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डा. सुरज नारायण शर्मा
मानवता के मसिहा

1922 - 1982

लेखक: वासुदेव मंगल

कोई जमाने में ब्यावर में शिक्षा, चिकित्सा, न्याय, राजनीति सेवा कार्य होता था। परन्तु वर्तमान में यह एक व्यवसाय का रूप धारण कर चुका है। 
पैसा कमाने की अन्धी दौड़ में एवं सामाजिक जीवन के बदलते परिवेश में अब चिकित्सा सेवा न रहकर व्यवसाय बन गया है एवं चिकित्सा कार्य से जूडे़ लोग एक व्यापारी की तरह अपने लाभ हानि को ध्यान में रखकर मरीज को एक ग्राहक समझकर उसके साथ पेश आ रहे है। शहर में चिकित्सा का व्यवसायिककरण होने से जहाॅं शहर में चिकित्सकों की बडी बडी कोठियाॅं खडी हो गई है, उनके दरवाजे पर चमचमाती कारें मरीजों से वसूली रकम से खड़ी हो गई वहीं पीडित मरीज को पैसा देने के बाद भी सही चिकित्सा सुविधा का पूरा लाभ नहीं मिल पाया 
डा. सुरजनारायण शर्मा अपने समय के पिडित मरीजों के मसिहा थे। श्री सुरजनारायण शर्मा का जन्म सन् 1922 में प. श्री सोहनलाल जी शर्मा, आनरेरी मजिस्ट्र्ेट के घर हुआ। 
एम बी बी एस की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात डा. सुरजनारायण शर्मा ने वर्षों तक ब्यावर के अमृतकौर राजकीय चिकित्सालय में अपनी समर्पित सेवा देने के साथ साथ पीडित मरीजों को नियमित अपने घर पर निशुल्क देखना तथा अपनी मिठी बोली से मरीज की पीडा दूर कर देना भी उनका दैनिक नियमित कार्य था। इसके साथ साथ अधिक बिमार मरीज के घर तांगे में जाकर मामूली सी शुल्क लेकर देखना भी उनका दैनिक कार्य था। बिना फीस लिये मरीजों का उपचार तथा अपनी ओर से जरूरतमन्द गरीब मरीजों को दवाईयाॅं देना उनकी सेवा की विशेषता थीं। 
डा. शर्मा गरीब मरीजों के लिए मसिहा के रूप में जाने जाते थे। ऐसा मानव मसिहा 22 जून सन् 1982 ई. को ब्यावर के क्षितिज से अस्त हो गया। डा. शर्मा अपनी निस्वार्थ सेवा से ब्यावर की जनता पर अमिट छाप छोड़ गये जिसे ब्यावरजन चाहते हुए भी कभी भूला नहीं सकेगें। 
अन्त में वर्तमान में ब्यावर में चिकित्सा कार्य आर्थिक मायाजाल में फंस कर रह गया है जिससे चिकित्सा सेवा से जुडे लोगों ने मानवता को खो दिया है। 


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