यह कैसा
फीलगुड है?
२००३ के
अनुसार
पिछले 5 सालों में गेहुॅं के भाव 9 रूपये किलो, गैस सिलेण्डर 260 रूपये,
केरोसिन 12 रूपये लीटर, पेट्र्ोल 34 रूपये लीटर, दुध 15 रूपये लीटर।
प्रति वर्ष 1 करोड़ लोगों को नौकरी देने का वायदा किया था लेकिन रोजगार के अवसर
ही समाप्त हो गये। नये उद्योगों की तो कल्पना ही बेकार है जबकि प्रतिवर्ष 50000
छोटे कारोबारों को ताले लग रहें है। प्राइमेरी स्कूल में पढ़ाई मंहगीं हो गई और
मानव संसाधन मंत्री ने प्रबन्ध की उच्च शिक्षा को सस्ता कर दिया। लोहा व
सिमेन्ट के भाव तो ढे़ड़ गुणा बड गये और सोना चांॅदी के आयात से प्रतिबन्ध हटाये
जा रहे है। अभी गाॅंवों के अस्पतालों में तो बच्चे जनवाने के लिए नर्स के पास
रूई व ब्लेड़ तक नहीं है और देश में कई आॅल इण्डिया मेडिकल इंस्ट्र्ट्यिूट जैसे
अस्पतालों को खोलने की बातें की जा रही है। केवल बातों से फीलगुड कराया जा रहा
है। गरीबों को ताजमहल की फोटो काॅपी थमा कर कोई उसे कहे कि आज से अपने आप को
शांहजहां समझो! तो ऐसा फील करने वाले भारत में तो शायद ही हो।
ऐतिहासिक उपलब्धियों का सही मुल्यांकन हिन्दुस्तान के देहातों में करना होगा जहां
देश की 70 फीसदी जनता रहती है। टी वी केमरा लेकर हिन्दुस्तान के किसी भी देहात
में चले जाइये, खासकर उन प्रान्तों में जहाॅं भारतीय जनता पार्टी की सरकार है
या रही है और गाॅंव वालों से पुछीये की पिछले 5 साल में उनके गाॅंव में कितनी
तरक्की हुई है? क्या नई सड़के बनी है़? क्या बिजली की आपूर्ति बढ़ी? क्या गाॅंव
की स्कूलों में पढ़ाई का इन्तजाम हुआ? क्या प्राथमिक स्वास्थ केन्द्र में डाक्टर
या दवा मिलते है? क्या पुलिस गाॅंव के अपराधियों को काबू में कर पाई है? क्या
गाॅंव के सौ पचास बेरोजगार नौ जवानों को नौकरी मिली? क्या लोगों की आमदनी पिछले
पाॅंच साल में बढी? इनमें से आधे सवालों का जवाब भी हाॅं में हो तो मानना चाहिए
कि वास्तव में भारतीय जनता पार्टी के शासन काल में तरक्की हुई और तब फील गुड
मानने का पर्याप्त आधार होगा।
विधानसभा चुनाव के बाद के 85 दिनों में लोग फीलबेड करने लगे
चीनी हुई कड़वी, घी लगा अखरने और सोने ने चुंधियाई आॅंखे
भाव विधानसभा चुनाव के वक्त अब
चीनी 1360 1580
घी 2100 2400
सोना 7000 7120
चांदी 8500 10150
सीमेन्ट 105 150
लोहा 16 23
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