इंग्लैण्ड की रायल मिलिट्री एकादमी
वुलविच में प्राप्त की। 14 मार्च 1931 में उनको जयपुर की ढूँढाड़ रियासत
के पूरे शासनाधिकार करीब 20 वर्ष की उम्र में सौंप दिये गए। उनका जन्म
भादवा बदी 13 विक्रम संवत् 1938 में तदनुसार 21 अगस्त ईसवी सन 1911 में
हुआ था।
सवाई मानसिंहजी द्वितीय द्वारा राजगद्दी पर बैठते ही जयपुर रियासत के
चहुमुखी विकास के कार्य करना शुरू कर दिया। शहर की पेयजल व्यवस्था को
सुधारने का काम किया। इसके लिये सन् 1931 में उन्होंने एक नगर सुधार
समिति का गठन किया जिसमें अधिकारी और नागरिक दोनों लिये गए। यह समिति
शहर के आवासीय सुविधाओं के लिए योजनाएँ बनाती थीं।
सन् 1938 में जयपुर ग्राम पंचायत अधिनियम पारित हुआ। ग्राम उत्थान के
लिए विकास समितियों का गठन किया गया महाराजा मानसिंहजी ने सन् 1932 और
1938 के बीच किसानों की लगभग चार करोड़ की बकाया राशि को माफ कर दिया।
मानसिंहजी के द्वारा आधुनिक हथियारों से युक्त एक अनुशासित सैना
तैय्यार की गई। राजस्थान प्रदेश में जयपुर राज्य में सर्वप्रथम शिक्षा
के स्तर में क्रान्तिकारी सुधार किए गए। फलस्वरूप 1939 तक 1200 शिक्षण
संस्थाएँ हो गई। प्राथमिक शिक्षा निशुल्क प्रदान की जाती रही जिससे
छात्रों की संख्या 64 हजार से भी अधिक थीं। महाराजा ने कन्या शिक्षा पर
विशेष जोर दिया। उन्होंने महारानी गायत्री देवी पब्लिक स्कूल की स्थापना
की। जयपुर सरकार ने राजस्थान विश्वविद्यालय बनवाये। यह राज्य का पहला
विश्वविद्यालय था। सन् 1931-32 में जयपुर राज्य शिक्षा पर छः लाख से
अधिक राशि का व्यय किया गया। राजकीय संस्थाओं के अतिरिक्त निजी संस्थाओं
की संख्या 524 थी जिनमें से 349 नियमित विद्यालय थे। 175 संस्थाएँ
संस्कृत पाठशालाएँ तथा मदरसे के रूप में थीं।
महाराजा सवाई मानसिंहजी ने अपने समय में अनेक भवनों का निर्माण करवाया।
इनमें महाराजा कॉलेज, सवाई मानसिंह मेडीकल कॉलेज, सवाई मानसिंह अस्पताल,
महारानी कॉलेज, महारानी गायत्री देवी गर्ल्स पब्लिक स्कूल, सवाई
मानसिंह गार्डस भवन (अब सचिवालय), अशोक क्लब आदि उनकी परिष्कृत रुचि के
परिचायक है। उन्होंने रामबाग पैलेस का विस्तार किया, मोती डूंगरी के
किले पर एक सुन्दर महल बनवाया जिसका नाम तख्तेशाही रखा। इसी तरह
रेजीडेन्सी को भी सुन्दर पैलेस में कर दिया जिसको राजमहल के नाम से
पुकारने लगे। मानसिंहजी ने डाकघरों का जाल सा विछा दिया। जयपुर में इसका
प्रधान कार्यालय था तथा 33 अपर कार्यालय राज्य के विभिन्न भागों में
खोले गए थे। इनके समय में 41 शाखा कार्यालय तथा 23 तारघर कार्यालय
कार्यरत थे।
सन् 1945 में विश्व की राजनीतिक स्वरूप में हो रहे परिवर्तन को भापकर
महाराजा मानसिंह ने जयपुर राज्यों की प्रजा को मताधिकार के आधार पर
जयपुर राज्य परिषद् और विधान सभा गठित करने का अधिकार देकर निर्वाचित
जन प्रतिनिधियों के दो सदन स्थापित किए। इन्हीं निर्वाचित सदनों में से
मन्त्री लिए गए।
15 अगस्त 1947 को भारत स्वतन्त्र हुआ तथा रियासतों के विलयनीकरण की
प्रक्रिया प्रारम्भ हुई। 30 मार्च 1949 को वृहत्तर राजस्थान का निर्माण
हुआ जिसमें राजस्थान की सभी रियासतों का वलयनीकरण हुआ। महाराज मानसिंह
को राज प्रमुख बनाया गया। मानसिंहजी के राजप्रमुख काल में जागीरदारी
उन्मूलन को लेकर राजस्थान में भू-स्वामी आन्दोलन चला, जिस पर जवाहरलाल
नेहरू ने आन्दोलन के नेताओं को दिल्ली बुलाकर बातचीत की। नेहरू ने जो
इस पर फैसला दिया जो नेहरू एवार्ड कहलाता है। सन् 1956 के 1 नवम्बर को
अजमेर मेरवाड़ा को राजस्थान प्रदेश में मिलाये जाने के साथ ही राजप्रमुख
का पद समाप्त कर दिया गया और गुरुमुख निहालसिंह पहले राज्यपाल बनकर
राजस्थान में आए। इसी समय महारानी गायत्री देवी ने राजनीति में प्रवेश
किया। उन्होंने राजगोपालाचार्य द्वारा गठित स्वतन्त्र पार्टी से जयुपर
से लोकसभा का चुनाव लड़ा तथा भारत में सर्वाधिक मत प्राप्त करने का
रेकार्ड कायम किया। वे काफी समय तक राजनीति में सक्रिय रहीं। सन् 1962
में महाराजा मानसिंह स्वतन्त्र उम्मीदवार के रूप में जीतकर राज्य सभा
में गए। 2 अक्टूबर 1965 में सरकार ने उन्हें स्पेन में राजदूत बनाकर
भेजा। स्पेन के राजा शासनाध्यक्ष जनरल ने स्पेन का सबसे बड़ा पदक
मानसिंहजी को प्रदान किया।
महाराजा मानसिंहजी की ईच्छा थी कि बिछौने के बजाय पोलो खेलते समय अगर
उनकी मृत्यु हो तो ज्यादा अच्छा होगा। आगे चलकर ये ही हुआ। वे साइरन
सेस्टर पोलो ग्राउण्ड लन्दन पर पोलो खेल रहे थे तो अचानक उनका शरीर
शान्त हो गया। इस प्रकार इस इस कर्मठ जीवन का अन्त हुआ। इनकी मृत्यु 24
जून 1970ई. को हुई। 29 जून को जयपुर मे उनकी अन्त्यष्टि की गई।
आज भी वर्तमान मे उनके परिवार से राजकुमारी दीया कुमारीजी भारत और
राजस्थान प्रदेश की राजनीति में बतौर जिम्मेवार पद पर रहते हुए सक्रिय
राजनीति भूमिका निभा रही है।
लेखक की महाराज सवाई मानसिंहजी द्वितीय की 54वीं पुण्य तिथी पर शत् शत्
नमन्।
24.06.2024
|
|