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‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......

✍वासुदेव मंगल की कलम से.......
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)

5 जून 2023 को विश्व प्रर्यावरण दिवस पर विशेष
आलेख : वासुदेव मंगल, ब्यावर

भाग - 2
लेखक : वासुदेव मंगल (स्वतन्त्र चिन्तक व लेखक)
पर्यावरण शब्द वर्तमान में जीजिविका बन गया हैं हमारे चारों ओर का वातावरण वर्तमान में प्रकृति का और साथ ही मानवकृत कैसा है जिस वातावरण में हम जी रहे है साफ सुथरा है या फिर प्रदूषित है इस पर मनन करके इसका अनुकूल हल निकालना ही वर्तमान की महत्ती आवश्यकता है।
मानव की बुरी आदतें जैसे पानी दूषित करना, बर्बाद करना, वृक्षों को अधिक मात्रा में काटना। ये सब काम मानवजीवन को बुरी तरह प्रभावित करते हैं। अतः मनुष्य को प्राकृतिक आपदाओं का सामना करके इसके नतीजे भुगतने पड़ते है।
पर्यावरण के जैविक संघटक में सूक्ष्म जीवाणु से लेकर कीड-मकोड़, सभी जीव-जन्तु और पेड़-पौधों के अलावा उनसे जुड़ी सभी जैविक क्रियाएं और प्रक्रियाएं भी शामिल हैं। पर्यावरण के अजैविक संघटकों में निर्जीव तत्व और उनसे जुड़ी प्रक्रियाऐं आती हैं जैसे- पर्वत, चट्टानें, नदी, हवा और जलवायु के तत्व इत्यादि।
हमारे जीवन की प्रत्येक घटना इन्हीं पर निर्भर करती है और सम्पादित होती है। पर्यावरण के असन्तुलन के दो करण हैं एक है बढ़ती जनसंख्या और दूसरी है बढ़ती मानवीय आवश्यकताएं। मानव की इन बढ़ती आवश्यकताओं में विशेष रूप से है बढ़ती उपभोक्तावृत्ति मूलरूप से सम्मिलित है।
बढ़ती हुई जनसंख्या ओर बढ़ती हुई उपभोक्तावृत्ति दोनों ही संघटकों का असर प्राकृतिक संसाधनों की वहनीय क्षमता लगातार कम होती जा रही है।
भूमि के खनन, पेड़ों के कटने, जल के दुरूपयोग और वायुमंडल के प्रदुषण ने पर्यावरण को गम्भीर खतरा पैदा किया है।
पर्यावरण विषय पर दुनियां भर में चेतना में तो वृद्धि हो रही है परन्तु वास्तविक धरातल पर उसकी परिणति होती हुई दिखाई नहीं दे रही हैं। चारों ओर पर्यावरण-सुरक्षा के नाम पर लीपा पोती हो रही हैं पर्यावरण असन्तुलन को कम करने के लिये अथवा पर्यावरण बिगाड़ को कम करने की कोशिश नहीं के बराबर मात्र की जा रही है जितनी की जानें वाली कोशिश की अपेक्षा होती है वैसी कोशिश नहीं हो रही है।
मानव हस्तक्षेप के आधार पर पर्यावरण को दो भागों में बांटा जा सकता है जिसमें पहीली है प्राकृतिक या नैसर्गिक पर्यावरण और दूसरा है मानव निर्मित।
आज हमको पर्यावरण संकट के मुद्दों पर आम जनता को जागरूक करने की महत्ती आवश्यकता हैं। जब तक जन जागरूक नहीं होगा। इन मानवीय समस्याओं के निराकरण सारी कोशिशें असफल होगी और यह संकट निरन्तर बना रहेगा तब तक प्राकृतिक आपदाएं निरन्तर आती रहेगी जैसे आंधी, तूफान, बर्फ की चट्टानों का टूटना, बाढ़ आना, शहरों और गाँवों का पानी में डूबना, जंगलों का जलना आदि-आदि विपदाएँ आती रहेगी।
इन्हें रोकने का सीधा सा उपाय है पेड़ो को काटने से रोकना, पहाड़ों के खनन को रोकना। मनुष्य को आवश्यकताओं के अनुसार ही इन वस्तुओं का उपभोग और उपयोग किया जाना चाहिए तब ही नैसर्गिक यह असन्तुलन रूक पायेगा अन्यथा कदापि नहीं।
पर्यावरण संरक्षण हेतु सबसे पहीले स्वयं को ही कार्य शुरू करना होगा। इसके लिये साफ सफाई रहेगी तो पेड़ पौधे भी पनपेंगें। प्लास्टिक का उपयोग पूर्णतया बन्द होने से भी पर्यावरण को सुरक्षित रखने में आसानी हो जायेगी।
अनुपयोगी प्लास्टिक को जलाने से निकलने वाली जहरीली गैसे अत्यन्त घातक और जानलेवा होती है जिससे प्रदूषण फैलता है और जमीन में गाड देने से जमीन की उर्वरक क्षमता नष्ट हो जाती है वहां पर पेड़ पौधे भी विकसित नहीं होते है।
अतः न तो प्लास्टिक को जलाना चाहिये और न ही जमीन में गाडा जाना चाहिये। इन दोनों घातक परिणामों से हमेशा बचा जाना चाहिये।
प्रकृति के बीना मानव जीवन अधूरा हैं मनुष्य कितना भी लग्जरी जीवन क्यों नहीं जीये राहत की सांस सुकून और शान्ति प्रकृति से जुड़कर ही महसूस होती हैं पर्यावरण की मौलिकता ही जीवन को सच्चा सुकून और शान्ति प्रदान करती है।
पृथ्वी ही ऐसा ग्रह है जहां जीवन सम्भव हैं इसे बनाये रखने में पर्यावरण को दूषित होने से बचाया रखना जरूरी है।
वर्तमान में घ्वनि प्रदूषण, वायुप्रदूषण, रेडियेशन प्रदूषण, विकिरण प्रदूषण पृथ्वी और जमीन में मकानों में कम्पन्न प्रदूषण ये सब घटक मानव का जीवन नष्ट कर रहें हैं बायो वेपन, रासायनिक वेपन और परमाणु वेपन, कल कारखानों से निकलने वाला जहरीला धुँआ, प्लास्टिक जलाने से निकलने वाले धुऐं से कीटाणु हवा पानी में तैरने लग जाते है। और जब साँस के साथ ये कीटाणु शरीर के फेफड़ों में, हृदय में, आंतों में और रक्त वाहिनियों में जाते है तो मनुष्य तुरन्त निष्प्राण हो जाता है। आपने इन पिछले दो सालों में देखा होगा कि प्रयोगशालाओं में इन कीटाणुओं को बनाकर ज्यांहिं इनसे तैयार किये गए इन्जेक्शनों का प्रयोग किया गया तो दुनियाँ में भूचाल आ गया। करोड़ों की तादाद में लोग चलते हुए, खडे़-खडे़, बैठे-बैठे, सोते हुए अर्थात् जिस दशा में थे दूषित वायु की सांस से तुरन्त प्रभाव से निष्प्राण हो गए। नाम दे दिया गया करोना बिमारी का। इस प्रकार धरती से मानव को समाप्त किया जा रहा है। इसको नाम दिया गया जैविक हथियार।
अतः मनुष्य अपने स्वार्थ के लिये क्या-क्या खेल खेल रहा है। इस घातक कारनामें से आम जनता को सावधान रहना है।
दुनियां के लगभग सभी विकसित और विकाशील देशों मेंं हथियार उत्पादन कर बेचे जाने के व्यापार की होड़ लगभग सभी देशों में चल पड़ी है जो मानव जाति को पृथ्वी पर से समाप्त करने के लिये पर्याप्त है। ऐसी सूरत में मनुष्य को पूर्णरूप से सावधान रहना है।
आजकल मध्यम व छोटे-छोटे शहरों में रेजिडेन्शियल स्टेट में घरों में या फिर नोहरों, बाड़ियों, ढ़ारियों में नोहरों में ग्राइन्डर मशीनें लगाकर चौबिसों घण्टे आस-पास के मकानों में या फिर जमीन में कम्पन्न पैदा किया जा रहा है जा भूकम्प का कारण बन सकते है। इस प्रवृत्ति को स्थानीय सरकार को सर्वे कराकर तुरन्त रोका जाना चाहिये। नहीं तो यह प्रवृत्ति बड़ी समस्या बनकर एक दिन बडे़ जान माल के नुकसान का कारण बन सकती हैं।
अतः समय रहते इस प्रवृति को तुरन्त रोकने में ही मानव की भलाई हैं इसी प्रकार सीवर प्लाण्ट के लिये वाटर रिट्रेचिंग प्लाण्ट को भी शहर से दूर लगाया जाना चाहिये जिससे प्लाण्ट के मशीन की चौबिसों घण्टे घ्वनि प्रसार को प्रदूषण तथा कम्पन्न से शहरी लोगों के जीवन स्तर की रक्षा की जा सके।
सरकार को इन कमियों पर तुरन्त प्रभाव से कार्यवाही करके इन्हें रोकना निहायत जरूरी है समय रहते हुए नहीं तो घातक परिणाम हो सकते है।
 

 
इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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