‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे
से.......
✍वासुदेव मंगल की कलम से.......
ब्यावर सिटी (राज.)
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)
12 जनवरी 2024 को स्वामी विवेकानन्दजी
का 160 वाँ जन्मदिन
आलेख: इतिहासकार वासुदेव मंगल, ब्यावर (राज0)
स्वामीजी का वेदान्त दर्शन बताता है अलग अलग धर्मों के मार्ग आखिरकर एक
जगह ही आकर मिलते है अर्थात् ईश्वर एक है चाहे हम उसको अलग अलग कितने
ही नाम से पुकारें। उन्होंने दृष्टान्त देकर बताया कि अलग अलग काँच से
हो कर हम तक पहुँचने वाला प्रकाश एक ही है। इसीलिए स्वामीजी ने अमेरिका
प्रवास के दौरान अमेरिका में संगठित कार्य से किये गये कामों की प्रेरणा
लेकर भारत में रामकृष्ण मिशन की स्थापना के जरिये सन्यासियों तक को
संगठित किया।
उन्होंने सन्देश दिया कि भारत की करोड़ा पीड़ित जनता अपने सूखे हुए गले
से जिस चीज के लिए बार बार गुहार लगा रही है वो रोटी है। वो हमसे यानि
वर्तमान की केन्द्रिय सरकार से रोटी और रोजी माँग रही है और हम उन्हें
पत्थर पकड़ा देते है या फिर उनको जेल के सिकेंचों में डाल देते हैं। उनका
कसूर सिरफ और बस सिरफ इतना ही होता है कि वो अपने राजा से अर्थात्
वर्तमान की केन्द्रिय सरकार से रोजी के लिये अपनी बुलन्द आवाज से बोलती
है अगर राजा उनकी बात को नहीं सुनता है, तो। परन्तु सरकार उनके रोटी
रोजी के मुख्य मुद्दे को अपराध मानकर अपनी प्रजा को कसूरवार मानती है
तो यह तो सरकार का अपनी प्रजा के साथ सरासर अन्याय हुआ। राजा की
हठधर्मिता हुई।
राजा अर्थात् सरकार का प्राथमिक काम अपनी प्रजा के लिये रोटी रोजी का
इन्तजाम करे। अगर सरकार इस काम में नाकाबिल है तो वह सरकार अपनी प्रजा
पर राज करने लायक नहीं है। वह तुरन्त अपनी राज करने की विश्वनियता
अर्थात जनता-जनार्दन में विश्वास अपनी खो देती है।
अतः सरकार ऐसी स्थिति में प्रजा की रोटी की माँग, रोजी की माँग की मूल
भावना को प्रदर्शित करना अपराध मानती है तो गलत है।
अंतः हिन्दू धरम पर स्वामी विवेकानन्दजी ने कहा कि हिन्दू धरम का असली
सन्देश लोगों को अलग अलग धरम-सम्प्रदायों के खाँचों मे बाँटना नहीं,
बल्कि पूरी मानवता को एक सूत्र में पिरोना है। उनका हिन्दू धरम रूदीवादी
एवं अतार्किक मान्यताओं मानने वाला नहीं था। भूख से मरती जनता को धरम
का उपदेश देना उसका अपमान है। स्वामीजी ने उस समय क्रान्तिकारी एवं
विद्रोही बयान देते हुए कहा था कि इस देश के करोड़ों भूखे, दरिद्र और
कुषोषण के शिकार लोगों को देवी देवताओं की तरह मन्दिरों में स्थापित कर
दिया जाये और मन्दिरों से देवी देवताओं की मूर्तियों को हटा दिया जाये।
उनका यह आव्हान आज भी एक प्रश्नवाचका चिन्ह खड़ा करता है। उनके इस
आव्हान को सुनकर उस समय सम्पूर्ण पुरोहित -वर्ग की घिग्धी बंध गई थी।
आज कोई नामी किरामी साधु तो क्या सरकारी मशीनरी भी किसी अवैध मन्दिर की
मूर्ति को हटाने का जोखिम नहीं उठा सकती।
जीवन में हमारे चारों ओर घटने वाली घटनाएँ हमें अपनी असीप शक्ति को
प्रकट करने का अवसर प्रदान करती है। स्वामीजी अपने आप से सवाल करते थे
कि क्या सचमुच में भगवान है? रामकृष्णजी ने उनके इस प्रश्न का उत्तर
दिया, हाँ, मैनें भगवान को देखा है ठीक वैसे ही जैसे मैं अभी तुम्हें
देख रहा हूँ। भगवान तो हर जगह व्याप्त है, बस तुम्हें उन्हें देखने के
लिए वो दृष्टि चाहिए।
स्वामीजी ने बताया कि जब हम पृथ्वी में एक बीज को बोते हैं तो उसके चारों
ओर हक और पानी की भी व्यवस्था भी करते है। लेकिन क्या कोई बीज पृथ्वी,
हवा या जल बन जाता है? नहीं। बीज हवा पानी व पृथ्वी को आत्म -सात करता
है और इनके सहयोग से स्वयं का विकास करता है और पौधे के रूप में विकसित
होकर बढ़ता है। ठीक ऐसा धर्म के मामले में भी है। एक हिन्दू को मुसलमान
नहीं बनना चाहिये और ना ही मुसलमान को हिन्दू एक इसाई को हिन्दू या
बौद्ध नहीं बनना चाहिए और न ही किसी हिन्दू या बौद्ध को इसाई बनना
चाहिए। लेकिन प्रत्येक को दूसरे धर्म का सम्मान अवश्य करना चाहिए
अल्पायु में उन्होंने अध्यात्मवाद, वेदान्त दर्शन का जो रास्ता बताया
वे ही सत्य है। 4 जुलाई 1902 में उन्होंने घण्टों तक ध्यान किया और
ध्यान अवस्था में ही अपने ब्रहम्रूध्र को भेदकर महासमाधि ले ली। बेलूर
में चन्दन की चिता में गंगा के तट पर उनकी अंत्येष्ठि की गई।
उनके 100 वें जन्म दिन पर हम सभी को उनके द्वारा अध्यात्म धरम दर्शन और
साँस्कृतिक गौरव के मार्ग पर चलने का संकल्प लेना चाहिये।
स्वामीजी सन् 1892 में ब्यावर में ग्रेट पेट्रोयट, फ्रीडम फाईटर श्यामजी
कृष्ण वर्मा के राजपूताना कॉटन प्रेस के मुहूर्त के शुभ अवसर पर उनके
निमन्त्रण पर पधारे थे। यहीं पर उनको अमेरिका के शिकागो सिटी में होने
वाली आमामी धर्मसभा संसद में भारत का प्रतिनिधित्व करने की प्रेरणा मिली
थी जिसमें वे सन् 1893 मे सम्मिलित हुए और अपने ओजस्वी धार्मिक तर्कों
से भाषण देकर, दुनियाँ को आश्चर्य में डाल दिया था।
आज उनके 160 वें जन्म दिन पर लेखक व परिजनों का शत शत नमन।
12.01.2024
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