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‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......

✍वासुदेव मंगल की कलम से.......  ब्यावर सिटी (राज.)
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)

पहला सोपान

दूसरा सोपान


ब्यावर सिटी की 174 साल पुरानी वर्नाक्युलर हालैण्ड प्राईमरी स्कूल
आलेख कर्त्ता: वासुदेव मंगल, स्वतन्त्र लेखक, ब्यावर
आज शायद ही ब्यावरवासियों को मालूम होगा कि ब्यावर के संस्थापक कर्नल चार्ल्स जॉर्ज डिक्सन ने सन् 1850 में ही शहर स्थापना तथा मेरवाड़ा बफर स्टेट के साथ ही ब्यावर में सामाजिक सरोकार की गतिविधि भी आरम्भ कर दी थी। इस श्रृंखला में उन्होंने वर्तमान में पण्डित मार्केट चौराहे के पूर्वी दक्षिणी कोने में हॉलैण्ड प्राईमरी वर्णाक्लयुर स्कूल सन् 1850 में आरम्भ कर दी थी। इसमें ऊर्दु, ऑग्ल भाषा और महाजनी विषय पढ़ाये जाते थे। तात्पर्य यह कि समाज उत्थान के लिये शिक्षा को सर्वोपरी समझा गया। सन् 1867 में जब ब्यावर मे म्युनिसिपल कमेटी आरम्भ हुई तब इस स्कूल की व्यवस्था म्युनिसिपल के अधीन कर दी। अतः इस स्कूल का नामकरण हालैण्ड म्युनिसिपल स्कूल कर दिया गया। सन् 1910 मे स्कूल की नई बिलिं्डग को परकोटे बाहर हाईवे उत्तरी दिशा में बना दिये जाने पर यह स्कूल नई बिलिं्डग में शिफ्ट कर दी गई। भारत की आजादी के बाद सन् 1950 में सरदार वल्लभ भाई पटेल के नाम पर इस स्कूल का नाम पटेल स्कूल कर दिया गया। आज भी यह स्कूल पटेल स्कूल के नाम से ही विख्यात है। तो है ना शिक्षा के क्षेत्र मे ब्यावर हेरिटेज सिटी। इसके स्तर के स्कूल शायद ही राजस्थान में हो। आर्चिटेक्ट में भी स्कूल की ईमारत भव्य स्वरूप लिये हुए है। इस स्कूल की बिलिं्डग का विस्तार सन् 1956 में किया गया था। यह स्कूल अंग्रेजी रियासत की मेरवाड़ा स्टेट की सबसे पुरानी स्कूलों में है। इसकी पढ़ाई का स्तर हाई क्लास रहा। इस विद्यालय से पढ़कर अनेक विद्यार्थी भिन्न भिन्न क्षेत्रों में ऊँची ऊँची पोस्टो पर आसीन रहे हैं। जितनी पुरानी स्कूल है उतना ही इसकी पढ़ाई का स्तर ऊँचा रहा है। अतः इसको मेरवाड़ा स्टेट की पहली स्कूल कहा जाये तो भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी चूँकि डिक्सन ग्रेट ब्रिटेन के निवासी थे। अतः इसका कल्चर और शैक्षिक योग्यता में मी पढ़ाई का स्तर उसी के अनुकूल रखा गया। अनुशासन में भी स्कूल सदा से ही उच्च स्तर पर रही है। आठ दशक से लेखक भी स्कूल के नजरिये को देखते आ रहे है। आवश्यकता है अब चूँकि राजस्थान प्रदेश का ब्यावर जिला बना दिया गया है तो इस स्कूल के हेरिटेज संरक्षण की है शिक्षा के क्षेत्र में। शिक्षा निर्देशालय इस विद्यालय के उम्र के अनुरूप इसके मेन्टीनेन्स का ध्यान रखेगा ऐसी अपेक्षा की जाती है। विद्यालय के सर्वतोमुखी विकास की कामना के साथ। यशोवर्धे तत्सम विद्यालय। ब्यावर के इतिहासकार वासुदेव मंगल।
24.02.2024
 




 

ब्यावर सिटी की विरासत ब्यावर का टाऊन हाल
लेख कर्ता आलेख: वासुदेव मंगल, स्वतन्त्र लेखक ब्यावर सिटी
ब्यावर टाऊन बसाबट के समय से प्रशासन की सारी व्यवस्था परकोटे के अन्दर ही हुआ करती थी। इसी श्रृंखला में ब्यावर की म्युनिसिपल कमेटी भी 1867 मे आरम्भ हो गई थी। यह व्यवस्था आरम्भ में शहर की मुख्य चौपाटी के पूर्वी दिशा मे लोहिया बाजार के दक्षिण दिशा वाले नोहरे में जो वर्तमान में लोढ़ा इन्डोर मार्केट कहलाता है, में सन् 1909 तक कायम रही। सन् 1910 में 14 फरवरी को यह महकमा चार दिवारी के बाहर हाईवे संख्या आठ के दक्षिण दिशा में बनाये गए नये भवन में स्थानतरित हो गया। टाऊन हाल की यह बिलिं्डग ग्रेट ब्रिटेन के स्काटलैण्ड के टाऊन हॉल एडिनबरा की हुबहू माडल है जो आर्चिटेक्ट का स्वरूप लिये हुए है। ऐसी नायाब और खूबसूरत ईमारत शायद ही हो। तत्कालित कमिश्नर के नाम पर इस भवन का नाम काल्विन हाल रखा गया था। भारत की आजादी के बाद इस टाउन हॉल का नाम नेहरू भवन रख दिया गया। आज भी 114 साल हो गए इस ईमारत को बने परन्तु इसका स्वरूप आज भी नयनाभिराम बना हुआ है। ऐसी बेजोड़ शायद ही कोई दूसरी ईमारत हो इस ईलाके में। पच्चीकारी कला मे काबिले तारीफ हुनर वाली बिलिं्डग है जैसे ब्यावर में नही ब्यावर के निवासी एडिनबरा में रह रहे हो, घूम रहे हो, ऐसा आभास महसूस होता है इस बिलिं्डग को देखकर। आज आवश्यकता है ब्यावर वालों के लिये इसके रख रखाव की। आज की तारीख में यह एक हेरिटेज बिलिं्डग है। जैसे जयपुर हेरिटेज का ख्याल वहाँ का स्थानीय प्रशासन रखता है उसी प्रकार ब्यावर नगर परिषद् प्रशासन को इस बिलिं्डग की भव्यता की शोभा अक्षुणन बनाई रखनी है। अब ब्यावर जिला बना है। यह अब जिला मुख्यालय में शुमार हो गया है। अतएव प्रशासन शासन की जिम्मेदारी ओर ज्यादा हो गई है। आशा है ब्यावर जिला आने वाले समय में अतीत के गौरव का स्थान एक बार पुनः प्राप्त कर सकेगा। इसी आशा के साथ कि ब्यावर के नागरिक शहर की सुन्दरता को बनाये रखेंगे इसकी भव्य कलात्मकता को बनाये रखेंगे इसकी सुन्दर बनावट और बसावट में किसी प्रकार की विकृति न तो आने देंगें और ना ही स्वयं पैदा करेगें। इसी कामना के साथ वासुदेव मंगल ब्यावर का इतिहासकार।
24.02.2024

 

 
इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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