‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे
से.......
✍वासुदेव मंगल की कलम से.......
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)
|
|
दिनांक 24 सितम्बर से 26
सितम्बर 2023 तक
183वाँ ब्यावर का प्रसिद्ध ‘तेजा मेला’ पर विशेष
लेखक: वासुदेव मंगल, ब्यावर सिटी (राज०)
भारत
वर्ष दुनिया में ऐसा देश है जहां दुनिया भर के लोग अपने-अपने धर्म का
स्वतंत्र्ा रूप से पालन करते हुए शांति, भाईचारे, सहअस्तित्व के साथ
रहते हैं। ऐसा अनोखा उदाहरण दुनिया में भारत के सिवाय और कहीं भी देखने
को नहीं मिलेगा। इसी परिप्रेक्ष्य में भिन्न-भिन्न प्रदेशों में
भौगोलिक स्थिति के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार की संस्कृतियां अवस्थित
हैं। ऐसा ही एक सांस्कृतिक प्रदेश है राजस्थान। राजस्थान के मध्य भाग
के अजमेर जिले के पास अवस्थित ब्यावर जिले, जो श्री सीमेंट उद्योग,
डी.एल.एफ. प्रीमियम सीमेंट, ऊन व तिलपपड़ी, बीड़ी, तंबाकू, कुटीर उद्योगों
के साथ-साथ दो प्रसिद्ध मेलों के लिए भी दुनिया भर में जाना जाता है।
एक वीर तेजाजी का मेला जो प्रतिवर्ष भाद्रप्रद शुक्ल की नवमी की रात्रि
से एकादशी की रात्रि तक भरता है और दूसरा है गुलाल की बादशाह मेला जो
प्रतिवर्ष होली के तीसरे दिन सायंकाल छह घंटे के लिए 5 बजे से 11 बजे
तक रहता है।
तेजा मेला- तेजाजी के मंदिर तेजा चौक से सुभाष उद्यान में, स्थानीय
नगरीय प्रशासन के द्वारा आयोजित किया जाता है। इस मेले में मध्य
राजस्थान की मूल ग्रामीण संस्कृति की झलक स्पष्ट रूप से देखने को मिलती
है। जहां असंख्य ग्रामीण- आसपास के क्षेत्रों से भव्य मेले का आनंद
प्राप्त करते हैं। प्रशासन के द्वारा इस मेले का भव्य आयोजन किया जाता
है, जिसमें दूर-दूर से आकर कागज की लुगदी से सुंदर-सुंदर कलात्मक बनाए
गए खिलौनों की दुकानें लगाई जाती हैं। मिट्टी के भिन्न-भिन्न प्रकार के
घर में काम आने वाले पकाए हुए बर्तनों की दुकानें लगाई जाती हैं। भव्य
रोशनी की सुचारू व्यवस्था की जाती है। नारियल की दुकानें, चाट-पकौड़ी की
दुकानों के साथ-साथ विसायती के सामान की बहुत सी दुकानें लगाई जाती
हैं। शहरी प्रशासन के द्वारा कई तरह के खेल प्रतिस्पर्द्धाएं
सांस्कृतिक कार्यक्रम रखे जाते हैं।
कई प्रकार के झूले चकरियां, बच्चों की रेल गाड़ियां, कई प्रकार के जादू
के खेल इत्यादि लगाए जाते हैं। सफाई की, पीने के ठण्डे व मीठे पानी की
अनेक प्याऊ व मेलार्थियों के सुस्ताने व ठहरने के लिए अनेक स्थानों पर
टेंट लगाए जाते हैं। ग्रामीण लोग अपनी रंगीन पोशाकों में बड़े-बड़े रेशमी
झण्डे ट्रेक्टरों में लगाकर बैण्ड बाजों, ढोल नगाड़ों के साथ तेजाजी
महाराज की जोत के साथ अलग- अलग टोलियों में तेजाजी के मंदिर पर
नाचते-गाते जुलूस के रूप में तेजा दशमी के रोज दिन भर आते रहते हैं जो
तेजाजी के दरबार में मन्नत मांगते हैं और जिनकी मन्नत पूरी होती है वे
मन्नत चढ़ाने आते हैं। इस वर्ष यह मेला ऽ सितंबर माह की 24 तारीख की
रात्रि यानि भाद्रप्रद नवमी से लेकर 26 तारीख सितंबर की रात्रि तक
आयोजित किया जाएगा। ब्यावर शहर राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 8 पर अजमेर
से दक्षिण-पश्चिम में 54 किलोमीटर पर स्थित है। दिल्ली अहमदाबाद की
ब्रॉड गेज रेलवे लाइन का मध्यवर्ती स्टेशन है। अरावली पर्वत श्रृंखलाओं
से घिरा हुआ 444 फीट की ऊंचाई पर, पठार पर 5 किलो मीटर की गोलाकार परिधि
वाली घाटी में बसा हुआ एक सुंदर, खुशनुमा शहर है। यह जिला मुख्यालय के
समान समस्त सुविधाएं लिए हुए है।
मेले में जाट लोक देवता त्यागी, निर्भीक, वचनों के पक्के पर सेवी वीर
तेजाजी महाराज के थान यानि मंदिर पर चढ़ाने के लिए कई रंगों में रेशमी
पट्टी में गोटा किनारी से तैयार किए गए बड़े-बड़े झंडे देश के दूर-दूर
स्थानों से उनके अनुयायियों द्वारा जो विशेष ग्रामीण व श्रमिक वर्ग होते
हैं, के द्वारा जुलूस के रूप में गाते-बजाते ढोल, बैंड, नगाड़ों के साथ
लाए जाते हैं जैसे जयपुर से जयपुर स्पिनिंग मिल्स, किशनगढ़ से आदित्य
मिल्स, भीलवाड़ा से राजस्थान स्पिनिंग मिल्स, भीलवाड़ा सुटिंग्स, विजयनगर
से, पाली से उम्मेद मिल्स, गुलाबपुरा से मयूर सूटिंग्स व ब्यावर अजमेर
के लगभग सभी औद्योगिक इकाइयों द्वारा झंडे तेजाजी के थान पर लाए जाते
हैं। मेलार्थियों के ठहरने के लिए यहां पर सराय, धर्मशालाएं, होटल,
रेस्टोरेंट इत्यादि का सुचारू प्रबंध है।
इस मेले की लोकोक्ति यह है कि वीर तेजाजी जाति से जाट थे। वह बड़े
शूरवीर, निर्भीक, सेवाभावी, त्यागी एवं तपस्वी थे। उन्होंने दूसरों की
सेवा करना ही अपना परम धर्म समझा। निस्वार्थ सेवा ही उनके जीवन का
लक्ष्य था। उनका विवाह बचपन में ही इनके माता-पिता ने कर दिया था। उनकी
पत्नी पीहर गई हुई थी। भौजाई के बोल उनके मन में चुभ गए और उन्होंने
अपने माता-पिता से अपने ससुराल का पता ठिकाना मालूम करके अपनी पत्नी को
लाने, लीलन घोड़ी पर चल दिए। रास्ते में उनकी पत्नी की सहेली लाखा नाम
की गूजरी की गायों को जंगल में चराते हुए चोर ले गए। लाखा ने तेजाजी को
जो इस रास्ते से अपने ससुराल जा रहे थे, गायों को छुड़ाकर लाने को कहा।
तेजाजी तुरंत चोरों से गायों को छुड़ाने चल दिए। रास्ते में उनको एक
सांप मिला जो उनको काटना चाहता था, परंतु तेजाजी ने सांप से लाखा की
गायों को चोरों से छुड़ाकर उसे संभालकर तुरंत लौटकर आने की प्रार्थना की
जिसे सांप ने मान ली। वादे के मुताबिक लाखा की गायें चोरों से छुड़ाकर
लाए और उसे लौटा दी और उल्टे पांव ही अपनी जान की परवाह किए बगैर सांप
की बाम्बी पर जाकर अपने को डसने के लिए कहा। तेजाजी ने गायों को छुड़ाने
के लिए चोरों से लड़ाई की थी जिससे उनके सारे शरीर पर घाव थे। अतः सांप
ने तेजाजी को डसने से मना कर दिया। तब तेजाजी ने अपनी जीभ पर डसने के
लिए सांप को कहा जिसने तुरंत लीलन घोड़ी पर बैठना डालकर तेजाजी की जीभ
डस ली। तेजाजी बेजान हो, धरती माता की गोद में समा गए। यह बात उनकी
पत्नी को मालूम पड़ी तो पतिव्रता के श्राप देने के भय से सांप ने पेमल
को उसे श्राप न देने की विनती की। तेजाजी का उत्सर्ग उनकी पत्नी को सहन
नहीं हुआ। अतःवह भी उनके साथ ही सती हो गई। सती होते समय उसने अमर वाणी
की कि भादवा सुदी नवमी की रात जागरण करने तथा दशमी को तेजाजी महाराज के
कच्चे दूध, पानी के कच्चे दूधिया नारियल व चूरमे का भोग लगाने पर जातक
की मनोकामना पूरी होगी। इसी प्रकार सांप ने भी उनको वरदान दिया कि आपके
‘अमर प्रेम’ को आने
वाली पीढ़ी जन्म जन्मांतर तक युग पुरुष देवता के रूप में सदा पूजा करती
रहेगी।
24.09.2023
|
|